पिछले दिनों प्रवर्तन निदेशालय ने रांची स्थित क्षेत्रीय कार्यालय में झारखण्ड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को समन भेजा था। यह पूछताछ लगभग 10 घंटे तक चली। मामला राज्य के साहिबगंज जिले में 1,000 करोड़ रुपए के अवैध खनन घोटाले का है।
प्रवर्तन निदेशालय की यह कार्रवाई मुख्यमंत्री के करीबी रह चुके पंकज मिश्रा की गिरफ़्तारी के साथ शुरू हुई थी। इसके बाद कई बैंक खाते सील किए गए।
इन्ही पंकज मिश्रा के पास मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन के हस्ताक्षर किए हुए बैंक चेक मिले हैं, इससे मुख्यमंत्री भी जाँच के दायरे में आ गए हैं।
इस बीच एक बार फिर से राज्य में राजनीतिक सरगर्मी भी बढ़ गई है।
चुनाव आयोग द्वारा अगस्त माह में ऑफिस ऑफ़ प्रॉफिट के मामले में राज्यपाल को हेमंत सोरेन की विधानसभा सदस्यता रद्द करने की सिफारिश की जा चुकी थी। हालाँकि, राज्यपाल के आग्रह पर चुनाव आयोग ने पुनर्विचार कर सुझाव भेजे थे, जिन्हें अभी तक सार्वजनिक नहीं किया गया है।
इससे पहले भी सरकार बचाने के दांव-पेंच में विधायकों को कॉन्ग्रेस शासित प्रदेश छत्तीसगढ़ भेजना पड़ा। उस समय आसार नजर आ रहे थे कि कर्नाटक, मध्यप्रदेश और महाराष्ट्र के बाद झारखण्ड में भी ‘ऑपरेशन लोट्स’ सफल होगा। हालाँकि, ऐसा हुआ नहीं।
राजनीतिक अस्थिरता का शिकार झारखण्ड
झारखण्ड लम्बे संघर्ष के बाद अस्तित्व में आया है। यहाँ राजनीतिक अस्थिरता शुरुआत से ही कमजोर कड़ी रही है। स्थापना से अब तक 22 वर्षों के इतिहास में मात्र एक बार ही विधानसभा का कार्यकाल पूरा हुआ, जबकि 3 बार राष्ट्रपति शासन लग चुका है।
यहाँ आलम यह है कि किसी भी पार्टी की सरकार को कार्यकाल पूरा करना उतना ही चुनौतीपूर्ण है, जितना पार्टी के चुनावी घोषणा पत्र में किए वादों को पूरा करना।
झारखण्ड जैसे राज्य की प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग यदि सही तरीके से किया जाए तो पूर्वी भारत के लिए निर्धारित कई लक्ष्यों को पूरा किया जा सकता है।
राज्य में खनिज का अपार भंडार होने बावजूद, वर्तमान एवं पूर्ववर्ती सरकारों की कई औद्योगिक नीतियों के बावजूद भी किसी प्रकार का निवेश होता नहीं दिख रहा है।
पूर्व मुख्यमंत्री रघुवर दास के नेतृत्व में भाजपा की पूर्ण कार्यकाल की सरकार के बाद साल 2019 में जेएमएम-कॉन्ग्रेस-आरजेडी गठबंधन ने सत्ता संभाली। अन्य राज्यों में गठबंधन की सरकार के समान यहाँ भी कॉन्ग्रेस दूसरे नम्बर की पार्टी बनी हुई है।
सरकार बनते ही कॉन्ग्रेस ने जहाँ अपनी 20-सूत्री कार्यक्रम को लेकर जेएमएम और मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन पर दबाव डालने का प्रयास कर रही है। इस पर अभी तक सरकार कोई नीतिगत निर्णय नहीं ले पायी है।
जनजातियों के इर्द-गिर्द घूमती राजनीति
जेएमएम ने अपने कोर वोटर्स आदिवासी-क्षेत्रीय जनजातियों की ईर्द-गिर्द घूमती राजनीति पर ज्यादा बल दिया है। इसी कड़ी में राज्य सरकार ने प्राइवेट सेक्टर में 77% आरक्षण की घोषणा की है। इसके अलावा, सरना-कोड कानून, फूलो-झानो आशीर्वाद योजना और नए नियोजन नीति आदि शामिल हैं।
इस रस्सा-कस्सी के बीच राज्य में कानून व्यवस्था, अवैध बांग्लादेशी घुसपैठ, नक्सल-उग्रवाद, धड़ल्ले से चलता धर्मान्तरण और सांप्रदायिक हिंसा को नज़रअंदाज़ कर दिया गया है।
अधिकारियों के नियमित तबादले से धन-उगाही का आरोप भी सरकार पर लगाया जा रहा है।
गठबन्धन में पड़ती फूट
कॉन्ग्रेस विधायक और नेता खुले मंच से हेमंत सोरेन पर सरकार के कामों का सारा क्रेडिट ले जाने का आरोप भी लगाते रहे हैं। सहयोगी दलों में क्राइसिस मैनेजमेंट कहीं नहीं दिखता। जेएमएम ने बंगाल में कॉन्ग्रेस विधायकों के 50 लाख रुपए नकद पकड़े जाने के बाद गिरफ़्तारी को लेकर सरकार गिराने का आरोप लगा दिया था।
इन तमाम तरह की आशंकाओं के बीच सवाल उठता है कि इस गठबंधन का राजनीतिक भविष्य क्या होगा? हालाँकि, मरता क्या न करता वाली कहावत यहाँ प्रासंगिक बन जाती है।
हालाँकि, हाशिए पर जा रही कॉन्ग्रेस इतना बड़ा राजनीतिक कदम उठाए यह भी मुनासिब नहीं दिखता है।
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