उदयनिधि स्टालिन द्वारा दिए गए नफरती भाषण का सरलीकरण करने के लिए अभिनेता से राजनेता बने कमल हासन आगे आए हैं। कमल हासन का कहना है कि सनातन का विरोध करने पर यंग किड को निशाना बनाया जा रहा है। इस दौरान उन्होंने हिंदू धर्म विरोधी पेरियार की बात करते हुए अपनी बात में वजन लाने का प्रयास भी किया।
सनातन को बीमारी बताकर उसे मिटाने की बात कर चुके उदयनिधि की बचकानी उम्र पर तो हम चर्चा नहीं करेंगे पर कमल हासन के तर्क का विश्लेषण अनिवार्य है। डीएमके के साथ कमल हासन की पार्टी के गठबंधन होने की चर्चाओं के बीच उनका हिंदू धर्म या सनातन धर्म के प्रति घृणा को समझा जा सकता है पर इसके लिए कम से कम तर्क का स्तर तो अच्छा होना चाहिए था।
स्टालिन का समर्थन करने के लिए पहले ही डीएमके और इंडि गठबंधन के नेता आगे आते रहे हैं। उदयनिधि के समर्थन में कुछ नेता तो उनसे भी दो कदम आगे जाकर सनातन को एड्स तक घोषित कर चुके हैं। समस्या यह है कि बचाव का तरीक़ा ऐसा रहा कि लोग कन्विंस नहीं हुए। ऊपर से सर्वोच्च न्यायालय ने उदयनिधि के बयान का संज्ञान लेते हुए नोटिस जारी कर दिया।
यह सर्वोच्च न्यायालय के नोटिस का असर है कि उनके बचाव में कमल हासन को आगे आना पड़ा। वैसे तो औपचारिक तौर पर कमल हासन राजनेता हैं पर अब भी उन्हें न केवल ग़ैर राजनीतिक बल्कि बुद्धिजीवी भी माना जाता है।
कमल हासन को पता है कि मामला हेट स्पीच का है इसलिए फ्रीडम ऑफ स्पीच का घिसा पिटा बहाना देने के स्थान पर वक्ता के बौद्धिक स्तर का उपयोग करके बचाव करना चाहिए। समर्थन तो वे भी स्वयं सनातन विरोधी बयान देकर कर सकते थे पर पहले स्वयं हिंदू चरमपंथी बयान के लिए मद्रास हाईकोर्ट से डांट खाने के बाद उन्होंने बीच का रास्ता अपनाना ठीक समझा है।
कमल हासन को परेशानी स्टालिन के बयान से नहीं बल्कि स्टालिन की निंदा करने वालों से है। उनका मानना है कि जिनकी भावनाएं आहत हुई है वो अगर फ्रीडम ऑफ स्पीच का कॉन्सेप्ट नहीं समझ सकते तो स्टालिन को बच्चा समझ कर ही छोड़ दे। आखिर पेरियार भी पहले यह कर चुके है और इससे स्टालिन को भी उनकी शिक्षा पर चलने का फ्री लाइसेंस प्राप्त है।
अपने हिंदू विरोधी बयानों से चर्चा में रहने वाले कमल हासन के लिए स्टालिन का समर्थन करना बिलकुल भी आश्चर्यजनक नहीं है। हां, उनके इस बयान को आने में इतनी देर क्यों लगी इसकी पड़ताल करने पर हमें पता चलता है कि वे पहले क्रिस्टियनिटी के प्रचार का काम कर कर रहे थे, वह भी तब जब वे ख़ुद को एथीइस्ट बताते फिरते थे।
या शायद अपनी राजनीतिक पार्टी के डूबते अस्तित्व को बचाने के लिए कमल हासन को आखिरकार एक ‘यंग किड’ का साथ चाहिए जो उन्हें सिखा सके कि सनातन विरोधी बयान देकर कोर्ट की फटकार से कैसे बचा जाता है।
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