साल 1998 में भारत ने परमाणु हथियारों का सफल परीक्षण किया। इस शक्ति प्रदर्शन से बौखलाए पाकिस्तान ने भी उसी साल अपने परमाणु हथियारों का परीक्षण किया।
अब चूंकि पश्चिमी देश यह नहीं चाहते थे इसलिए संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद, अमेरिका, जापान और कुछ अन्य देशों ने भारत-पाकिस्तान पर तकनीकी, आर्थिक प्रतिबंध लगा दिए। इसी में मिलिट्री टैक्नोलॉजी और डिवाइसेस की आपूर्ति पर बैन भी शामिल था।
भारत हथियारों की कमी से गुजर ही रहा था कि कारगिल पर पाकिस्तानी आर्मी घुसपैठियों के वेष में धावा बोल देती है। कई सालों बाद तत्कालीन आर्मी चीफ वेद प्रकाश मलिक बयान देते हैं कि “कारगिल युद्ध के दरमियान हमनें बड़ी मात्रा में गोला-बारूद और तोपखाना खरीदा लेकिन बाद में पता चला कि यह तो 1970 का था, उसमें भी आधे बेकार निकले।”
कारगिल युद्ध के दौरान पाकिस्तानी सेना पहाड़ियों के ऊपर थी और भारतीय सेना पहाड़ी के नीचे। पहाड़ के ऊपरी हिस्से में मजबूत बंकर बने हुए थे जहां पाक आर्मी छुपी हुई थी।
भारत की थल सेना को इन बंकरों तक पहुंचने में मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा था। भारतीय वायु सेना के पास भी उस समय कोई ऐसी मिसाइल नहीं थी, जो दूर से पाकिस्तानी सेना के इन बंकरों पर सटीकता से निशाना लगा सके।
उस समय इजरायल ने तमाम अंतरराष्ट्रीय दबावों को दरकिनार किया और भारत को लेजर गाइडेड मिसाइल मुहैया करवाई। इन मिसाइल को लड़ाकू विमान मिराज 2000 पर फिट किया गया और फिर एक के बाद एक कई पाकिस्तानी बंकरों को तबाह कर दिया गया।
दरअसल, कारगिल युद्ध ने हथियार और तकनीक के मामले में स्वदेशी या आत्मनिर्भर बनने की जरूरत को बहुत मजबूती से महसूस करवाया।
कारगिल युद्ध की समीक्षा के लिए बनी कारगिल रिव्यू कमिटी ने देश की निगरानी क्षमता को लेकर सलाह दी कि “सैटेलाइट इमेजरी को सुनिश्चित करने के लिए हर संभव प्रयास किया जाना चाहिए। विश्व मानकों की क्षमता वाले सैटेलाइट कम से कम समय में स्वदेशी रूप से विकसित की जाएं।”
कारगिल रिव्यू कमिटी ने यह सुझाव इसलिए भी दिया क्योंकि भारत ने कारगिल युद्ध के समय पाकिस्तानी सेना के ठिकानों का सटीक पता लगाने के लिए अमेरिका से सैटेलाइट इमेजरी की मदद मांगी थी। उस समय अमेरिका की ग्लोबल पोजिशनिंग सिस्टम यानी GPS सबसे बेहतरीन तकनीक में से एक मानी जाती थी। हालांकि, यह आश्चर्य की बात थी कि अमेरिका ने भारत की मदद करने से मना कर दिया और फिर भारत को किसी और से मदद लेनी पड़ी थी।
आत्मनिर्भर बनने की जरूरत सबसे अधिक उस वक्त क्यों महसूस हुई इसका अंदाजा उस समय के सेना प्रमुख वीपी मलिक के बयान से समझा जा सकता है, जब वे कहते हैं कि “हमनें 35,000 रुपये प्रति पीस की दर से सैटेलाइट तस्वीरें भी खरीदीं और पाया कि ये दो साल पुरानी थीं।”
अब सवाल है कि देश की सुरक्षा और सैन्य उपकरणों के लिहाज से क्या हम आत्मनिर्भर भारत की ओर बढ़े हैं? क्या हमनें कारगिल युद्ध से आत्मनिर्भरता का पाठ पढ़ लिया है?
इस सवाल का एक जवाब यह हो सकता है कि अब हमारी मानसिकता बदल रही है। पहले भारत की सुई इस पर अटकी रहती थी कि अमेरिका से हथियार खरीदें तो कहीं रूस नाराज न हो जाए, रूस से हथियार खरीदें तो कहीं अमेरिका नाराज न हो जाए।
अब नाराजगी की इन चिंताओं से मुक्त होकर भारत ने अपने हित के बारे में सोचना शुरू कर दिया है। भारत रक्षा के क्षेत्र में अपने पैरों पर खड़े होने की कोशिश कर रहा है। परिणाम ये है कि भारत जो हथियारों के खरीददार के रूप में जाना जाता था अब अन्य देशों को हथियार बेच भी रहा है।
भारत फिलहाल 85 से ज्यादा देशों को वेपन सिस्टम्स एक्सपोर्ट कर रहा है। आंकड़ों के मुताबिक पिछले वित्तीय वर्ष की तुलना में रक्षा निर्यात ने वित्तीय वर्ष 2023-24 में 32.5 फीसदी की छलांग लगाई है। यानी डिफेंस एक्सपोर्ट 21,083 करोड़ रुपये के स्तर पर पहुंच गया है। साल 2016-17 में ये आंकड़ा मात्र 1,521 करोड़ रुपये था।
मेक इन इंडिया की बात करें तो इसका उदाहरण असॉल्ट राइफल AK-203 है। जिसका प्रोडक्शन भारत और रूस के जॉइंट वेंचर इंडो-रूसी राइफल्स प्राइवेट लिमिटेड द्वारा उत्तर प्रदेश के अमेठी में किया जा रहा है।
मेक इन इंडिया की ही एक मिसाल कर्नाटक के तुमकुरु स्थित HAL हेलिकॉप्टर फैक्ट्री है। शुरूआती दौर में यहां लाइट यूटिलिटी हेलिकॉप्टर बनेंगे। बाद में लाइट कॉम्बैट हेलिकॉप्टर, एडवांस्ड लाइट हेलिकॉप्टर, इंडियन मल्टी रोल हेलिकॉप्टर और HAL रुद्र बनाए जाएंगे। ये वो हेलिकॉप्टर हैं, जिनका उपयोग भारतीय सेना अभी कर रही है।
लड़ाकू विमान तेजस, ब्रह्मोस मिसाइल और INS विक्रांत जैसे युद्धपोत स्वदेशी उदाहरण के रूप में हमारे सामने मौजूद हैं। सैटेलाइट की दुनिया में भी भारत धीरे-धीरे कदम बढ़ा रहा है।
कारगिल युद्ध से भारत ने एक और महत्वपूर्ण सबक सीखा है। सबक ये है कि भारत अब बाहरी देशों से केवल हथियार भर नहीं खरीद रहा है बल्कि अब तकनीक का ट्रांसफर भी हो रहा है। उदाहरण के तौर पर भारतीय सेना को इग्ला-एस मैन पोर्टेबल एयर डिफेंस सिस्टम मिसाइल है, जिनकी एक खेप रूस से भारत पहुंची है और बाकी बची मिसाइल, ट्रांसफर ऑफ टेक्नोलॉजी (ToT) की मदद से भारत में ही बनाई जाएंगी।
इससे सबसे बड़ा फायदा ये होगा कि हम पूरी तरह दूसरे देश पर निर्भर नहीं रहेंगे। निर्भर नहीं रहेंगे तो आपातकालीन स्थिति में या उचित समय आने पर हम हथियार संबंधी समस्याओं से खुद निपट सकते हैं।
आज जब भारत कारगिल विजय की 25वीं वर्षगांठ मना रहा है, तब यह कहने में कोई हिचक या झिझक नहीं होनी चाहिए कि भारत ने कारगिल युद्ध से आत्मनिर्भरता का पाठ भली-भांति पढ़ा है और इसी का नतीजा है कि आज अमेरिका को यह कहना पड़ रहा है कि “भारत अपनी स्ट्रेटेजिक ऑटोनॉमी यानी सामरिक स्वायत्तता को पसंद करता है और वह उसका सम्मान भी करता है।”