कर्नाटक की कांग्रेस सरकार में मंत्री और कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे के पुत्र प्रियंक खड़गे ने एक बार फिर गाय को लेकर विवादित बयान दिया है। प्रियंक खड़गे ने तंज किया है कि क्या आप हर दिन गोमूत्र पीते हैं, क्या आप हर दिन गाय का गोबर खाते हैं?
दरअसल, ‘उडुपी वॉशरूम मामले’ को लेकर स्तंभकार और लेखक सुलीबेले ने भाजपा नेत्री शंकुतला की गिरफ्तारी पर तंज कसते हुए सवाल उठाया था। इस सवाल को लेकर प्रियंक खड़गे ऐसे बिफरे कि उनके भीतर का हिन्दू विरोधी कांग्रेसी जाग गया।
प्रियंक खड़गे एक औसत ट्टिटर ट्रोल की तरह व्यवहार लगे, जैसे आम तौर पर हिन्दू विरोधी ट्रोल करता ही है ‘गौ भक्त’, ‘गौ रक्षक गुंडे’, ‘गौमूत्र पीने वाले’ आदि-आदि।
प्रियंक खड़गे के इस बयान से पुलवामा में आतंकी हमले को अंजाम वाले फिदायीन आतंकी आदिल अहमद डार की याद आ जाती है। एक फिदायीन आतंकी ने भी फूटने से पहले कुछ ऐसे ही शब्दों का इस्तेमाल किया था?
वास्तव में गोमूत्र वाली गालियां कांग्रेस की पार्टी लाइन और उसकी विचारधारा की बुनियाद रही है और इस पार्टी के नेता समय-समय पर इसका परिचय भी देते रहे हैं। कॉन्ग्रेस नेता प्रियंक खड़गे का यह बयान कर्नाटक कांग्रेस की प्रवक्ता लावन्या की याद दिलाता है जब कोरोना महामारी के दौरान वे गोमूत्र पर तंज कस रही थी।
प्रियंक खड़गे का यह बयान महुआ मोइत्रा के उस बयान की भी याद दिलाता है जब वे भाजपा को घेरने के लिए गोमूत्र पर तंज कसती हैं और उनका ‘सुसु पोटी रिपब्लिक’ विवाद हम सभी जानते ही हैं।
प्रियंक खड़गे का यह बयान DMK नेता सेंथिलकुमार की याद दिलाता है जब न्यू एजुकेशन पॉलिसी पर कहते हैं कि इसे गोमूत्र पीने वाले राज्यों पर लागू करना चाहिए।
प्रियंक खड़गे का यह बयान बालासाहेब ठाकरे के पुत्र उद्धव ठाकरे की याद दिलाता है जब वे कहते हैं कि जो लोग हमारी सरकार पर आरोप लगाते हैं, उनके मुंह में गाय का गोबर और गोमूत्र भरा हुआ है।
असल में कांग्रेस ने सत्ता के लिए कभी बैल को बाप बनाया है तो कभी गाय को सड़क पर काटा है। कांग्रेस भी जानती है कि भारतीयों के लिए गोवंश और गाय का महत्त्व क्या है और कितना है। यही वजह है कि जवाहर लाल नेहरू 1952, 57 और 62 के लोकसभा चुनाव ‘दो बैलों की जोड़ी’ चिन्ह के जरिए सत्ता में आते हैं।
उनकी पुत्री इन्दिरा गांधी की पार्टी का चुनाव चिन्ह भी गाय-बछड़ा। यही इन्दिरा गांधी गौ-रक्षकों पर फिर गोलियाँ भी बरसाती हैं। कर्नाटक के हालिया विधानसभा चुनाव में भी नंदिनी बनाम अमूल का मुद्दा कांग्रेस पार्टी बनाती है। हाल ही में बकरीद पर गोरक्षकों को जेल में डालने की बात प्रियंक खड़गे कर ही चुके हैं। उनकी पार्टी के नेताओं को यह कहते हुए सुना जाता है कि जब भैंसों को काटा जा सकता है तो गाय को क्यों नहीं? कर्नाटक में सरकार बनते ही कांग्रेस पार्टी गोवंश संरक्षण अधिनियम को खत्म करने की बात शुरू कर देती है।
यानी एक बात तो तय है कि कांग्रेस चाहे गाय को काटे या गाय के नाम पर गालियां दे, वो एक बात अच्छे से जानती है कि गाय ही उनकी राजनीति का आधार है और उसे वो कभी हथियार के तौर पर इस्तेमाल करती है तो कभी ढाल बनाकर, लेकिन यहाँ पर जिम्मेदारी उन लोगों की जरूर बन जाती है जो इनके समय-समय पर बदलते रंगों को पहचानने में गलती कर देते हैं।
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