भारत के मुख्य आर्थिक सलाहकार वी अनंत नागेश्वरन ने कहा है कि जेपी मॉर्गन के इमर्जिंग मार्केट इंडेक्स में में भारतीय सरकारी बांड को शामिल करने से बांड के लिए निवेशकों का आधार बढ़ेगा और रुपये की वैल्यू में बढ़ोतरी हो सकती है। इसके साथ ही भारत सरकार के लिए ऋण की लागत भी कम होगी।
हाल ही में जारी एक बयान के मुताबिक, जेपी मॉर्गन ने जून 2024 से अपने व्यापक रूप से ट्रैक किए जाने वाले GBI-EM बॉन्ड इंडेक्स में भारत सरकार के बॉन्ड को शामिल करने की योजना की घोषणा की है। इस समावेशन पर कई वर्षों से काम चल रहा था। इससे देश के ऋण बाजारों में अरबों डॉलर की स्थिर विदेशी पूंजी के आकर्षित होने की उम्मीद है।
जेपी मॉर्गन का आकलन है कि 330 अरब डॉलर यानी 26 लाख 40 हजार करोड़ रुपए मूल्य के 23 भारतीय बांड जोड़े जाने के लिए उपयुक्त हैं। ये बांड विदेशी निवेशकों द्वारा पूरी तरह से खरीदे जा सकते हैं। समय के साथ सूचकांक में भारत का वेटेज 10% की अधिकतम सीमा तक पहुंचने की उम्मीद है। वर्तमान में विदेशी निवेशकों के पास कुल भारतीय सरकारी ऋण का केवल 2% हिस्सा है। जेपी मॉर्गन का निर्णय अन्य प्रमुख सूचकांक प्रदाताओं को भी भारतीय बांड शामिल करने के लिए प्रोत्साहित कर सकता है।
इससे भारत के बांड बाजारों में अधिक विदेशी धन आकर्षित होगा। जेपी मॉर्गन के एक सर्वेक्षण से पता चला है कि सूचकांक-योग्य भारतीय बांडों के लिए समर्थन बढ़ रहा है। पिछले साल के 50% की तुलना में 60% उत्तरदाता अब इसके पक्ष में हैं। मिस्र अभी सूचकांक का हिस्सा बना रहेगा लेकिन मुद्रा प्रत्यावर्तन बाधाओं की चिंताओं के कारण अगले 3-6 महीनों में इसकी पात्रता की समीक्षा की जाएगी।
भारत के मुख्य आर्थिक सलाहकार अनंत नागेश्वरन के अनुसार निवेशकों का आधार बढ़ाने के लिए जेपी मॉर्गन द्वारा इंडेक्स में भारतीय बांड्स को शामिल करने से रुपये को बढ़ावा मिल सकता है। इससे भारतीय बांड्स उन बड़े वैश्विक निवेशकों के लिए सुलभ हो जाएंगे जो इस सूचकांक पर नज़र रखते हैं। समावेशन 10 महीनों में चरणबद्ध तरीके से होगा। भारत कुछ समय से वैश्विक बांड्स सूचकांकों में शामिल होने पर जोर दे रहा था और इस प्रक्रिया को सुविधाजनक बनाये जाने के लिए उसने कुछ प्रतिबंध भी हटा दिए थे।
जेपी मॉर्गन इंडेक्स में भारतीय बांड्स को शामिल करना एक महत्वपूर्ण कदम है। यह भारतीय बांड्स को व्यापक उभरते बाजार ऋण स्थानों की उपलब्धता सुनिश्चित करेगा और साथ ही देश को बड़े पैमाने पर वैश्विक संस्थागत निवेशकों के लिए खोल देगा। भारत अपनी बड़ी उधार आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए ऐसे विदेशी संस्थागत निवेशकों को लंबे समय से आकर्षित करना चाहता था।
इसके साथ ही इस कदम से भारतीय अर्थव्यवस्था को और भी कई लाभ होने की संभावना है। इसका सबसे बड़ा लाभ रुपये में स्थिरता है। बांड्स की विदेशी खरीद के कारण देश में पूंजी का प्रवाह बढ़ने से डॉलर के मुकाबले भारतीय मुद्रा में न केवल स्थिरता देखी जा सकेगी बल्कि स्थाई विदेशी निवेश से भारतीय मुद्रा की वैल्यू भी बढ़ेगी। इससे मुद्रास्फीति को नियंत्रण में रखने में मदद करेगी।
इसके अलावा अन्य क्षेत्रों को लाभ मिलेगा। स्थाई पूंजी की उपलब्धता से उधार की लागत कम होने से बैंकों तथा वित्तीय संस्थानों के पास निजी क्षेत्र को ऋण देने के लिए अधिक धन बचेगा जिससे निवेश और विकास को बढ़ावा मिलेगा। निजी क्षेत्र को अधिक ऋण देने से इंफ्रास्ट्रक्चर और मैन्युफैक्चरिंग जैसे क्षेत्रों में निजी निवेश को बढ़ावा मिलेगा। इससे राजकोषीय घाटे को भी कम करने में मदद मिलेगी। इसके साथ घरेलू बैंकों तथा संस्थानों से परे भारतीय बांड्स में निवेशकों का पूल व्यापक होगा और मांग को एक स्थाई स्रोत प्रदान करेगा।
मुख्य आर्थिक सलाहकार वी अनंत नागेश्वरन ने आशा व्यक्त की है कि यह कदम लंबे समय से चली आ रही मांग को संबोधित करता है क्योंकि विभिन्न नियामक बाधाएं दूर हो गई हैं। कुल मिलाकर इस कदम से विकास, निवेश और व्यापक आर्थिक स्थिरता को समर्थन मिलेगा और भारत के बांड्स बाजार को और व्यापकता मिलेगी।