कॉन्ग्रेस नेता और सांसद जयराम रमेश ने हास्यास्पद तरीके से अपनी पार्टी द्वारा कर्नाटक में सत्ता पाने के लिए किए गए वादों को पूरा न कर पाने का ठीकरा केंद्र सरकार पर फोड़ दिया है। रमेश ने केंद्र सरकार द्वारा 13 जून को लिए गए एक निर्णय के आधार पर कहा है कि केंद्र सरकार, कर्नाटक की कॉन्ग्रेस सरकार की गरीब परिवारों को चावल उपलब्ध कराने की अन्नभाग्य योजना को पूरा नहीं होने देना चाहती।
जयराम रमेश ने अपने ट्वीट में लिखा है कि केंद्र सरकार द्वारा भारतीय खाद्य निगम (FCI) के स्टॉक में रखे चावल को खुले बाजार में नीलामी के जरिए बेचने पर 13 जून को रोक लगा दी थी, यह निर्णय भाजपा के कर्नाटक में हारने के पश्चात लिया गया। इस निर्णय के आधार पर FCI ने राज्यों को गेंहू बेंचना बंद कर दिया। जयराम रमेश ने आगे लिखा है कि इस निर्णय का एकमात्र उद्देश्य कर्नाटक की अन्न भाग्य योजना को रोकना था।
जयराम रमेश ने आगे लिखा कि देश में इथेनॉल के लिए ₹20/किलोग्राम की दर से चावल दिया जा रहा है। उनका इशारा था कि केंद्र सरकार इथेनॉल के लिए चावल दे रही है लेकिन कर्नाटक की मुफ्त योजना के लिए नही दे रही।
गौरतलब है कि कॉन्ग्रेस ने कर्नाटक में चुनाव जीतने के लिए गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन करने वाले परिवारों के लिए 5 किलो अतिरिक्त चावल देने का वादा किया था। हालाँकि, वोट लेते समय कॉन्ग्रेस ने यह नहीं सोचा था कि सत्ता में आने के बाद वह इस चावल की आपूर्ति कहाँ से करेंगी।
इसी दिशा में कर्नाटक ने केंद्र सरकार के स्टॉक से 2.28 लाख टन चावल खरीदने का प्रयास किया लेकिन केंद्र सरकार पहले ही इसकी बिक्री पर रोक लगा चुकी थी। केंद्र के अतिरिक्त, कर्नाटक की कॉन्ग्रेस सरकार ने अन्य कई राज्यों से भी चावल खरीदने का प्रयास किया लेकिन उन्होंने भी मना कर दिया।
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केंद्र सरकार ने 13 जून को मानसून और महंगाई की स्थितियों को देखते हुए अपने स्टॉक के चावल की बिक्री पर रोक लगा दी थी। इस समय तक मानसून देश में सामान्य से कम के स्तर पर था और कई अनुमान यह बता रहे थे कि खरीफ की बुवाई भी पिछले वर्ष की तुलना में कम हुई है जिससे इस बार धान की फसल का उत्पादन कम रह सकता है। वहीं, चावल की आपूर्ति प्रभावित होने से हाल ही के कम हुई महंगाई के फिर से बढ़ने का भी अंदेशा है।
ऐसे में केंद्र सरकार अपना स्टॉक रोकना चाहती है जिससे आने वाले समय में भी वह गरीबों को सार्वजनिक वितरण प्रणाली के तहत चावल बाँट सके। इसके अतिरिक्त, इस स्टॉक का उपयोग बाजार में महंगाई बढ़ने पर उसे कम करने के लिए भी किया जाता है। केंद्र सरकार ने चावल के निर्यात पर रोक लगा रखी है।
केंद्र सरकार ने यह भी स्पष्ट किया है कि उसका यह निर्णय किसी एक राज्य के लिए नहीं है बल्कि वह सभी के लिए चावल की बिक्री बंद कर रही है। केंद्र ने उत्तरपूर्व और हिंसाग्रस्त राज्यों को छोड़ कर सबके लिए गेंहू की बिक्री बंद करने का निर्णय लिया था। इस निर्णय को लिए जाने के पश्चात केंद्रीय खाद्य मंत्रालय में अपर खाद्य सचिव सुबोध कुमार सिंह ने इंडियन एक्सप्रेस कहा था कि मोदी सरकार पहले से ही देश के 80 करोड़ लोगों को मुफ्त राशन दे रही है।
उन्होंने कहा कि इन लोगों के अतिरिक्त, केंद्र की ज़िम्मेदारी देश के 30-40 करोड़ मध्यमवर्गीय लोगों के प्रति भी है। ऐसे में हमारा प्रयास उन्हें सही दरों पर चावल दिलाना है। इसलिए हमने राज्य सरकारों को चावल की बिक्री बंद की है और इसे अब निजी विक्रेताओं के जरिए बाजार में पहुंचाएंगे। उन्होंने यह भी बताया कि हम FCI के स्टॉक का उपयोग बाजार में कीमतों को स्थिर रखने के लिए करते हैं, लेकिन अगर योजनाओं को पूरा करने के लिए सारा चावल का स्टॉक इन 3-4 राज्यों को दे दिया जाएगा तो हम फिर देश भर में कीमतों को कैसे स्थिर करेंगे?
चावल की कीमतों का देश की खाद्य महंगाई में बड़ी भूमिका है। ऐसे में गेंहू के बाद अगर इसकी कीमत में बढ़ोतरी होती है तो महंगाई को नियंत्रित करना मुश्किल हो जाएगा। अपर खाद्य सचिव ने यह भी कहा कि; जब राज्य योजनाओं का ऐलान करते हैं तो हमसे राय नहीं लेते। वह हमसे तो यह भी नहीं पूछते कि केंद्र इस योजना के लिए आपूर्ति करेगा कि नहीं।
वहीं, कॉन्ग्रेस नेता का इथेनॉल को लेकर किया गया दावा भी तथ्यों से परे है। केंद्र सरकार इथेनॉल बनाने वालों को 20 रुपए/किलो चावल जरुर देती है लेकिन इसके पीछे उसका उद्देश्य देश की आत्मनिर्भरता बाहर से मंगाए जाने वाले कच्चे तेल पर कम करना है। बाहर से आने वाले कच्चे तेल के कारण देश को हर साल बड़ी मात्रा में विदेशी मुद्रा खर्च करनी पड़ती है।
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