पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान का दशकों पुराना एक सपना है कि वो इस्लामिक दुनिया को लीड करे। साल 1998 में किए गए परमाणु परीक्षण के पीछे भी पाकिस्तान ने यही तर्क दिया था कि उनके पास एक इस्लामिक बम होना चाहिए।
ये बात तो सच है कि उस समय तक और आज भी पाकिस्तान को छोड़कर कोई अन्य मुस्लिम देश नहीं है, जिसके पास परमाणु हथियार हो, लेकिन लीड करने का ये दावा तब पूरी तरह से ध्वस्त हो गया था जब पाकिस्तान ने कारगिल युद्ध के दौरान अपने सैनिकों को ही पहचानने से इनकार कर दिया था। इस बात से अपने मुल्क समेत वैश्विक स्तर पर तो फजीहत हुई ही लेकिन इस्लामिक दुनिया सबसे ज्यादा फजीहत हुई।
इस्लामिक सेना, इस्लामिक हथियार, फिलिस्तीन का समर्थन लगभग हर जगह पाकिस्तान यह दावा करता है कि वो इस्लाम की नुमाइंदगी करते हैं लेकिन जैसे ही वो अपने सैनिकों को कश्मीरी आतंकवादी करार देते हैं तो ग्लोबल बेइज्जती होती है, बदनामी होती है कि ये क्या इस्लाम की लड़ाई लडेंगे।
कारगिल के दौरान पाकिस्तान की सेना ने कई तरह के प्रॉपगेंडा रचे लेकिन ये गैर-पेशेवर रवैया सभी प्रॉपगेंडा पर भारी पड़ गया। इसका नतीजा ये हुआ कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भद्द पिटी और फिर कभी पाकिस्तान उबर नहीं पाया।
पाक आर्मी कितनी गैर-पेशेवर है? इसका एक उदाहरण देखिए।
पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ को जब भारत के प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी फोन करते हैं कि “आपने हमें धोखा दिया है।” इस पर नवाज शरीफ कहते हैं, “उन्हें इस बात की बिल्कुल भी जानकारी नहीं है।” मतलब कि पाकिस्तान ने कारगिल पर क्यों और कैसे हमला कर दिया वो इस बात से अनभिज्ञ हैं। इसीलिए वो आगे कहते हैं कि “मैं परवेज मुशर्रफ से बात कर आपको वापस फोन मिलाता हूं।” परवेज मुशर्रफ उस समय पाकिस्तान आर्मी के चीफ थे।
पाकिस्तान समेत दुनिया भर में उस समय यह स्पष्ट नहीं हो पा रहा था कि आखिर इस्लामाबाद में फैसले ले कौन रहा है? तीन महीने पहले भारत के प्रधानमंत्री के साथ मुलाकात होती है और फिर अचानक हमला। हालांकि, दुनिया को यह समझने में ज्यादा दिन नहीं लगे कि रावलपिंडी, इस्लामाबाद पर हावी हो गया है।
उधर, नवाज शरीफ की हताशा धीरे-धीरे बढ़ रही थी, जब ये स्पष्ट होने लगा कि दक्षिण एशिया में संकट के लिए पूरी तरह से पाकिस्तान जिम्मेदार है। इस बात से वैश्विक स्तर पर पाकिस्तान अलग-थलग पड़ गया था।
उधर अमेरिका, चीन और इस्लामिक दुनिया के कई देश पाकिस्तान को बैक चैनल के माध्यम से पीछे हटने के लिए कहते रहे लेकिन परवेज मुशर्रफ पर इन बातों का कोई असर नहीं हुआ। बाद में अमेरिका सार्वजनिक तौर पर ये बात दोहराता है कि पाकिस्तान को LOC का सम्मान करना चाहिए।
जब सभी रास्ते बंद हो गए तो नवाज शरीफ अपनी पत्नी और बच्चों समेत अमेरिका पहुंच गए। वहां अमेरिकी राष्ट्रपति बिल क्लिंटन से युद्ध रोकने के संबंध में बातचीत होनी थी। नवाज शरीफ के इरादे साफ थे कि अगर यह वार्ता विफल रहती है या पाकिस्तानी सेना उन्हें पद छोड़ने के लिए कहती है तो वे वापस घर नहीं जा पाएंगे।
हालांकि, पाकिस्तान आर्मी ने हार मान ली और LOC से पीछे हट गई लेकिन उस हमले से अमेरिका से दशकों पुरानी दोस्ती में दरार पड़ गई, अब चीन भी फूंक-फूंक कर कदम रखने लगा और उधर इस्लामिक देशों में यह धारणा बन गई कि जो अपने मुल्क, अपनी आवाम का न हुआ वो इस्लाम का क्या होगा।
पाकिस्तान ने आतंकवाद का रास्ता चुन ही लिया था। वैश्विक समुदाय ने यह माना कि पाकिस्तान टेरर फंडिंग और मनी लॉन्ड्रिंग का पनाहगार है परिणाम ये हुआ कि वह FATF की ग्रे लिस्ट में शामिल हो गया। इससे वैश्विक आर्थिक मदद पर ताला तो लगा ही, साथ ही रणनीतिक रूप से भी पाकिस्तान बैकफुट पर आ गया। नतीजा ये है कि आज पाकिस्तान आर्थिक, राजनीतिक और सुरक्षा, तीनों लिहाज से सड़क पर आ चुका है।