13 नवंबर को झारखंड में पहले चरण के लिए 43 सीटों पर मतदान होना है। ऐसे में आइए समझने का प्रयास करते हैं कि इस समय जमीन पर क्या राजनीतिक समीकरण बन रहे हैं? किस दल को वोट देने के पक्ष में लोग दिखाई दे रहे हैं?
ग्राउंड जीरो पर मौजूद झारखंड के स्थानीय पत्रकारों का कहना है कि इस बार के चुनाव में राज्य के लोग कुछ कॉमन मुद्दों पर सहमत होते दिखाई दे रहे हैं।
उनका कहना है सभी विधानसभा क्षेत्रों में चाहे वे अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित विधानसभा क्षेत्र हो, आदिवासियों के लिए आरक्षित सीटें हो या फिर सामान्य सीटें हो, सभी स्थानों पर लोग बदलाव की बात कर रहे हैं।
इसका अर्थ है कि राज्य की हेमंत सोरेन सरकार के विरुद्ध एंटी-इनकंबेंसी है। याद रखिए कि अगर सत्ताधारी पार्टी के विरुद्ध चुनावों में एक बार एंटी-इनकंबेंसी की हवा चल जाए फिर उसे रोकना लगभग असंभव होता है और झारखंड में इस बार एंटी-इनकंबेंसी की हवा चलती दिखाई दे रही है।
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इंडी गठबंधन की सरकार के विरुद्ध एंटी-इनकंबेंसी के कई कारण हैं लेकिन सबसे बड़ा कारण राज्य में विकास का न होना है। स्थानीय लोगों का कहना है कि राज्य में बेरोजगारी चरम पर है। शिक्षण संस्थाएं बहुत कम हैं, जो हैं भी वे भी बुरी दशा में हैं। पलायन लगातार बढ़ता जा रहा है।
वे कहते हैं कि राज्य सरकार मईयां सम्मान योजना का ढोल बजाती है लेकिन क्या 1000 रुपये में घर चल सकता है? स्थानीय लोग, स्थानीय स्तर पर विकास की मांग उठा रहे हैं। मजे कि बात ये है कि जब लोग विकास की बात करते हैं तो साथ-साथ पीएम मोदी की बात भी करते हैं।
लोगों की बातें सुनकर ऐसा प्रतीत होता है मानो विकास और पीएम मोदी एक-दूसरे के पर्याय हो। लोग कहते हैं कि हमें विकास चाहिए और वो पीएम मोदी ही कर सकते हैं। यह पूछने पर कि इतने विश्वास से कैसे कह सकते हैं, वो केंद्र सरकार की तमाम योजनाओं से मिल रहे लाभों को गिनाने लगते हैं।
इस तरह देखें तो ग्राउंड जीरो पर दो बड़े मुद्दे एंटी-इनकंबेसी और विकास स्पष्ट दिखते हैं। लोगों से बात करके जो एक बात और समझ आती है वो है बदलती डेमोग्राफी को लेकर लोगों की चिंता।
जी हाँ, झारखंड में इस बार लोग इस बात को लेकर सोरेन सरकार पर सवाल उठाते दिखाई दे रहे हैं कि उनकी सरकार घुसपैठियों पर कार्रवाई नहीं करती, बल्कि उन्हें संरक्षण देती है।
उनका कहना है कि बड़ी संख्या में बाहरी लोग आकर अलग-अलग तरीकों से उनकी जमीनों पर कब्जा कर रहे हैं। इसके साथ ही राज्य में व्याप्त भ्रष्टाचार और भर्तियां ना होने को लेकर युवाओं में गुस्सा दिखाई देता है।
“भाजपा को वोट क्यों?” के सवाल पर लोग कई बाते कहते हैं। वे कहते हैं कि पीएम मोदी के नेतृत्व में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत मजबूत बना है। पीएम मोदी इंटरनेशनल बॉस हैं। आर्थिक तौर पर भारत सशक्त बना है।
इसके साथ ही लोग आयुष्मान भारत योजना, प्रधानमंत्री आवास योजना और प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना जैसी योजनाओं से मिल रहे लाभ भी गिनाते दिखाई दे जाते हैं।
ऐसे में देखा जाए तो जमीन पर राजनीतिक माहौल भाजपा के पक्ष में बनता दिखाई दे रहा है। इसके साथ ही अगर राजनीतिक समीकरण की बात करें तो इस बार भाजपा इसमें भी बाजी मारती दिखाई दे रही है।
राजनीति के जानकार कहते हैं कि पिछले चुनाव में बाबूलाल मरांडी अपनी पार्टी के साथ अलग चुनाव लड़े थे और उनकी पार्टी झारखंड विकास मोर्चा (प्रजातांत्रिक) तीन सीटों के साथ चौथे नंबर की पार्टी बनी थी। इस बार मरांडी भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष हैं, उनकी पार्टी का विलय भी भाजपा में हो चुका है।
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इसके साथ ही कोल्हान के टाइगर कहे जाने वाले चंपाई सोरेन के आने से आदिवासियों के लिए आरक्षित 28 सीटों पर भाजपा ने अपनी पकड़ और मजबूत कर ली है। एक फैक्टर ये भी है कि एनडीए गठबंधन में इस बार आजसू भी शामिल है।
सिर्फ इतना ही नहीं बल्कि हेमंत सोरेन की भाभी सीता सोरेन भी इस बार भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़ रही हैं।
ऐसे में देखा जाए तो पीएम मोदी के चेहरे, उनकी विकास योजनाएं, भाजपा सरकारों का विकास का ट्रैक रिकॉर्ड, राजनीतिक समीकरण और हेमंत सोरेन के विरुद्ध बन रहे माहौल को देखकर प्रतीत होता है कि इस बार झारखंड भी हरियाणा की तरह भाजपा के साथ जा सकता है।