आदिवासियों के लिए, जनजातीय समाज के लिए पीएम मोदी के प्रेम को हम सभी जानते हैं। 2014 के बाद उन्होंने कैसे जनजातीय समाज के लिए काम किया है, वो हमें जमीन पर दिखाई देता है।
भगवान बिरसा मुंडा के जन्मदिवस को जनजातीय गौरव दिवस घोषित करने की बात हो या फिर रांची की जिस इमारत में उन्हें अंग्रेजों ने कैद करके रखा था उसे स्वतंत्रता सेनानी संग्रहालय में बदलने की बात हो। ऐसे अलग-अलग कार्यों से निरंतर आदिवासी नेताओं के योगदान को राष्ट्रीय स्तर पर पहचान दी जा रही है।
इसी क्रम में अब राजधानी दिल्ली के सराय काले खां चौक का नाम बदलकर बिरसा मुंडा चौक किया गया है। इसके साथ ही वहाँ बिरसा मुंडा की भव्य प्रतिमा भी स्थापित की गई है, लेकिन प्रतीत होता है कि झारखंड के सीएम हेमंत सोरेन को ये पसंद नहीं आया, यही कारण है कि झारखंड मुक्ति मोर्चा ने इसका विरोध किया है।
झारखंड मुक्ति मोर्चा ने अपने आधिकारिक सोशल मीडिया अकाउंट से लिखा है कि भगवान बिरसा को उनके कद के हिसाब से सम्मान मिले वरना हूल-उलगान होगा।
सवाल बहुत सीधा है कि 2014 के बाद केंद्र सरकार लगातार बिरसा मुंडा के सम्मान में कार्य कर रही है, क्या वो उनके कद के अनुसार नहीं है?
उनकी जयंती को जनजातीय गौरव दिवस घोषित करना, क्या उनके कद के अनुसार नहीं है? उसी क्रम में सराय काले खां चौक का नाम बदला गया है, फिर इस पर झारखंड मुक्ति मोर्चा को क्यों आपत्ति है?
जेएमएम का कहना है कि छोटे से चौक का नाम रखा गया है। क्या वे नहीं जानते कि सराय काले खां चौक से हर रोज लाखो लोग निकलते हैं।
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इतना ही नहीं RRTS, ISBT, पूर्वी दिल्ली, अक्षरधाम, मेरठ, नोएडा, मेट्रो स्टेशन, यमुना नदी पर बने पुल और बारापुला फ्लाईओवर से गुजरने वाले लाखों लोगों को भगवान बिरसा मुंडा की प्रतिमा दिखाई देगी, क्या ये छोटा चौक है?
सवाल बहुत सीधा है कि आखिरकार क्यों हेमंत सोरेन और जेएमएम बिरसा मुंडा को सिर्फ झारखंड का आइकॉन बनाकर रखना चाहते हैं?
भाजपा सरकार जब बिरसा मुंडा को ग्लोबल आइकॉन बनाने का प्रयास कर रही है तो इसमें जेएमएम को क्यों समस्या हो रही है? ग्लोबल आइकॉन या फिर नेशनल आइकॉन किसी एक कार्य से नहीं बनाया जा सकता बल्कि अलग-अलग स्तर पर, अलग-अलग तरह के प्रयासों से ये संभव किया जा सकता है और वही करने का प्रयास भाजपा सरकार करती दिखाई दे रही है।
याद कीजिए 2014 से पहले आदिवासी स्वतंत्रता सेनानियों के नाम पर कितने राष्ट्रीय कार्यक्रम होते थे? उन्हें राष्ट्रीय विमर्श में कितना स्थान दिया जाता था? उनको लेकर सरकारें राष्ट्रीय स्तर पर क्या करती थी? कुछ भी नहीं।
पीएम मोदी ने एक कार्यक्रम में इसी बात को उठाया है। उन्होंने कहा कि कांग्रेस की सरकारों ने आदिवासी नेताओं के योगदान को नकारने का प्रयास किया है।
पीएम मोदी ने कहा कि एक परिवार को, एक दल को स्वतंत्रता का श्रेय देने के लिए आदिवासी नेताओं के योगदान को नकारा गया। कांग्रेस पार्टी ने ये काम सिर्फ आदिवासी नेताओं के साथ ही नहीं बल्कि देश के और भी तमाम स्वतंत्रता सेनानियों के साथ किया है।
ऐसे में सवाल उठ रहे हैं कि क्या जेएमएम पर भी उसकी गठबंधन की साथी कांग्रेस का असर आ रहा है कि वो भी बिरसा मुंडा चौक का विरोध करती दिखाई दे रही है?
जेएमएम ने कांग्रेस से कभी ये क्यों नहीं पूछा कि स्वतंत्रता के इतने वर्षों बाद भी बिरसा मुंडा को क्यों वो सम्मान नहीं दिया गया जिसके वे हकदार थे और आज जब पीएम मोदी उन्हें सम्मान दे रहे हैं तब जेएमएम को समस्या क्यों हो रही है?