कर्नाटक विधानसभा चुनाव के परिणाम आ चुके हैं। कांग्रेस प्रचंड बहुमत के साथ सरकार बनाने के लिए तैयार है जिसके बाद यह तय हो गया है कि कर्नाटक ने 38 वर्ष की उस परम्परा बरकरार रखा है जिसमें वर्ष 1985 के बाद कोई भी भी सरकार रिपीट नहीं हुई है। 224 विधानसभा सीटों के लिए 10 मई को 73.19 प्रतिशत मतदान दर्ज किया गया था।
शाम 6 बजे तक आये परिणाम के आंकड़ों के मुताबिक 224 सीटों में से कांग्रेस 122 सीटों पर जीत दर्ज़ कर चुकी है। वहीं बीजेपी के खाते में 56 सीटें आयी हैं। जेडी(एस) भी खाते में 14 सीटों पर जीत दर्ज़ कर चुकी है और चार सीटें अन्य के खाते में गयी हैं।
वोट शेयर की बात करें तो कांग्रेस को 43 फीसदी से अधिक वोट मिलता दिख रहा है वहीं बीजेपी को करीब 36 फीसदी जबकि जेडीएस के खाते में 13 फीसदी वोट जाता दिख रहा है
पिछले विधानसभा चुनाव की बात करें तो कांग्रेस 2018 के चुनावों में कांग्रेस ने 38.04 प्रतिशत का वोट शेयर हासिल किया, उसके बाद भाजपा (36.22 प्रतिशत) और जेडी (एस) 18.36 प्रतिशत वोटों के साथ तीसरे स्थान पर रही थी
यानी इस चुनाव में जेडीएस का वोट शेयर खिसक कर कांग्रेस के हिस्से में जाते हुए दिखा है।
आइये देखते हैं कि कांग्रेस की इस जीत के पीछे अहम कारण क्या रहे।
‘भ्रष्टाचार‘ को मुद्दा बनाना
कर्नाटक में कांग्रेस ने बीजेपी के खिलाफ जोर-शोर से कथित भ्रष्टाचार का मुद्दा उठाया और भाजपा सरकार को ’40 फीसद कमीशन सरकार’ के नारे के साथ जोड़ दिया। कांग्रेस के शीर्ष नेता से लेकर स्थानीय नेता तक भाषणों में इसी बात का जिक्र करते रहे। कई समाचार पत्रों में कांग्रेस द्वारा भ्रष्टाचार की रेट लिस्ट भी जारी की गयी।
मुफ्त गारंटी
कर्नाटक ने अपने घोषणा पत्र में कुछ मुख्य वादे किये थे जिसके इर्द गिर्द ही कांग्रेस ने अपना पूरा कैंपेन रखा
1.गृह ज्योति योजना के तहत 200 यूनिट तक बिजली फ्री
2.गृह लक्ष्मी योजना के तहत महिला को 2000 रुपये प्रति माह
3.महिलाओं के लिए फ्री बस सर्विस
4.ग्रेजुएट युवाओं को 3000 रुपये प्रतिमाह
5.डिप्लोमा होल्डर्स को 1500 रुपये प्रति माह देगी
6. अन्न भाग्य योजना के तहत बीपीएल परिवारों को हर महीने 10 किलो प्रति व्यक्ति चावल
परफेक्ट चुनाव कैम्पेन
कांग्रेस ने इस विधानसभा चुनाव के लिए एक साल पहले से ही प्रचार की तैयारी एवं रणनीति शुरू कर दी थी। सबसे अधिक फोकस रहा एकजुटता दिखाने को लेकर।
कांग्रेस ने पूर्व मुख्यमंत्री सिद्धारमैया और प्रदेश अध्यक्ष डीके शिवकुमार को एक साथ बनाये रखा। भले ही दोनों के मतभेद रहे हों लेकिन जनता के सामने दोनों ने साथ दिखने का ही प्रयास किया। इसके लिए बाकायदा सोशल मीडिया पर कैंपेन चलाया गया पोस्टर से लेकर मंच तक, दोनों को बराबर रखने का प्रयास किया गया।
हालाँकि भाजपा ने दोनों की लड़ाई को मुद्दा बनाने का बहुत प्रयास किया लेकिन भाजपा सफल नहीं रही।
स्थानीय मुद्दों को तरजीह
कांग्रेस ने पूरा चुनाव हिमाचल प्रदेश की तर्ज पर ही लड़ा यानी स्थानीय मुद्दों को प्राथमिकता
भाषणों में जहाँ पहले कांग्रेसी नेता अडानी, ईडी, सीबीआई जैसे मुद्दों का इस्तेमाल करती थीं, वहीं कर्नाटक चुनाव में ये सभी मुद्दे गायब रहे। कांग्रेस ने जातिगत जनगणना का मुद्दा उठाया, नंदिनी दूध के जरिये स्थानीय एकता दिखाने का प्रयास किया और फिर कांग्रेस ने प्रदेश में भ्रष्टाचार, लॉ एंड ऑर्डर और आरक्षण जैसे मुद्दों पर ही फोकस किया
भाजपा की कमियां
भाजपा की रणनीतिक कमियों ने भी कांग्रेस के लिए बड़ी जीत का मंच प्रदान किया।
जैसे भ्रष्टाचार के मुद्दे पर भाजपा ने कांग्रेस के सवालों का जवाब देना उचित नहीं समझा जिससे पार्टी को नुकसान हुआ। वहीं इस चुनाव में भाजपा को मजबूत स्थानीय नेतृत्व की कमी खली है। एक कारण भाजपा का प्रधानमंत्री मोदी एवं बीएस येदुरप्पा पर अधिक निर्भर रहना भी रहा है।
भाजपा ने पीएफआई को मुद्दा न बनाकर बजरंग दल को बजरंग बली से जोड़ने का प्रयास किया जो शायद कर्नाटक के मतदाताओं को अधिक पसंद नहीं आया। हालाँकि इस मुद्दे के आक्रामक प्रचार से मुस्लिम वोट का ध्रुवीकरण हुआ और 80 फीसदी वोट कांग्रेस के खाते में गया।
शायद अगर भाजपा पीएफआई जैसे आतंकवादी संगठन की पॉलिटिकल विंग एसडीपीआई एवं कांग्रेस के गठजोड़ की सच्चाई जनता तक पहुंचाने का प्रयास करती तो परिणाम में परिवर्तन दिख सकता था।
कर्नाटक विधानसभा चुनाव की ये जीत कांग्रेस के लिए लंबे समय बाद खुशी लेकर आई है। इससे देशभर में कांग्रेसी कार्यकर्ता उत्साहित नजर आ रहे हैं। आगामी महीनों में 3 बड़े राज्य, राजस्थान, मध्यप्रदेश एवं छत्तीसगढ़ में भी चुनाव प्रस्तावित हैं। ऐसे में देखना ये है कि कांग्रेस जीत के इस उत्साह को कब तक बरकरार रख पाएगी
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