मैं 08:19 की बोरीवली से चर्चगेट को जाने वाली लोकल ट्रेन में बैठ ऑफिस को जाते हुए यह लेख लिख रहा हूँ। मुम्बई में सुबह शाम थोड़ी ठंड होने लगी है। हालाँकि, यहाँ पहाड़ों जैसी ठंड नहीं। मुझे याद आ रहे हैं हॉस्टल के वो दिन जब चारों ओर सफेद बर्फ ही बर्फ होती थी और हम नन्हें बच्चे बर्फ से लकदक मैदान में फुटबॉल खेला करते थे।
बात यही कोई सन् 2000-2002 के आसपास की है। तब देहरादून कंक्रीट का जंगल नहीं बना था। यह एक हरा भरा जिन्दादिल शहर था। गढ़ी कैंट से लेकर नेहरू कॉलोनी के लड़के तड़के सुबह जग कर गोरखा मिलिट्री इंटर कॉलेज के समीप स्थित मैदानों में आकर फुटबॉल खेला करते थे।
वहाँ मैदान में मौजूद सभी लड़के खुद को ‘डिन्हो’ कहलवाना पसन्द करते थे। सब स्केच पेनों, वॉटर कलर आदि से अपनी कमीजों पर नाम- डिन्हो और 10 नम्बर लिखवा लिया करते थे। तब फुटबॉल का बाजारीकरण नहीं हुआ था, भारत में। किसी भी देश या क्लब की जर्सी लेने दिल्ली आदि बड़े नगर जाना होता था।
देहरादून में फुटबॉल खेल रहा हर लड़का डिन्हो कहलवाना चाहता था, खुद को। डिन्हो, यानी रोनाल्डिन्हो; घुंघराले बालों व बच्चों सी मासूम मुस्कान वाला ब्राज़ीली जादूगर।
ब्राज़ील जैसी कद्दावर टीम का 10 नंबर का खिलाड़ी रोनाल्डिन्हो। जिसको रोकने के लिए सम्पूर्ण विश्व के किसी भी कोच के पास कोई सटीक रणनीति कभी भी नहीं होती थी। रोनाल्डिन्हो जब मैदान पर होता, दर्शकों की नजरें बस उन पर ही गढ़ी रहतीं। रोनाल्डिन्हो के खेल में एक अदा, एक नफासत, एक जादू था।
गौरतलब है कि एकबार मैड्रिड के खिलाफ खेलते हुए रोनाल्डिन्हो ने दो गोल दागे। पूरे मैच में कोई उनसे गेंद नहीं छीन पा रहा था। उनके खूबसूरत खेल को देखते हुए विपक्षी फैंस भी अपनी-अपनी सीटों पर खड़े होकर उनके लिए तालियाँ बजा रहे थे।
दरअसल, फुटबॉल मशहूर जरूर यूरोप में हुआ हो लेकिन फुटबॉल की रूह तो दक्षिण अमेरिका में ही बसती है। दक्षिण अमेरिकी फुटबॉल में सूफियाना जुनून है। आप इसमें एक दफा जो डूब गए तो फिर कभी आप फुटबॉल से नाता तोड़ ही नहीं सकते।
दक्षिण अमेरिका के हर छोटे-बड़े देश की हर छोटी-बड़ी गली में आपको बच्चों से लेकर बुजुर्ग सब फुटबॉल खेलते नजर आ जाएंगे। वो फुटबॉल एक मैच जीतने भर के लिए नहीं खेलते, फुटबॉल तो उन्हें सुकून देता है। यूरोपीय फुटबॉल चाहकर भी कभी दक्षिण अमेरिकी जादू को अपने आगोश में न ले सकेगा। दक्षिण अमेरिकी फुटबॉल में अपना अनोखा मैजिकल रिएलिज़्म है।
माराडोना हों या मेस्सी, पेले हों या गारींचा, रोनाल्डो हों या रोनाल्डिन्हो, सभी ने मानो फुटबॉल के मैदान को अपना कोई संगीत उपकरण माना और उस पर एक से एक खूबसूरत साज रचे। ज़ीको, सोक्रातीज़, रिवाल्डो, क्रेस्पो, फोरलान, पाब्लो ऐमार, हुआन रोमान रिकिल्मे, सुआरेज़ आदि न जाने कितने जादूगर हैं, जो दक्षिण अमेरिका ने विश्व को तोहफे स्वरूप प्रदान किए।
जब-जब भी यह खिलाड़ी विश्व भर में कहीं भी किसी भी मैदान में अपने फुटबॉल शूज़ पहने उतरते, मजाल है कि दर्शकों की नजर उनसे हट जाए। उन्हें सदैव सम्पूर्ण विश्व का प्रेम मिला। यहाँ सबसे बड़ी बात है कि यह सभी खिलाड़ी अपने कस्बों की गली मोहल्लों में फुटबॉल खेलते हुए बड़े हुए।
हालाँकि, जब से फुटबॉल एक बड़ा बाजार बनकर उभरा है, फुटबॉल से उसका जादू छिनता जा रहा है। आप पाएंगे कि इस सदी में अब तक सिर्फ दो दक्षिण अमेरिकी टीमें विश्वकप के फाइनल में जगह बना सकी हैं, अफसोस जीती कोई भी नहीं।
फुटबॉल के बाजारीकरण का उस पर यह दुष्प्रभाव पड़ा कि फुटबॉल से धीमे-धीमे उसका जादू छिनता चला गया। अब आपको छोटी उम्र से यही सिखाया जाता है कि जल्द से जल्द गेंद को विपक्षी गोलपोस्ट के आस-पास पहुँचाओ और जरूरी बढ़त लो। फुटबॉल को अब गोल स्कोरर्स की ज्यादा जरूरत मालूम पड़ती है। गोल स्कोरर्स ही अब फुटबॉल के पोस्टर बॉएज़ बन गए हैं।
इस सबके बीच यह बताना जरूरी हो जाता है कि मेस्सी, रोनाल्डो से बढ़कर भी फुटबॉल है। मेस्सी व रोनाल्डो के अलावा भी एक ऐसा खिलाड़ी हैं, जिसके लिए यह आखिरी विश्व कप है। एक ऐसा खिलाड़ी जिसे सारी दुनिया खेल का महानतम राइट बैक मानती है। एक ऐसा खिलाड़ी जिसके खेल में ऐसी खूबसूरती है कि मेस्सी व नेमार जैसे खिलाड़ी भी उनको खेलता देख मंत्रमुग्ध हो जाते हैं। वह खिलाड़ी है 39 वर्षीय दानी आलवेज़।
दानी आलवेज़ का खेल कविता है। दानी आलवेज़ का खेल बेहद ही नैसर्गिक है। उसमें अपना एक सौंदर्य है। उनके जादू की काट दुनिया भर में कभी भी किसी के भी पास नहीं रही। बार्सिलोना के अपने दिनों में वो डिफेंसिव लाइन में खेलते हुए क्रिस्टियानो रोनाल्डो जैसे खिलाड़ी को भी खामोश रखते थे। दानी आलवेज़ ने जब पाया था कि उनके क्लब में उनके एक फ्रेंच साथी लंग कैंसर से पीड़ित हैं तो उन्होंने अपना करियर दाँव पर रख अपने साथी खिलाड़ी को अपना लंग डोनेट करने की पेशकश की थी। दानी ‘द गुड क्रैज़ी’ आलवेज़ से जुड़े और भी न जाने कितने किस्से हैं।
ब्राज़ील की सड़कों में पले बड़े दानी ‘द गुड क्रैज़ी’ आलवेज़ के करियर के अन्तिम सालों के साथ फुटबॉल का एक बहुत बड़ा अध्याय भी समाप्त होने को है। फुटबॉल अब अपनी खूबसूरती खो रहा है। जरूरी है कि हम अपने बच्चों को फुटबॉल थमाएँ, जीतने हेतु नहीं अपितु अपने जीवन में रंग भरने हेतु।
फुटबॉल स्वयं में एक दर्शन है, जो हमें समानता का सिद्धांत सिखाता है। फुटबॉल में है सूफियाना नफासत जो हमें तमाम दुखों के बावजूद जीवन जीने की कला सिखाती है। फुटबॉल जोगा बोनीतो अर्थात ‘द ब्यूटीफुल गेम’ है। इसलिए जरूरी है कि हम ऐसे अदभुत खिलाड़ियों को न सिर्फ सम्मान दें बल्कि सदैव उनकी मीठी यादों को अपने दिल में संजोकर रखें।
“It is not true that people stop pursuing dreams because they grow old, they grow old because they stop pursuing dreams.” – Gabriel García Márquez