‘सर’ सरकार, एक ऐसे इतिहासकार, जिनकी चर्चा आज बहुत कम होती हो या उन्हें बहुत कम लोग जानते हों लेकिन ‘सरकार’ एक ऐसा नाम है जिसे इतिहास में रूचि रखने वाला लगभग हर भारतीय जानता है। उन्हें आधुनिक भारत का पहला इतिहासकार कहा जा सकता है जिन्होंने भारतीय इतिहास को बिना किसी पूर्वाग्रह के अपने समय के अनुसार सही मायनों में ज्यों का त्यों लिखा।
10 दिसंबर 1870 को जन्मे यदुनाथ सरकार शुरू से ही शिक्षा से जुड़े रहे। प्रेसीडेंसी कॉलेज से शिक्षा प्राप्त कर विद्यासागर कॉलेज में अध्यापन का कार्य किया एवं फिर देश के अलग अलग कॉलेजों में सेवा देने के पश्चात 1917 में उनकी नियुक्ति काशी विश्वविद्यालय में इतिहास विभाग के अध्यक्ष के पद पर हुई। आज उन्हीं यदुनाथ सरकार की जयंती है।
ब्रिटिश के बारे में क्या लिखते हैं सरकार
उन्होंने अंग्रेजों के आगमन को मुगलों के आतंक को खत्म करने वाला बताया था। ब्रिटिश शासन के आने का वर्णन उन्होंने कुछ इस प्रकार किया “एक शानदार सुबह की शुरुआत, जैसा दुनिया के इतिहास ने कहीं नहीं देखा।”
सरकार ने कहा, ब्रिटिश शासन ने एक पुनर्जागरण को जन्म दिया। उन्होंने इस घटना को यूरोप के कांस्टेंटिनोपल के पतन की तुलना में व्यापक, गहरा और अधिक क्रांतिकारी बताया था। सरकार मानते थे कि मुग़ल काल के बाद ब्रिटिश शासन का आना भारत के लिए मुक्ति था। अंग्रेजी साहित्य के भी विद्वान थे। इसकी पुष्टि उनकी लिखी गई किताबें करती हैं। उनके लेखन विधा की एक विशेषता थी एक निश्चित अवधि में हुए घटनाक्रम को आकर्षक और ठोस आख्यानों के साथ कथात्मक रूप में इतिहास को पेश करना।
इतिहास में औरंगजेब
औरंगजेब के जीवन पर लिखी गई किताबें सरकार की मुख्य कृतियों में से एक थी जिसे उन्होंने पांच खंडों में लिखा है। उन्होंने औरंगजेब की त्रासदी को मानवता और नियति के बीच संघर्ष के रूप में देखा। उन्होंने औरंगजेब के अपने इतिहास के पांचवें और अंतिम खंड में लिखा; “औरंगजेब की कहानी कठोर भाग्य से जूझते हुए व्यक्ति की कहानी है जिसका मजबूत पुरुषार्थ उम्र के तकाज़े से हार गया।”
उन्होंने औरंगज़ेब के पतन का कारण उसकी मजहबी नीतियों को माना है। सरकार ने लिखा है कि गलत मजहबी नीतियों के पीछे औरंगजेब का धार्मिक रूप से कट्टरपंथी होना था।
ऐसे ही यदुनाथ सरकार की सुन्दर व्याख्यात्मक शैली का एक उदाहरण है उनके द्वारा लिखी गई ‘Fall of the Mughal Empire’ (मुग़ल साम्राज्य का पतन) जो विलियम इरविन द्वारा लिखी गई ‘Later Mughals’ का ही विस्तार भाग है। इस किताब में सरकार बताते हैं कि मुग़ल साम्राज्य ने भारत के कई प्रांतों को एक राजनीतिक इकाई के रूप में एकजुट किया, जिसमें आधिकारिक भाषा, प्रशासनिक मशीनरी, मुद्रा और सार्वजनिक सेवा की एकरूपता थी।
क्षत्रपति शिवाजी पर सरकार के विचार
यदुनाथ सरकार ने यदि औरंगजेब पर लिखा तो, उन्हीं के द्वारा शिवाजी पर लिखा गया इतिहास हमेशा ही सर्वमान्य माना गया। उनकी पुस्तक “शिवाजी ऐंड हिज टाइम्स 1919” में प्रकाशित हुई। सरकार के अनुसार शिवाजी ने भी एक नई एकजुटता की नींव डाली, किंतु मराठा समाज की जाति व्यवस्था की विषमता को वे भी दूर न कर सके और अन्य मराठी नेताओं ने भी महाराष्ट्र के बाहर रहने वाले हिंदुओं को लूट कर संकीर्णता का सबूत दिया। स्पष्ट है कि यदुनाथ सरकार सामाजिक और धार्मिक संकीर्णता को, भारत के राजनीतिक एकता का सबसे बड़ा शत्रु समझते थे।
ज्ञानवापी मुद्दे में यदुनाथ की भूमिका
हाल ही में काशी स्थित ज्ञानवापी मुद्दे पर यदुनाथ सरकार द्वारा लिखित इतिहास की अहम भूमिका रही। वाराणसी में औरंगजेब द्वारा विश्वनाथ मंदिर के विनाश के साक्ष्य साकी मुस्तैद खान द्वारा फारसी में लिखित मासीर-ए-आलमगिरी में उल्लेखित है, जिसका अनुवाद यदुनाथ सरकार ने ही किया था।
किताब के अनुसार, “औरंगजेब को पता चला कि बनारस में काफिरों द्वारा अपनी झूठी पुस्तकों से शिक्षा दी जा रही है, जिसे पढ़ने ब्राह्मण सहित मुस्लिम छात्र भी यहाँ पहुँच रहे हैं।”
“इसके बाद इस्लाम को स्थापित करने के लिए औरंगजेब सभी प्रांतों के मुखियाओं को काफिरों के स्कूलों और मंदिरों को ध्वस्त करने के आदेश देते हैं और इन काफिरों के धर्म की शिक्षाओं और शिक्षा के ढांचों को पूरी तत्परता से गिराने का आदेश देते हैं।”
आज के कथित इतिहासकार इस बात को स्वीकार नहीं कर पाएंगे कि अतीत को उसी तरह से प्रस्तुत किया जा सकता है जैसा कि वह वास्तव में था और इसी इतिहास के जरिए सत्य तक भी पहुंचा जा सकता है। कोई भी इतिहासकार इतिहास लेखन के आधार को लिए हुए तथ्यों के महत्व पर सवाल नहीं उठाता।