The PamphletThe Pamphlet
  • राजनीति
  • दुनिया
  • आर्थिकी
  • विमर्श
  • राष्ट्रीय
  • सांस्कृतिक
  • मीडिया पंचनामा
  • खेल एवं मनोरंजन
What's Hot

बीआरएस ने लोकतंत्र को बनाया लूटतंत्र; तेलंगाना में प्रधानमंत्री मोदी का विपक्ष पर वार

October 3, 2023

न्यूज़क्लिक पर प्रशासनिक कार्रवाई से क्यों बौखलाया विपक्ष

October 3, 2023

हिंदुओं को बांटकर देश को बांटना चाहती है कांग्रेस; जातिगत सर्वे पर प्रधानमंत्री मोदी का पलटवार

October 3, 2023
Facebook X (Twitter) Instagram
The PamphletThe Pamphlet
  • लोकप्रिय
  • वीडियो
  • नवीनतम
Facebook X (Twitter) Instagram
ENGLISH
  • राजनीति
  • दुनिया
  • आर्थिकी
  • विमर्श
  • राष्ट्रीय
  • सांस्कृतिक
  • मीडिया पंचनामा
  • खेल एवं मनोरंजन
The PamphletThe Pamphlet
English
Home » संविधान की ‘मूलभूत संरचना’ की आड़ में सुरक्षा घेरा बनाती न्यायपालिका
प्रमुख खबर

संविधान की ‘मूलभूत संरचना’ की आड़ में सुरक्षा घेरा बनाती न्यायपालिका

Jayesh MatiyalBy Jayesh MatiyalNovember 28, 2022No Comments4 Mins Read
Facebook Twitter LinkedIn Tumblr WhatsApp Telegram Email
न्यायपालिका
न्यायपालिका
Share
Facebook Twitter LinkedIn Email

देश में जब भी किसी मुद्दे पर विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका आमने-सामने होते हैं, तो बहस स्वत: ही छिड़ जाती है। सवाल उठता है, क्या विधायिका अपनी शक्तियों को असीमित मान कर कानून बनाती है या फिर न्यायपालिका अपने अधिकार क्षेत्र से परे जाकर कार्यपालिका और विधायिका के कार्यों में हस्तक्षेप करती है?

भारतीय संविधान महाकाय है। ऐसा इसलिए क्योंकि अन्य देशों के संविधान में जो चीजें आपसी विचार व सहमति पर छोड़ दी गई थी, भारतीय संविधान निर्माताओं ने उन विषयों को भी मूल संविधान में जगह देकर स्पष्ट किया, ताकि भविष्य में कोई असमंजस की स्थिति न बने।

जहाँ एक तरफ विधायिका के पास कानून, विधि निर्माण का अधिकार है, वहीं न्यायपालिका को उसके न्यायिक पुनरावलोकन का। उद्देश्य यह था कि लोकतंत्र के तीनों अगों के बीच शक्तियों का समुचित विभाजन हो। यदि कोई भी अंग शक्तियों का दुरुपयोग करता है तो उसे रोकने के प्रावधान भी बनाए गए।

संविधान निर्माताओं ने विधायिका और कार्यपालिका की शक्तियों के दुरूपयोग को रोकने हेतु न्यायपालिका को संविधान के संरक्षण, उसकी व्याख्या और न्यायिक पुनरावलोकन की ज़िम्मेदारी सौंपी थी।

हालाँकि, उस समय शायद यह भान नहीं था कि जिस बिल्ली को दूध की रखवाली सौंपी जा रही है अगर वही इसकी आदी हो गई तो फिर क्या होगा? हुआ भी कुछ ऐसा ही। न्यायपालिका ने ‘आधारभूत संरचना’ अर्थात ‘बेसिक स्ट्रक्चर’ की नीति का प्रतिपादन कर अपने अधिकार क्षेत्र की सीमा को समय-समय पर बढ़ाया।

न्यायपालिका के फैसलों में अंतर्विरोध

वर्ष 1975 में संसद ने संविधान में संशोधन कर राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, प्रधानमंत्री एवं लोकसभा स्पीकर की नियुक्ति संबंधित किसी भी प्रकार के विवाद के निवारण हेतु, संसद द्वारा संसदीय कानून के आधार पर नियुक्त प्राधिकारी द्वारा विचार किया जाने का प्रस्ताव रखा था।

इसका मुख्य उद्देश्य, इन नियुक्तियों को न्यायिक समीक्षा से बाहर रखना था। उस समय सर्वोच्च न्यायलय ने इसे निरस्त कर यह सुनिश्चित किया कि इनकी नियुक्ति अथवा चुनाव भी न्यायिक समीक्षा के दायरे में आएगा।

वर्ष 2015 में संसद द्वारा न्यायिक सुधार हेतु एक बड़ा कदम उठाया गया। जिसके तहत सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों की नियुक्ति के लिए एनजेएसी (नेशनल जुडिशल अपॉइंटमेंट कमीशन) का गठन किया।

उस समय सुप्रीम कोर्ट ने एक अभूतपूर्व फैसला सुनाते हुए संसद द्वारा सर्वसम्मति से पारित 99वाँ संविधान संशोधन, 2014 को संविधान के मूलभूत संरचना में फेरबदल और छेड़छाड़ के आधार पर निरस्त कर दिया।

यहाँ न्यायपालिका ने अंतर्विरोध की स्थिति पैदा कर दी। जहाँ एक तरफ देश से सबसे बड़े प्रशासनिक पदों पर नियुक्ति को भी अपने न्यायिक समीक्षा के दायरे में रखा है, वहीं दूसरी तरफ संसद द्वारा न्यायपालिका में व्याप्त अनियमितता में सुधार हेतु बनाए गए कानून को मूलभूत संरचना में छेड़छाड़ के नाम पर असंवैधानिक बता दिया गया।

अब, हर एक फैसले के साथ यह धारणा बनती या बनने दी जा रही है कि दुनिया से सबसे बड़े लोकतंत्र में संसद नहीं बल्कि सुप्रीम कोर्ट सबसे शक्तिशाली संस्था है।

अक्सर यह देखा जाता है कि न्यायपालिका बार-बार संविधान की सर्वोच्चता पर ज़ोर देती है। जिस संविधान ने संसद को अनुच्छेद-368 के अंतर्गत स्वयं में (संविधान में) भी संशोधन का अधिकार प्रदान किया हो, क्या वही संविधान संसद को न्यायपालिका के लिए उपयुक्त नियम, कानून बनाने का अधिकार नहीं देती?

क्यों आवश्यक है, मूलभूत संरचना का सीमा-निर्धारण?

कई बार यह देखा गया है कि न्यायालय राष्ट्रीय सुरक्षा, धार्मिक मान्यताओं, जनहित, अन्य स्वायत संवैधानिक, गैर-संवैधानिक संस्थाओं और मानवाधिकारों से जुड़े मामलों पर अनावश्यक टिप्पणी और विधायिका-कार्यपालिका के कार्यों में हस्तक्षेप करने का प्रयास करता आया है।

सरकार के तीनों अंगों के बीच ‘शक्तियों के विभाजन’ को भी मूलभूत संरचना के अंतर्गत रखा गया है। अब जो संस्था स्वयं की नियुक्ति प्रक्रिया (कॉलेजियम) में सुधार को तैयार नहीं है, उसकी निष्पक्षता पर तो प्रश्न उठना स्वाभाविक है।

अब स्थिति यह है कि जब भी न्यायपालिका किसी विषय को लेकर बैकफुट पर जाता दिखता है तो ‘मूलभूत संरचना’ वाला दाँव चल अपने आस-पास एक प्रकार का सुरक्षा घेरा बना लेती है। इसलिए भी मूलभूत संरचना का सीमा निर्धारण बेहद जरूरी है।

एक बात जो स्पष्ट होनी चाहिए, वह यह है कि किसी भी लोकतंत्र में संसद से बड़ी कोई संस्था नहीं हो सकती है। क्योंकि यह प्रत्यक्ष रूप से जनता का प्रतिनिधित्व करती है और लोकतंत्र में ‘लोक’ ही सर्वोपरि है। चाहे तर्क व्यावहारिक हो या परिभाषा के आधार पर।

जिस प्रकार अन्य संस्थाओं में संस्थागत सुधार के लिए प्रतिबद्धता दिखाते हुए सर्वोच्च न्यायालय लगातार ज़ोर देता आया है, ठीक उसी तरह सुप्रीम कोर्ट को भी इस बात पर गौर करना चाहिए।

अब या तो न्यायपालिका को राष्ट्रीय सुरक्षा, विदेश नीति, धार्मिक मान्यताएँ आदि जैसे महत्वपूर्ण विषयों पर अनावश्यक रूप से हस्तक्षेप करने से बचना चाहिए या फिर संसद को न्यायालय द्वारा दिए गए फैसलों के परिणाम के आधार पर उसकी जवाबदेही तय करनी चाहिए।

Author

  • Jayesh Matiyal
    Jayesh Matiyal

    जयेश मटियाल पहाड़ से हैं, युवा हैं। व्यंग्य और खोजी पत्रकारिता में रूचि रखते हैं।

    View all posts

Share. Facebook Twitter LinkedIn Email
Jayesh Matiyal
  • Facebook
  • X (Twitter)
  • Instagram

जयेश मटियाल पहाड़ से हैं, युवा हैं। व्यंग्य और खोजी पत्रकारिता में रूचि रखते हैं।

Related Posts

बीआरएस ने लोकतंत्र को बनाया लूटतंत्र; तेलंगाना में प्रधानमंत्री मोदी का विपक्ष पर वार

October 3, 2023

न्यूज़क्लिक पर प्रशासनिक कार्रवाई से क्यों बौखलाया विपक्ष

October 3, 2023

हिंदुओं को बांटकर देश को बांटना चाहती है कांग्रेस; जातिगत सर्वे पर प्रधानमंत्री मोदी का पलटवार

October 3, 2023

मनोज झा का समाजवाद प्रेम हिंदू विरोधी एजेंडे का ही हिस्सा है

October 3, 2023

अभिसार शर्मा समेत न्यूजक्लिक के कई पत्रकारों के अड्डों पर दिल्ली पुलिस का छापा, 100 से अधिक पुलिसकर्मी और अर्धसैनिक बल हैं तैनात

October 3, 2023

बिहार: जाति आधारित गणना की रिपोर्ट जारी, शुरू हुई ‘हिस्सेदारी’ की बहस

October 2, 2023
Add A Comment

Leave A Reply Cancel Reply

Don't Miss
प्रमुख खबर

बीआरएस ने लोकतंत्र को बनाया लूटतंत्र; तेलंगाना में प्रधानमंत्री मोदी का विपक्ष पर वार

October 3, 20232 Views

तेलंगाना में जनसभा को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि बीआरएस ने लोकतंत्र को लूटतंत्र बना दिया है।

न्यूज़क्लिक पर प्रशासनिक कार्रवाई से क्यों बौखलाया विपक्ष

October 3, 2023

हिंदुओं को बांटकर देश को बांटना चाहती है कांग्रेस; जातिगत सर्वे पर प्रधानमंत्री मोदी का पलटवार

October 3, 2023

मनोज झा का समाजवाद प्रेम हिंदू विरोधी एजेंडे का ही हिस्सा है

October 3, 2023
Our Picks

बीआरएस ने लोकतंत्र को बनाया लूटतंत्र; तेलंगाना में प्रधानमंत्री मोदी का विपक्ष पर वार

October 3, 2023

हिंदुओं को बांटकर देश को बांटना चाहती है कांग्रेस; जातिगत सर्वे पर प्रधानमंत्री मोदी का पलटवार

October 3, 2023

मनोज झा का समाजवाद प्रेम हिंदू विरोधी एजेंडे का ही हिस्सा है

October 3, 2023

बिहार: जाति आधारित गणना की रिपोर्ट जारी, शुरू हुई ‘हिस्सेदारी’ की बहस

October 2, 2023
Stay In Touch
  • Facebook
  • Twitter
  • Instagram
  • YouTube

हमसे सम्पर्क करें:
contact@thepamphlet.in

Facebook X (Twitter) Instagram YouTube
  • About Us
  • Contact Us
  • Terms & Conditions
  • Privacy Policy
  • लोकप्रिय
  • नवीनतम
  • वीडियो
  • विमर्श
  • राजनीति
  • मीडिया पंचनामा
  • साहित्य
  • आर्थिकी
  • घुमक्कड़ी
  • दुनिया
  • विविध
  • व्यंग्य
© कॉपीराइट 2022-23 द पैम्फ़लेट । सभी अधिकार सुरक्षित हैं। Developed By North Rose Technologies

Type above and press Enter to search. Press Esc to cancel.