वर्ष 2021 में दारुल उलूम देवबंद के मौलाना अब्दुल लतीफ़ क़ासमी के विरुद्ध एक एफ आइ आर फाइल की गई। यह एफ आइ आर फाइल करने वाले आचार्य जगदंबा प्रसाद पंत थे जिनका कहना था कि मौलाना ने हिंदुओं की धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाई है। दरअसल चार वर्ष बाद मौलाना का वर्ष 2017 का एक वीडियो वायरल हो रहा था जिसमें मौलाना ने यह क्लेम किया था कि हिन्दुओं के पूज्य भगवान बद्रीनाथ दरअसल मुस्लिम प्रीचर बदरुद्दीन शाह हैं। अधिक पढ़े-लिखे लोगों को मौलाना की बात बेवकूफी भले लगी हो पर आचार्य जगदंबा प्रसाद पंत को शायद पता था कि यह बेवकूफी से आगे की बात थी और शायद इसलिए ही उन्होंने एफआइआर दर्ज करवाई थी।
ऐसा ही होता है। आम तौर पर ऐसी बात सुनकर हम यह कहते हुए हँस देंगे कि; कैसा जाहिल आदमी है और लोग इसे मौलाना कहते हैं? या फिर व्यंग्य का कोई वाक्य बोलकर आगे बढ़ जायेंगे। पर प्रश्न उठता है कि क्या इसे मौलाना की जाहिलियत कहना या समझना काफी है? प्रश्न यह भी उठता है कि यह मात्र किसी एक मौलाना की रैंटिंग है या ऐसी बातें किसी सोची-समझी योजना के तहत की जाती हैं? आखिर ऐसा कैसे हो सकता है कि मौलाना कहे जाने वाले व्यक्ति को बद्रीनाथ और उससे जुड़ी हिंदुओं की आस्था का ज्ञान न हो?
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हाल ही में एक तथाकथित मुस्लिम स्कॉलर द्वारा सार्वजनिक तौर पर ऐसे-ऐसे क्लेम किये जा रहे हैं जो न केवल ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और धार्मिक रूप से न केवल अपमानजनक और घृणित हैं बल्कि उन्हें सुनकर या पढ़कर लग रहा है जैसे ऐसी बातें योजनाबद्ध तरीके से की जा रही हैं। एक तथाकथित मुस्लिम स्कॉलर को टीवी डिबेट में यह कहते हुए पाया गया कि; मुसलमान ऐसा मानते हैं कि चूँकि यह धरती अल्लाह की है इसलिए इस पर पैदा होने वाला हर व्यक्ति मुसलमान है। कोई खुद को हिंदू, जैन, सिख, क्रिस्चियन या कुछ भी माने लेकिन मुसलमान यह मानते हैं कि इस धरती पर पैदा होने वाला हर व्यक्ति मुसलमान है क्योंकि यह धरती अल्लाह की है।
जमात उलेमा-ए-हिंद के अरशद मदनी तो छुटभैया मौलानाओं और स्कॉलर से कोस भर आगे निकल गए। मदनी ने तार्किक होने की एक्टिंग करते हुए कहा कि; मैंने बहुत सोचा और पाया कि ॐ ही अल्लाह है और वे इस निष्कर्ष पर पहुंचे हैं कि इसका मतलब यह है कि हिंदू जिस मनु को आदि पुरुष कहते हैं वे मनु अल्लाह को ही पूजते थे। यह सब सुनकर मन मानने को तैयार नहीं होता कि मुस्लिम मौलानाओं द्वारा ऐसी बातें अनायास की जा रही हैं। क्या मदनी यह एस्टब्लिश नहीं करना चाहते कि इस्लाम इस धरती पर पहले से था और हिंदू, जैन, बौद्ध वगैरह बाद में आये?
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मनु और मनु स्मृति को दुनिया की सारी समस्याओं की जड़ बताने वाले अचानक मनु को अल्लाह का पुजारी बताने लगे हैं। आखिर और क्या कारण हो सकता है इसका, सिवाय इसके कि इस्लाम को बड़ी बेशर्मी के साथ सबसे पुराना धर्म बनाने की कोशिश के?
आखिर अचानक भारतीय मौलानाओं को यह साबित करने की शगल क्यों चढ़ गई है कि मुसलमान हज़ारों वर्ष से भारत में रहते हैं? इस योजना के पीछे या इस तरह की सोच का क्या कारण हो सकता है? मजे की बात यह है कि ऐसी बातें अब सर्वधर्म सभाओं में कही जाने लगी हैं। मौलाना मदनी द्वारा ऐसी बातें एक सर्वधर्म सभा में कहने का अर्थ यह है कि ऐसी बातों को मात्र जाहिलियत कहकर नकारा नहीं जा सकता। हम यह मानने के लिए तैयार नहीं कि मदनी को इतिहास का ज्ञान नहीं है। ऐसे में इस तरह की सभा, जिसमें जिसमें हिंदू, जैन, सिख और बौद्ध धर्मगुरु थे, उसमें ऐसी बातें कहने का अर्थ यह है कि ये बातें अनायास नहीं कही जा रही हैं।
आखिर ये उसी तरह की बातें है जैसे कोई इतिहासकार अचनाक कहना शुरू कर दे कि सभ्याताएं नदियों के किनारे नहीं बसी बल्कि दुनिया भर की नदियों ने अपना रास्ता बदल दिया ताकि वे सभ्याताओं के किनारे-किनारे बह सकें। और देखा जाए तो कोई इतिहासकार क्यों? रोमिला थापर सार्वजनिक मंच पर यह कह चुकी हैं कि युधिष्ठिर को राज्य त्याग कर हिमालय चले जाने की प्रेरणा सम्राट अशोक से मिली थी।
यदि कोई यह पूछे कि इसके पीछे कौन सा तर्क है, तो उत्तर आएगा कि जब रोमिला थापर कह रही हैं तो तर्क की आवश्यकता है? आखिर, वे ऐसी इतिहासकार जिनके मात्र कह देने भर से कहानी तथ्य बन जाती है।
भारतीय सामाजिक डिस्कोर्स में अचानक फैले इस प्लेग पर विचार करने की आवश्यकता है। प्रश्न पूछने की आवश्यकता है। सावधान रहने की आवश्यकता है। इसलिए भी क्योंकि आजकल हमारा सुप्रीम कोर्ट हिंदू धर्म के विरुद्ध कोई भी प्रार्थना स्वीकार कर लेता है। कल यदि कोई मौलाना सुप्रीम कोर्ट के सामने यह क्लेम लेकर पहुँच जाए कि; चूँकि धरती अल्लाह की है इसलिए हम मनु को मुसलमान मानते हैं। हुज़ूर आप ही बताएं, क्या हम गलत कह रहे हैं? आजकल सुप्रीम कोर्ट हर बात को अपनी कसौटी पर कसना चाहता है तो वह ऐसे पेटिशन को स्वीकार कर ले तो कोई आश्चर्य नहीं होगा।