मशहूर व्यंग्यकार हरिशंकर परसाई ने अपने एक व्यंग्य ‘दो नाक वाले लोग’ में लिखा था,
“जूते खा गए अजब मुहावरा है। जूते तो मारे जाते हैं। वो खाए कैसे जाते हैं? लेकिन भारतवासी इतना भुखमरा है कि वो जूते भी खा जाता है।”
भारतीय गीतकार और लेखक जावेद अख़्तर आजकल फिर चर्चा में हैं। लाहौर में आयोजित ‘फैज फेस्टिवल’ में उन्होंने पड़ोसी मुल्क को बड़े भाई की तरह जैसे धमकाया और ‘सबक़’ सिखाया है उसके कई अर्थ निकाले जा रहे हैं। कुछ लोगों का तो ये भी कहना है कि जावेद अख़्तर ने यहाँ पर जो भी बयान दिए हैं, उन्हें अगर रुस और यूक्रेन के बीच मध्यस्थता करने भेज दिया जाए तो सालभर से चली आ रही यह जंग शायद समाप्त हो जाए। कुछ ऐसे लोग भी हैं जो कह रहे हैं कि आज जब पाकिस्तान में टमाटर और आटे तक ख़रीदने के लोगों के पास पैसे नहीं बचे हैं, तब उन्हें पाकिस्तान को खरी-खरी सुनाने की याद आई है। ऐसे में हो सकता है जावेद अख़्तर उन्हें डरा धमका कर कुछ दिन मासूम बन ने का संदेश दे रहे हों।
पाकिस्तान से लौटने के बाद जावेद अख्तर मीडिया से मिले। उन्होंने कहा, “पाकिस्तान में भी ऐसे लोग हैं जो दोनों देशों के बीच अमन चैन चाहते हैं। उनका बस चले, तो भारत के साथ आज ही रिश्ते अच्छे कर दें। इन लोगों के दिलों में भारत के आम लोगों के लिए बहुत प्यार और इज्जत है।”
जावेद अख़्तर शायद उन बयानों को याद नहीं करना चाह रहे हैं जिनमें उन्हें पाकिस्तान के वरिष्ठ विचारक ‘नमक हराम’ कह रहे हैं। वो जावेद अख़्तर को नमक हराम किस लिहाज़ से कह रहे हैं वो भी संदेहास्पद ही है।
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पाकिस्तान जा कर जावेद अख़्तर ने जो कुछ कहा उसे कुछ भावुक लोग ‘दूसरी सर्जिकल स्ट्राइक’ नाम दे रहे हैं। जो वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है उसमें जावेद अख़्तर कह रहे हैं,
“यहाँ मैं तकल्लुफ से काम नहीं लूंगा। हमने तो नुसरत के बड़े-बड़े इवेंट्स किए, मेहंदी हसन के बड़े-बड़े फंक्शन किए, लेकिन आपके मुल्क में तो लता मंगेशकर का कोई फंक्शन नहीं हुआ?”
बात भी सही है। पाकिस्तान के नाम पर अक्सर कला और फ़नकारी की दुहाइयाँ भारत में भी दी जाती हैं मगर भारत ने तो सभी का सदैव ही खुले दिल से स्वागत किया है। मुझे कभी कुछ ऐसा याद नहीं आता कि भारत के किसी ग़ज़ल प्रेमी ने कह दिया हो कि उसने नुसरत फ़तह अली ख़ान की कव्वालियाँ सुननी बंद कर दीं क्योंकि उसकी क़व्वालियों में ‘काफिरों’ के लिए अलग से वहसीपन टपकता है जबकि वो हमवतनों के लिए भूल से भी कोई ग़लत शब्द नहीं लाते।
“कुछ तो सोचो मुसलमान हो तुम, काफिरो को ना घर में बिठाओ…” भारत में बैठा जब एक आदर्श ग़ज़ल प्रेमी इन पंक्तियों को सुनता है तो वो ख़ुद को यही यक़ीन दिलाता है कि यह महज़ एक और आर्ट फ़ॉर्म की तरह ही सुन लिया जाना चाहिये और सुनकर आगे बढ़ जाना चाहिए। वो इसमें हिंदू-मुसलमान और भारत-पाकिस्तान नहीं तलाश करता। लेकिन पाकिस्तान के कई कलाकार ऐसे हैं जिन्होंने भारत के ख़िलाफ़ जब और जहां मौक़ा मिला अपना पूरा ज़हर उतारा।
पाकिस्तान से रूठ गए हैं ‘अच्छे दिन’?
पाकिस्तानी कलाकारों ने भारत के पैसों से कभी नफ़रत नहीं की। जब सारा भारत ‘चुपके चुपके रात दिन’ ग़ज़ल पर अपनी शामें सुरमई करता था, तब एक नामी ग़ज़ल गायक ने तो एक बार अपनी हवाई यात्रा में इस बात को क़बूल तक किया था। पाकिस्तान में कला और कलाकारों की कितनी कद्र है इस से एक ऐसा किस्सा याद आया है जिसमें एक ‘मोमिन’ ने ‘काफिरों’ की शराब और पैसे को जायज बताया था। ये किस्सा भारतीय राजनयिकों के गलियारे में ख़ूब चर्चा में रहा है। ये किस्सा है 1990 का, जब पाकिस्तान के एक मशहूर ग़ज़ल गायक और उस दौरान इस्लामाबाद में नियुक्त एक भारतीय राजनयिक साथ में हवाई सफ़र कर रहे थे।
भारतीय राजनयिक इस ग़ज़ल गायक के मुरीद तो थे ही, आस-पास ही बैठे होने के कारण बातचीत का माहौल भी बना हुआ था। ग़ज़ल गायक को लगा कि शायद ये पाकिस्तान के ही राजनयिक हैं और लगे हाथ वो भारत में होने वाले उनके दौरों पर बात करने लगे।
इसी माहौल में पाकिस्तानी फनकार ‘काफ़िर भारतीयों’ पर खूब बरस भी रहे थे। साथ ही, पाकिस्तानी फनकार ने कहा था कि एक ‘मोमिन’ होने के नाते वो भारत देश के काफ़िरों की सिर्फ शराब, शबाब और और पैसा पसंद करते हैं और इसमें उन्हें कोई परेशानी नहीं होती।
प्लेन से अपने हवाई सफ़र से उतरने के बाद जब राजनयिक ने उनसे बताया कि वो पाकिस्तानी नहीं बल्कि भारतीय राजनयिक हैं तो भारतीय शराब, शबाब और रुपए के शौक़ीन ग़ज़ल गायक ने फ़ौरन उनसे माफ़ी माँगी, गिड़गिड़ाए और इस नासमझी के लिए उनसे माफ़ी भी माँगी।
राजनयिक की सिफ़ारिश पर तत्कालीन भारत सरकार द्वारा इस ग़ज़ल गायक को कई वर्षों के लिए भारत में ‘ब्लैकलिस्ट’ कर दिया गया और ‘काफ़िरों’ के इस देश में परफॉर्म करने की अनुमति देने से मना कर दिया।
ये किस्सा शरहद पार के एक कलाकार का जरूर है, लेकिन ये वो हकीकत है जो एक ऐसी कौम की हकीकत है, जो हलाल और हराम के जिक्र किए बिना साँस भी नहीं लेती। भारत ने मशहूर ग़ज़ल गायल मेहदी हसन से ले कर मंटो और साहिर लुधियानवी तक को शरण और मोहब्बत दी, लेकिन इसके बदले भारत को क्या मिला? असहिष्णुता के आरोप और आतंकवाद के तौहफ़े?