जल्लीकट्टू पर लंबे समय से चल रही बहस पर सुप्रीम कोर्ट ने अपना फ़ैसला दे दिया है। बृहस्पतिवार के दिन सुप्रीम कोर्ट ने तमिलनाडु सरकार के उस कानून को वैध करार दिया है, जिसमें परंपरागत बैलों की दौड़ यानी जल्लीकट्टू को एक खेल के तौर पर मान्यता दी गई है। सुप्रीम कोर्ट ने जल्लीकट्टू पर रोक लगाने से इनकार करते हुए कहा कि जब सरकार ने जल्लीकट्टू को संस्कृति का हिस्सा घोषित कर दिया है तो हम इस पर अलग नजरिया नहीं दे सकते हैं। इस पर फैसला करने के लिए विधानसभा ही सबसे सही जगह है। सुप्रीम कोर्ट की संविधान बेंच ने इसी के साथ बैलगाड़ी
राजस्थान: जैसलमेर में पाकिस्तान से आए शरणार्थी हिंदुओं के घरों पर चला बुलडोजर
असल में अदालत में जल्लीकट्टू के खिलाफ ये कहते हुए कई क़िस्म की याचिकाएँ लगाई गई थीं कि इस खेल से पशुओं पर अत्याचार होते हैं। लेकिन अब सुप्रीम कोर्ट ने जल्लीकट्टू की इजाजत देने वाले कानून को बरकरार रखा है। कोर्ट ने कहा कि साल 2017 में ‘प्रिवेंशन ऑफ क्रूएलिटी टू एनिमल एक्ट’ में संशोधन किया गया है और इससे पशुओं को होने वाले कष्ट में वास्तव में कमी आई है।
सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ जल्लीकट्टू और बैलगाड़ी दौड़ पर रोक लगाने की मांग करने वाली अलग-अलग याचिकाओं की सुनवाई कर रही थी। 5 जजों की बेंच ने 8 दिसंबर 2022 को मामले में सुनवाई पूरी कर फैसला सुरक्षित रख लिया था और अब क़रीब सवा पांच महीने बाद आज बेंच ने फैसला सुनाया है। पिछली सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट के समक्ष सरकार ने हलफ़नामे में कहा था कि जल्लीकट्टू केवल मनोरंजन का काम नहीं है, बल्कि ये महान ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और धार्मिक महत्व वाला कार्यक्रम है। इस खेल में बैलों पर कोई क्रूरता नहीं होती है।
राज्य सरकार ने ये बात भी सामने रखी थी कि पेरू, कोलंबिया और स्पेन जैसे देश भी बुल फाइटिंग को अपनी सांस्कृतिक विरासत का हिस्सा मानते हैं। इसके अलावा सरकार ने तर्क दिया कि जल्लीकट्टू में शामिल बैलों को साल भर किसान ट्रेनिंग देते हैं ताकि कोई खतरा न हो।
बता दें कि जल्लीकट्टू पोंगल त्योहार का एक हिस्सा है जिसमें भीड़ में एक खुले बैल को छोड़ा जाता है और फिर उसे कंट्रोल करना होता है। सुप्रीम कोर्ट ने PETA की माँग पर 2014 में इस खेल पर रोक लगा दी थी। इसके बाद तमिलनाडु सरकार ने केंद्र सरकार से इस खेल को जारी रखने के लिए अध्यादेश लाने की मांग की। 2016 में केंद्र सरकार ने एक अधिसूचना जारी की और कुछ शर्तों के साथ जल्लीकट्टू के आयोजन की इजाज़त भी मिल गई थी। इस क़ानून के ख़िलाफ़ भी PETA कोर्ट पहुँचा था और उसके बाद ये खेल अंतहीन बहस बनकर रह गया।
तमिलनाडु के लोगों के लिए करीब 2500 सालों से बैल आस्था और परंपरा का हिस्सा रहे हैं। और हर साल खेतों में फसलों के पकने के बाद मकर संक्रांति के दिन पोंगल त्योहार मनाते हैं। बैल को शिव का वाहन माना जाता है और उसकी पूजा के बाद ही ये जल्लीकट्टू का खेल शुरू भी होता है।