हमारा देश अद्भुत है। इसलिए कि, यहाँ नीति-आयोग के पूर्व अध्यक्ष की मानें तो ‘टू मच डेमोक्रेसी’ है। हमारे समय, तकनीक और सोशल मीडिया का धन्यवाद कि अब चीजें तुरंत उधेड़ दी जाती हैं। बड़े-बड़े तथाकथित विद्वान, जिन्होंने केवल अपनी इमेज और आवरण के जरिए खुद को दुनिया पर थोप रखा था, उनके भी धुर्रे पल में बिखेर दिए जाते हैं।
यही वजह है कि अब हमारी खुद को जानने की, पहचानने की ललक बढ़ रही है। वह चाहे कला का कोई भी अंग हो (साहित्य, सिनेमा से लेकर इतिहास तक) या मीडिया की बहस, भारत के लोग अब अपने सनातनी मूल्यों और विक्रम को जानने की जिद में पड़े हैं। इसके अच्छे-बुरे परिणामों पर बहस बाद में, फिलहाल बात एक फिल्म की। फिल्म, जिसका नाम है- पोन्नियिन सेल्वन। इसके और भी भाग आएँगे, फिलहाल पहला भाग आया है।
फिल्म और उससे जुड़े विवादों की बात करें, उससे पहले जेहन में एक सवाल आता है। आखिर, आजादी के 75 वर्षों के बाद जब हमारे नायकों पर फिल्म बनती है, तो उसे भी विवादों में क्यों घेर दिया जाता है?
इसके साथ ही, एक छोटा सा सवाल यह भी बनता है कि 150-200 वर्षों के मुगलकाल को तो इतना महत्त्व दिया जाता है कि बाकायदा उसे ‘मध्यकाल’ कह कर भारत के कथित तौर पर सबसे बड़े इम्तहान UPSC में एक अलग पेपर के तौर पर पढ़ना होता है, लेकिन जो चोल साम्राज्य लगभग 1500 वर्षों तक भारत में और बाहर भी राज्य करता रहा, उसके बारे में हमारी किताबें कितने पन्नों में पढ़ाती हैं?
वह चोल साम्राज्य जो मुगल काल की सीमाओं से भी बड़ा था, जिसकी समय-सीमा किसी भी राजवंश से बड़ी थी, जो अपनी प्राचीनता में मौर्य वंश से भी पुराना है, उसके बारे में आज जब लोग सुन रहे हैं तो गूगल कर रहे हैं। बचपन में इतिहास की किताबों में इतने अहम राजवंश के बारे में भी कोई जानकारी नहीं दी गयी है।
मतिहीन मंदबुद्धि हमें देते हैं इतिहास-धर्म का ज्ञान
फिल्म के रिलीज होने पर जितनी खुशी सनातनियों या हिंदुओं को हुई, वह सनातन-द्रोहियों को भला रास कैसे आती? वह तो देख रहे थे कि बाहुबली से जो सिलसिला शुरू हुआ है, वह आखिर ‘वीर सावरकर’ और ‘हिंदुत्व’ जैसी फिल्मों तक जा रहा है। जिस ‘पोन्नियन सेल्वन’ का सपना मणिरत्नम 30 वर्षों से देख रहे थे, वह भी अभी ही रिलीज हुई है।
तो, अति-बुद्धिशाली और सेकुलर प्रजाति के निर्देशक वेत्रिमारन और अभिनेता कमल हासन के पेट में दर्द शुरू हो गया। उन्होंने ‘सर्मन ऑन द माउंट’ दे दिया कि फिल्म में चोल राजाओं को हिंदू दिखाया गया है, जो गलत है। चोल तो हिंदू थे ही नहीं, क्योंकि उस वक्त हिंदू नाम का शब्द ही नहीं था। इससे भी हास्यास्पद दावा यह कर दिया गया कि चोल हिंदू नहीं थे, तमिल थे।
धरती बाँटी, सागर बाँटा, बाँट दिया इंसान को
अब, जरा यह समझा जाए कि कमल हासन और उनका गिरोह जिस बात को निकालते हुए शर्म भी नहीं कर रहा है, वह कितनी खोखली बात है। आइए, इसको जरा इन पॉइंटर्स के जरिए समझते हैंः
- हिंदू शब्द तो फारसियों के आने के बाद आया। एक व्याख्या कहती है कि सिंधु के इस पार वालों को उन्होंने हिंदू कह दिया, क्योंकि वे ‘स’ का उच्चारण ‘ह’ करते थे। क्या सनातन धर्मावलंबी हवा में उड़ गए? वेदों, उपनिषदों, ब्राह्मणों, आयुर्वेद, योग इत्यादि की रचना करनेवाले लोग मुगल थे या अंग्रेज थे?
- आपको अगर कोई बात पता नहीं है, तो क्या वह इस निखिल विश्व में है ही नहीं? मतलब, जब तक न्यूटन ने ग्रैविटी का सिद्धांत नहीं दिया, तब तक पृथ्वी पर चंद्रमा का वायुमंंडल था? चूँकि आपके विदेशी आकाओं ने ब्रह्मगुप्त का नाम नहीं सुना या उनको नहीं जाना, क्योंकि 600 ईस्वी में यूरोप तो अंधकार-युग में था, तो इसका मतलब है कि ब्रह्मगुप्त के गणितीय योगदान विलुप्त हो जाएँगे।
- अच्छा। कमल हासन साब। एक बात बताइए। शैव, वैष्णव, लिंगायत, नाथपंथी, कबीरपंथी, शाक्त, जैन, बौद्ध इत्यादि क्या इलहामी मजहब हैं या चर्च से पोषित रिलिजन? क्या यह सच नहीं कि सनातन रूपी विशाल मंडप के नीचे ये सारे के सारे विविध रंगों और वर्णों की शाखाएँ हैं। हां, अब तो बौद्ध होने के नाम पर खुलेआम हिंदू धर्म को गाली दी जाती है, लेकिन उनसे भी बड़ी विनम्रता से पूछना चाहूँगा कि खुद बुद्ध कौन थे, जातक कथाओं की संघटना और संरचना क्या कहती है, खुद बुद्ध के अवतारों की कथाएँ क्या बताती हैं?
- चोल राजाओं में सबसे पराक्रमी राजेन्द्र प्रथम (1012 ई. – 1044 ई.) के गंगईकोड (गंगा का विजेता) की उपाधि ग्रहण करने के पीछे क्या तर्क हो सकता है, आखिर वह गंगा नदी का पानी ले जाकर तंजौर के बृहदेश्वर मंदिर धोने से क्या साबित करना चाहते थे?
- चोल राजा हिंदू नहीं थे, योग की सारी क्रियाएँ सनातनी हैं लेकिन योग हिंदू नहीं है, भरतनाट्यम से लेकर सारी नृत्य विधाएँ हिंदू नहीं हैं, गरबा में शक्तिपूजा है, लेकिन उसका हिंदू धर्म से लेनादेना नहीं है- ये सारी बातें दरअसल हिंदू धर्म पर एक के बाद एक हमला ही हैं। पूरी तरह से हिंदू धर्म को खंड-खंड में बाँटने पर आमादा पखंडियों की योजना यही है कि हिंदू धर्म को किसी भी तरह और कितनी तरह से तोड़ा जा सके।
चोल राजवंश को जानिए
- चोल राजवंश भारत का सबसे लंबे समय तक चलनेवाला प्रतापी राजवंश था जो 300 ईसापूर्व से लगभग 1200 ईस्वी तक पूरे शौर्य से दमकता रहा।
- सम्राट अशोक के पत्रलेखों में इसका जिक्र किया गया है, इसके अतिरिक्त चोलों ने स्तंभ और शिलालेख भी गड़वाए, जिनमें संस्कृत, तेलुगु, कन्नड़ और तमिल में उनके बारे में बताया गया है।
- पोन्नियिन सेल्वन का मतलब होता है, कावेरी का बेटा। इसमें जिस राजा की कहानी है, वह साम्राज्य का सबसे प्रतापी राजा था। साम्राज्य का झंडा अपने शीर्ष दौर में श्रीलंका और मालदीव से इंडोनेशिया तक लहराता था। यहाँ तक कि चीन के सांग राजवंश (960-1279 ईस्वी) तक भी राजनयिक और व्यापारिक दूत भेजे गए।
- चोलों ने पूरे दक्षिणी क्षेत्र को एक ही शासी बल के नियंत्रण में रखा।
- उन्होंने विशाल राज्य को प्रांतों में विभाजित किया और उसे मंडलम का नाम दिया।
- हरेक मंडलम के लिए अलग गवर्नर बनाए। इन्हें आगे नाडु में विभाजित किया जिसका अर्थ जिला होता था। इसमें तहसील शामिल थे।
- हरेक गाँव स्वशासन के तहत काम करता था। चोल साम्राज्य के दौरान कला, कविता, साहित्य और नाटक की पूरी प्रगति हुई।
शैव हिंदू नहीं हैं तो क्या हैं
ये गजब का तर्क है कि चोल तो शैव थे और शिव हिंदू देवता नहीं हैं। भाई, हिंदू देवता नहीं हैं तो यजुर्वेद का महामृत्युंजय मंत्र क्या कमल हासन ने जाकर लिख दिया था?
त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्।
उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्।
(यजु० ३/६०)
इसके अलावा भी वेदों में तीन-चार जगहों पर शिव का रुद्र के तौर पर उल्लेख है। अब कहने को ये भी कहा जा सकता है कि रुद्र और शिव अलग हैं। रुद्र तो जनजातीय देवता हैं, शिवलिंग की जो पूजा पुरातन काल से होती आई है, वह अलग है और आज के ज्योतिर्लिंग अलग हैं, ब्राह्मणवाद हैं।
यहाँ तक कि उपनिषदों में भी शिव की भक्ति से पूत मंत्र मिलते हैं-
स ब्रह्मा स विष्णु: स रुद्रस्स: शिवस्सोऽक्षरस्स: परम: स्वराट्।
स इन्द्रस्स: कालाग्निस्स चन्द्रमा:।। (कैवल्योपनिषद)
सर्वाननशिरोग्रीव: सर्वभूतगुहाशय:।
सर्वव्यापी स भगवान् तस्मात्सर्वगत: शिव:।। (श्वेताश्व. उपनिषद)
ये बस कुछ उदाहरण हैं। योगदर्शन से लेकर किसी भी मीमांसा तक, शिव हमारे जीवन में, हिंदुओं के हरेक कर्म में, मर्म में उपस्थित हैं।
या इलाही, ये माजरा क्या है
दरअसल, कमल हासन हों, वेत्रिमारन हों या पा रंजीत। ये सभी वैसे हैं, जिनकी हालत वही है कि अपना ही भूतकाल भूलकर खुद के ही पूर्वजों को ये गाली देते हैं। चोल हिंदू नहीं थे, शैव हिंदू नहीं हैं, यह सारे ऐसे तर्क हैं जिन पर कायदे से तो पलट कर जवाब भी नहीं देना चाहिए, लेकिन अपनी नयी पीढ़ी के लिए कम से कम सच तो बताना ही होगा।
पा रंजीत ने एक और मजेदार बात बताई। उन्होंने ज्ञान दिया कि वह चोल राजाओं की बड़ाई नहीं करेंगे क्योंकि उन राजाओं ने उनकी (यानी रंजीत के पूर्वजों यानी दलितों की) जमीन छीनकर मंदिरों को दे दी।
ये ठीक वही तर्क है, जो जेएनयू के या बाहर के बुद्धिहीन कॉमरेड-कॉन्ग्रेसी देते थे। शंबूक की कथा तो सही है, लेकिन राम और रामसेतु काल्पनिक हैं, एकलव्य का अँगूठा काटना तो ऐतिहासिक है, लेकिन गुरु द्रोण और अर्जुन, युधिष्ठिर और भीष्म काल्पनिक हैं।
भाई, या तो चतुर या घोड़ा। दोनों ऐसा कैसे चलेगा?
References:
Pandya Dynasty: History, Wars and Temples
Chandela Dynasty: History, Wars and Decline of Chandela Dynasty
Pallava Dynasty: History, Origin ad Rulers in Hindi
Kushan Empire: History, Wars and Downfall
प्राचीन सभ्यता जानने के साधन(Means of knowing ancient civilization)
चोल शासक राजराज प्रथम (985-1014 ई.)Chola ruler Rajaraja I (985-1014 AD)