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Home » JNU: क्या है ताजा विवाद की इनसाइड स्टोरी?
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JNU: क्या है ताजा विवाद की इनसाइड स्टोरी?

Jayesh MatiyalBy Jayesh MatiyalDecember 2, 2022No Comments5 Mins Read
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जेएनयू विवाद
जेएनयू विवाद
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महीनों बाद जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय (JNU) एक बार फिर चर्चा में है। इस बार मामला है, यूनिवर्सिटी की दीवारों पर बने ग्राफिटी का।

इस बार कुछ ब्राह्मण विरोधी, आरएसएस विरोधी, खून-खराबे और बदला लेने का उल्लेख किया गया है। जेएनयू में पढ़ने वाले एक अलग विचारधारा के छात्र-छात्रा, प्रोफेसर, अति-संवेदनशीलता से लबालब भरे हैं, यह तो हम सब जानते ही हैं।

अपनी छवि के अनुरूप जेएनयू फिर से विवादों के कारण चर्चा में है। हालिया, कुछ घटनाओं के बाद लोगों का ध्यान आकर्षित करने के लिए कुछ तो करना ही था, तो वामपंथी सपोलों ने नई तरकीब निकाल ली।

हर बार की तरह ब्राह्मणवाद, हिन्दू, आरएसएस, खून, बदला, आज़ादी जैसे शब्दों को पिरोकर कुछ ज्वलनशील और भड़काऊ नारे बना दिए गए। वैसे भी इन अद्वितीय कलाओं में इन्होंने सिद्धि प्राप्त कर रखी है।

खैर, इस बार यह ग्राफिटी कोई वामपंथी रेगुलर करिकुलम का हिस्सा नहीं है बल्कि, एक नी-जर्क रिएक्शन है, आसान शब्दों में कहें तो तिलमिलाहट।

अभी कुछ दिनों पहले ही विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) द्वारा यूनिवर्सिटी ग्रांट्स कमीशन (मिनिमम स्टैंडर्ड्स एंड प्रोसीजर्स फॉर अवार्ड ऑफ़ पीएचडी डिग्री) रेगुलेशन, 2022 में संशोधन कर कुछ बड़े बदलावों के साथ पीएचडी डिग्रियों में दाखिला, आवेदन प्रक्रिया और मूल्याँकन पद्धति के लिए नए नियमों की घोषणा की है।

अन्तिम बार इस सम्बन्ध में वर्ष 2016 में यूजीसी द्वारा नियम अधिसूचित किए गए थे। नए नियम तुरन्त प्रभाव से लागू हो गए हैं।

क्या है यूजीसी द्वारा जारी अधिसूचना के नए प्रावधान?

  • यूजीसी द्वारा विचाराधीन चार-वर्षीय स्नातक/ग्रेजुएशन के बाद छात्रों को सीधे डॉक्टरेट प्रोग्राम में दाखिला मिल सकेगा।
  • वर्तमान में स्नातक तीन वर्ष में पूरा होता है।अभ्यर्थी के लिए चार वर्ष के पाठ्यक्रम में न्यूनतम 75 % अंक लाना अनिवार्य होगा। यदि वे ऐसा नहीं करते हैं तो उन्हें एक वर्ष की मास्टर्स करनी होगी, जिसमें न्यूनतम 55% अंक अनिवार्य होंगे।
  • नई अधिसूचना के बाद एम-फिल कोर्स को पूरी तरह से समाप्त कर दिया गया है। हालाँकि, जो छात्र-छात्राएँ इस कोर्स से जुड़े हैं, उन्हें छूट दी गई है।
  • विश्वविद्यालयों और महाविद्यालयों को अधिकार दिया गया है कि वे नेशनल एलिजिबिलिटी टेस्ट (नेट) जूनियर रिसर्च फ़ेलोशिप (जेआरएफ) या प्रवेश परीक्षा के आधार पर छात्रों को एड्मिशन दे सकते हैं।
  • आर्थिक रूप से कमज़ोर (इडब्लूएस) छात्रों को प्रवेश परीक्षा में 5% की छूट दी गई है।
  • पीएचडी स्कॉलर्स के लिए पाठ्यक्रम में डॉक्टरेट की अवधि के दौरान अपने इच्छानुसार चुने गए विषय में शिक्षा/शिक्षण/pedagogy/लेखन आदि विधाओं में प्रशिक्षित करने हेतु प्रावधान जोड़े गए हैं। इसके अतिरिक्त इनके लिए सप्ताह में चार से छ: घंटे शिक्षण अथवा अनुसंधान कार्य के लिए निर्धारित किए गए हैं।
  • वर्तमान पाठ्यक्रम के अनुसार अपने अनुसंधान कार्यों का किसी सम्मेलन में अथवा सहकर्मी से समीक्षा करवाना आवश्यक नहीं होगा।
  • अब वर्किंग प्रोफेशनल्स भी अपने कंपनी से नो-ऑब्जेक्शन सर्टिफिकेट के साथ पार्ट-टाइम पीएचडी कर सकेंगे।
  • नए नियमों के अनुसार पीएचडी के लिए न्यूनतम तीन वर्ष और एडमिशन डेट से अधिकतम छह वर्षों तक निर्धारित किया है।
  • यूजीसी ने नए नियमों को और स्पष्ट करते हुए कहा है कि इससे नए छात्रों को अवसर मिलेगा साथ ही वे तुलनात्मक रूप से कम उम्र में ही पीएचडी पूरी कर पाएँगे।

तिलमिलाहट क्यों?

अब समझना होगा कि दीवारों पर लिखे गए वो शब्द तिलमिलाहट क्यों है और नए नियमों से क्या प्रभाव पड़ने की संभावना है?

सबसे जरूरी बात यह कि अब अधेड़ उम्र के वामपंथियों को सालों तक विश्वविद्यालय में डेरा डालकर बैठने की अनुमति नहीं  होगी। क्योंकि, पीएचडी के लिए अधिकतम छ: वर्ष पाठ्यक्रम निर्धारित कर दिया गया है।

एम-फिल के पाठ्यक्रम को भी समाप्त कर दिया गया है, अब छात्र-छात्राएँ सीधा स्नातक कर पीएचडी में एडमिशन ले सकते हैं। यह एक प्रकार का ब्लॉकेड जो जान-बूझकर बनाया गया था, उसे यूजीसी द्वारा खोलने का प्रयास किया गया है।

अक्सर देखा गया है कि यूनिवर्सिटी कैंपस में छात्र राजनीति करने वाले वामपंथियों को इस बात का अहंकार रहता है कि वे देश के पैसे से पीएचडी कर देश और देश की जनता के ऊपर बड़ा उपकार कर दिया है।

अब संभावना है कि नए प्रावधानों के अनुसार वर्किंग प्रोफेशनल्स जो देश सेवा में टैक्स भी भरते हैं, उन्हें भी अवसर मिलेगा और पीएचडी को लेकर कई भ्रांतियाँ जो फैलाई गई हैं, वह भी दूर होंगी।

आज जेएनयू कोई शिक्षण संस्थान न होकर एक विचारधारा का पोषक बनकर रह गया है। धारणा ऐसी बन गई है कि लोग जेएनयू को देश विरोधी शब्द का पर्याय मान चुके हैं।

जेएनयू में कुंडली मार बैठे अधेड़ उम्र के वामपंथियों और कट्टर इस्लामी व्यक्तियों ने हर फैसले और नियम-कानून का विरोध किया है।  इससे पहले छात्रावास फीस में बढ़ोतरी, यूनिवर्सिटी कैंटीन में मांसाहार भोजन आदि कई मुद्दों पर यह लोग काफी उत्पात मचाते आ रहे हैं।

इस्लामी और वामपंथियों ने जेएनयू जैसे उच्च शिक्षण संस्थान को वैचारिक अमरबेल से जकड़ लिया है। भविष्य में इसका समूल नाश तो सम्भव नहीं है लेकिन यूजीसी द्वारा इस पर लगाम लगाने का प्रयास निरन्तर जारी है।  

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    जयेश मटियाल पहाड़ से हैं, युवा हैं। व्यंग्य और खोजी पत्रकारिता में रूचि रखते हैं।

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