देश के अलग-अलग उच्च न्यायालयों में बीते पांच वर्षों में नियुक्त किए गए न्यायाधीशों में से मात्र 4.6% न्यायाधीश ही अनुसूचित जाति/जनजाति से सम्बन्ध रखते हैं जबकि सामान्य और पिछड़े वर्गों से 90% से अधिक न्यायाधीश नियुक्त किए गए। इसी दौरान अल्पसंख्यक समुदाय से 16 न्यायाधीश नियुक्त किए गए हैं।
यह जानकारी केंद्र सरकार के विधि और न्याय मंत्रालय ने राज्यसभा के समक्ष रखी है। न्याय मंत्रालय ने बताया है कि वर्ष 2019 से वर्ष 2023 तक कुल 497 नियुक्तियां की गई हैं। इन नियुक्तियों में से 376 नियुक्तियां सामान्य वर्ग के न्यायाधीशों की हुईं जबकि अन्य पिछड़ा वर्ग से 67 न्यायाधीश नियुक्त किए गए।
इसी दौरान अनुसूचित जाति से मात्र 16 और अनुसूचित जनजाति से मात्र 7 न्यायाधीशों की नियुक्ति की गई है। अगर आँकड़ों पर गौर किया जाए तो पता चलता है कि हाईकोर्ट में नियुक्त किए गए न्यायाधीशों में से 89% न्यायाधीश सामान्य और अन्य पिछड़ा वर्ग से आते हैं। इसमें भी सामान्य वर्ग के न्यायाधीशों की संख्या 75% है। मात्र 4.6% न्यायाधीश ही अनुसूचित जाति/जनजाति से आते हैं। अल्पसंख्यक समुदाय से आने वाले जजों का अनुपात 5.8% है।
केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में बताया है कि हाईकोर्ट में सारी नियुक्तियां संविधान अनुसार होती के माध्यम से होती हैं और इसमें सामान्य आरक्षण के नियम लागू नहीं होते। ऐसे में सरकार इन संस्थानों में आरक्षण को लेकर अभी कोई कदम नहीं उठा सकती है।
हालांकि, राज्य के हाईकोर्ट से सरकार ने यह कहा है कि वह नियुक्तियों के समय अधिकाधिक समाज से आने वाले लोगों का प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करने का प्रयास करें। इसी सम्बन्ध में केंद्र सरकार ने वर्ष 2018 में यह कहा था कि नियुक्तियों के समय यह जानकारी इकट्ठा की जाए कि नियुक्त किए जाने वाले न्यायाधीश किस वर्ग से सम्बन्ध रखते हैं।
24000 से अधिक मामले सुप्रीम कोर्ट में लंबित
वहीं, कानून और न्याय राज्य मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने 20 जुलाई को राज्यसभा को एक लिखित उत्तर में पिछले पांच वर्षों में सुप्रीम कोर्ट में दायर और निपटाए गए मामलों की संख्या भी सूचीबद्ध की। इन आंकड़ों के मुताबिक, सुप्रीम कोर्ट को पिछले साल 42,745 मामले मिले और 36,436 मामलों का निपटारा किया गया। इसी तरह इस साल 15 जुलाई तक 27,998 मामले दाखिल हुए और 25,959 मामलों का निपटारा किया गया।
उन्होंने बताया कि उच्चतम न्यायालय में 24,000 से अधिक मामले 5 वर्ष से अधिक समय से और 8,000 से अधिक मामले 10 वर्ष से अधिक समय से लंबित हैं।
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