जोशीमठ भू-धसांव ने एक बार फिर इस बात की ओर संकेत किया है कि इंसान के लालच का कोई अंत नहीं है।
उत्तराखण्ड के सम्बन्ध में पहला संकेत साल 2013 में केदारनाथ बाढ़ ने दिया था। दूसरा संकेत फरवरी 2021 में जोशीमठ ग्लेशियर फटने के बाद जो बाढ़ आई, उसने दिया था। इस बाढ़ में करीब 50 लोग मारे गए लेकिन कोई सबक नहीं लिया गया और बिना किसी ठोस योजना के आधार पर पहाड़ी क्षेत्र का शहरीकरण करने का काम चलता रहा। जोशीमठ में विश्व बैंक द्वारा पोषित परियोजनाएं चलती रहीं।
अब धार्मिक स्थलों में जाना एक तरह का पिकनिक स्पॉट बन गया है, फैशन बन गया है, लोगों को बड़े-बड़े आलिशान होटल चाहिए, हेलीकाप्टर सुविधा चाहिए, बियर नॉन- वेज फूड चाहिए, इंस्टाग्राम फॉलोवर्स के लिए रील्स बनाने को चाहिए, न्यू ईयर सेलिब्रेशन पर साइक म्यूजिक चाहिए, सोचिए क्या हालत है आज हिन्दू तीर्थ स्थलों की।
हम सबने उत्तराखंड के जोशीमठ से आई हैरान कर देने वाली फोटोज़ और वीडियोज़ देखे। स्थानीय लोगों ने घरों में आई दरारों को लेकर आरोप लगाया है कि सरकार इसे गंभीरता से नहीं ले रही है। आक्रोशित लोगों ने 4 जनवरी को पूरे जोशीमठ में मशाल जुलूस भी निकाला। अब तक तकरीबन 600 से भी अधिक परिवारों को जोशीमठ से शिफ्ट किया गया है। अक्टूबर 2021 में भी ऐसा ही कुछ देखने को मिला।
विशेषज्ञों ने बताया कि इसकी जांच की जानी चाहिए कि NTPC की तपोवन-विष्णुगढ़ हाइड्रोडेवलपमेंट प्रोजेक्ट और हेलंग बाइपास उत्तराखंड के जोशीमठ शहर में 500 से अधिक घरों में दरारें पड़ने के लिए किस हद तक जिम्मेदार हैं। वहीं कई विशेषज्ञ यह भी कह चुके हैं कि जोशीमठ के धंसने में हाइड्रो पॉवर प्रोजेक्ट्स की कोई भूमिका नहीं है।
जहाँ विज्ञान ख़त्म हो जाता है, वहाँ हमें जरूरत पड़ती है, अध्यात्म की। जोशीमठ की कहानी भी कुछ ऐसी ही है।
भू धंसाव कोई इस वर्ष की घटना नहीं है। यह वर्षों से हो रहा था, सबसे पहले Central Himalaya Geological observations of the Swiss Expedition, 1936 नामक किताब में प्रोफेसर Arnold Heim ने इस बात का खुलासा किया था कि जोशीमठ शहर भूस्खलन के ढेर पर बसा हुआ है।
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1970 की अलकनंदा की बाढ़ के बाद उत्तरप्रदेश सरकार ने 1976 में गढ़वाल के तत्कालीन कमिश्नर महेश चंद्र मिश्रा की अध्यक्षता में वैज्ञानिकों की कमिटी का गठन कर जोशीमठ की संवेदनशीलता का अध्ययन करवाया था।
इस कमेटी ने अपनी रिपोर्ट में कहा था कि जोशीमठ स्वयं ही एक भूस्खलन पर बसा हुआ क्षेत्र है और इसके आसपास किसी भी तरह का भारी निर्माण करना बेहद जोखिम भरा है। कमेटी ने औली की ढलान के ऊपर भी छेड़छाड़ ना करने का सुझाव दिया था ताकि जोशीमठ के ऊपर कोई भूस्खलन व नालों में त्वरित बाढ़ ना आ सके।
1976 की रिपोर्ट में कहा गया था कि भवन निर्माण के भारी काम पर रोक लगे लेकिन वर्तंमान में जोशीमठ में करीब 90 से ज्यादा होटल-रिसोर्ट और होमस्टे हैं।
लगभग 25,000 की आबादी वाला यह नगर अनियंत्रित निर्माण की भेंट चढ़ चुका है।
धौलीगंगा और अलकनंदा नदियाँ विष्णुप्रयाग क्षेत्र में लगातार टो-कटिंग (नीचे से कटाव) कर रही हैं। इस वजह से भी जोशीमठ में भू-धंसाव तेजी से बढ़ा है।
यही नहीं, वर्ष 2013 में आई केदारनाथ आपदा, वर्ष 2021 की रैणी आपदा और बद्रीनाथ क्षेत्र के पांडुकेश्वर में बादल फटने की घटनाएं भी भू-धंसाव के लिए काफी हद तक जिम्मेदार हैं। वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी के भू वैज्ञानिकों की सितम्बर 2022 की एक और रिपोर्ट में भी नियंत्रित विकास की बात की गई है। वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी का मानना है कि जोशीमठ हर साल 85 मिली मीटर की रफ्तार से धंस रहा है।
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कई लोगों का मानना है कि इस भू धसांव का एक कारण जोशीमठ के पास संचालित हो रहे हाइड्रोप्रोजेक्ट्स हैं। हालाँकि वैज्ञानिक तथ्य अभी तक इसका ठोस प्रमाण नहीं दे पाए हैं। सवाल ये है कि जब एक निर्माण से समस्या हो सकती है तो फिर दूसरे क़िस्म के निर्माण से क्यों नहीं हो सकती? जोशीमठ में हर बात पर रेलवे और हाइड्रो परियोजनाओं का हवाला देने वाले लोग ये क्यों नहीं देखते कि हम लोग भी तो ख़ुद जोशीमठ में ख़तरे को नज़रअंदाज़ कर मल्टी स्टोरी बिल्डिंग बना रहे होते हैं।
भू वैज्ञानिकों के अनुसार जोशीमठ जैसे क्षेत्रों में जल निस्तारण की उचित व्यवस्था ना होने पर जमीन में अंदर जाने वाले पानी के साथ मिट्टी के बह जाने से भू धंसाव की स्थिति उत्पन्न हो रही है। हजारों की संख्या में बनी इमारतों के भारी बोझ के अलावा शहर के पानी का समुचित मास्टर प्लान ना होने के कारण यह पानी जोशीमठ की जमीन के नीचे दलदल पैदा कर रहा है।
हिंदुओं के लिए एक धार्मिक स्थल की प्रधानता के रूप में जोशीमठ, आदि शंकराचार्य की संबद्धता के कारण मान्य हुआ। इसे आदि गुरु शंकराचार्य ने स्थापित किया था।
बद्रीनाथ पथ पर एक महत्त्वपूर्ण धार्मिक केंद्र होने के अलावा जोशीमठ व्यापार केंद्र भी रहा है। सैन्य और सुरक्षा की दृष्टि से जोशीमठ एक अहम स्थान है। चीन सीमा के पास होने से आइटीबीपी की एक बटालियन यहीं पर है। साथ ही गढ़वाल स्काउट का मुख्यालय भी है।
जोशीमठ में स्थिति को देखते हुए, अगले आदेश तक सभी प्रकार के निर्माण कार्य रोक दिए गए। एहतियात के तौर पर एनडीआरएफ की टीमों को भी इलाके में तैनात किया गया है।
मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के निर्देश पर जोशीमठ में भूस्खलन से विस्थापित परिवारों को 6 माह के लिए 4,000 रुपए प्रतिमाह के हिसाब से किराए हेतु मुख्यमंत्री राहत कोष से धनराशि स्वीकृत की गई है।
अब सवाल हिंदुओं की आस्था का भी तो है, कुछ ही दिन पहले हमने देखा कि जैन समाज ने सम्मेद शिखरजी के लिए प्राण तक त्याग दिए। उनकी माँग थी कि उनके पवित्र स्थान को टूरिस्ट प्लेस ना बनाया जाए। क्या हमें इस सब से कुछ सीखना नहीं चाहिये?
जोशीमठ को अभी ज़रूरत है हिमालय के हमदर्दों से बचाकर रखने की और उसके उचित रखरखाव की। स्थानीय लोगों की भावनाएँ भी ध्यान में रखी जानी आवश्यक हैं लेकिन जोशीमठ का समाधान प्रकृति के साथ रहकर ही किया जाना चाहिए।