जानें कौनसा ग्रहण लगा है कॉन्ग्रेस पर कि हर राज्य में जीत के बाद मुख्यमंत्री पद के लिए दंगल हो जाता है। मध्य प्रदेश और राजस्थान के बाद अब कर्नाटक में जीत के बाद सिद्धारमैया और डीके शिवकुमार के बीच कुर्सी की लड़ाई शुरू हो गई है। चर्चा है कि सिद्धारमैया को चुना जा सकता है या फिर कार्यकाल के बंटवारे की भी बात सामने आ रही है। हालांकि पहले कौन मुख्यमंत्री होगा इसपर भी विवाद तय है। तस्वीर एक-दो दिन में साफ होने की आशा जताई जा रही थी तब तक जी परमेश्वर के समर्थकों ने उन्हें मुख्यमंत्री बनाने के लिए रैली वग़ैरह निकाल ली। सत्ता की बागडोर किसी न किसी के हाथ में चली ही जाएगी पर प्रश्न यह है कि क्या कॉन्ग्रेस हाईकमान सत्ता न मिलने वाले नेता को शांत रखने में कामयाब हो पाएगी?
मुख्यमंत्री की लड़ाई में नाराज नेताओं को न मना पाने के कारण ही पंजाब में कॉन्ग्रेस को सरकार गंवानी पड़ी थी। राजस्थान में सचिन पायलट पिछले 4 वर्षों से नाराज ही चल रहे हैं। हालांकि डीके शिवकुमार के पास समर्थकों की बड़ी फ़ौज है। वे संसाधन संपन्न भी हैं और समर्थकों में अपनी पकड़ रखते हैं। वहीं, सिद्धारमैया को लंबा राजनीतिक अनुभव है। यह उनका आखिरी कार्यकाल माना जा रहा है। दलित, पिछड़े और मुस्लिम वर्ग में उनकी अच्छी पकड़ भी है। अपने पिछले कार्यकाल में भी सिद्धारमैया ने पीएफआई को सपोर्ट करने से लेकर टीपू जयंती तक मनाई थी। ऐसे में मुख्यमंत्री पद के लिए सिद्धारमैया पहला विकल्प हो सकते हैं।
कार्यकाल का आधा-आधा बंटवारा करने पर भी सिद्धारमैया दूसरा कार्यकाल लेने को तैयार नहीं है। शिवकुमार की भी यही स्थिति है। उनका कहना है कि दूसरा कार्यकाल पूरा होने की संभावना नहीं है ऐसे में मुख्यमंत्री पहले वो बनेंगे।
कॉन्ग्रेस हाईकमान के सामने चुनौती तो है। सिद्धारमैया और शिवकुमार दोनों पर भ्रष्टाचार के मामले दर्ज हैं। शिवकुमार ने जिस डीजीपी को नालायक कहा था और सत्ता में आने के बाद सबक सिखाने की धमकी दी थी वो अब सीबीआई के निदेशक बन गए हैं। ऐसे में शिवकुमार के लिए परेशानी और बढ़ गई है। हां, पार्टी का हाईकमान के लिए अब फैसला आसान हो जाता है कि वो उसे मुख्यमंत्री बनाए जिसके जेल जाने की संभावना सबसे कम हो।
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वैसे मुद्दा तो उप-मुख्यमंत्री का भी सामने आया है। कहा जा सकता है कि वोट प्रतिशत को देखते हुए एक डिप्टी सीएम दलित समुदाय से, एक लिगांयत से हो सकता है। वहीं मुस्लिम समुदाय से भी डिप्टी सीएम बनाने की मांग सामने आ रही है। ऐसे में डीके शिवकुमार अपनी स्थिति का अंदाजा लगा सकते हैं। शिवकुमार का कहना है कि वो पार्टी के साथ 8 वर्षों से है। पार्टी को 135 सीटें भी उनके कारण ही मिली है ऐसे में उनको मुख्यमंत्री बनाया जाए। साथ ही सिद्धारमैया के नेतृत्व में पार्टी 2018 का चुनाव हार गई थी वो उन्हें मौका नहीं दिया जाना चाहिए।
कॉन्ग्रेस जल्द ही मुख्यमंत्री बनाने का निर्णय तो ले लेगी पर समस्या यह है कि जब किसी नाम का ऐलान होगा तो दूसरे पक्ष के बगावती तेवर झेलने पड़ सकते हैं। कॉन्ग्रेस की विचारधारा से सिद्धारमैया का पलड़ा भारी नजर आ रहा है। दूसरी ओर डीके शिवकुमार शांत बैठने वाले नेता नहीं है और तब तो बिलकुल नहीं जब उनके पास 50 से अधिक विधायकों का समर्थन प्राप्त है।
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कॉन्ग्रेस के ट्रैक रिकॉर्ड से तो सामने है कि मुख्यमंत्री पद की समस्या सुलझाने में हाईकमान यानि गांधी परिवार नाकाम रहा है। राजस्थान में पायलट और छत्तीसगढ़ में टी. एस. सिंह देव की समस्या अभी सुलझी भी नहीं है कि कर्नाटक में एक ओर बगावत पार्टी किस तरह रोकेगी यह देखना महत्वपूर्ण होगा। आने वाले समय में राजस्थान, छत्तीसगढ़, हरियाणा औऱ मध्य प्रदेश जैसे बड़े राज्यों में चुनाव होना है। ऐसे में कर्नाटक में कुर्सी की लड़ाई से सरकार गिरती है तो कॉन्ग्रेस के कार्यकर्ताओं का मनोबल तो टूटेगा ही, साथ ही अन्य राज्यों के मतदाताओं को गलत संदेश भी जाएगा।
पार्टी अध्यक्ष और पार्टी हाईकमान में फर्क रखने वाली कॉन्ग्रेस के ऊपर अस्थिर सरकारों का ठप्पा लगने लगा है। कर्नाटक में यही स्थिति जारी रही तो आगामी चुनाव चुनौती भरे हो सकते हैं।