ट्विटर के पूर्व सीईओ जैक डोर्सी ने मोदी सरकार पर आरोप लगाये और विपक्ष और उसके इकोसिस्टम ने उन आरोपों को लपक लिया। अब यह शोध का विषय है कि विपक्ष और उसका इकोसिस्टम लपकने के लिए तैयार था, उसके बाद डोर्सी ने आरोप लगाए या फिर डोर्सी ने आरोप लगाए और उसके बाद इकोसिस्टम ने उसे लपका? मामला चाहे जो हो, विपक्ष को अपनी डूबती हुई राजनीति के लिए एक और तिनका मिल गया। देखने वाली बात यह होगी कि विपक्ष इस तिनके को पकड़ कर कितने दिन तैर सकेगा।
दरअसल पिछले नौ वर्षों की विपक्ष की राजनीति का निचोड़ यही है कि वह एक तिनके से दूसरे और दूसरे से तीसरे को पकड़ कर तैरने की कोशिश करता रहा है। अंतर केवल इतना है कि मोदी सरकार के शुरुआती वर्षों में उसे ये तिनके भारतीय व्यवस्था से पत्रकार और आंदोलन देते थे और अब चूँकि राहुल गाँधी ने भारत में ‘असली’ लोकतंत्र लाने का काम विदेशियों को आउटसोर्स कर दिया है, लिहाजा ये तिनके भारतीय विपक्ष और उसके इकोसिस्टम को अब विदेशी थमाते हैं।
जैक डोर्सी ने इकोसिस्टम को तैरने के लिए जो तिनका कल पकड़ाया, इसमें कुछ नया नहीं है। इस तरह के तिनके विदेशी भूमि पर फैली नाना विधि प्रकार की संस्थाएँ कांग्रेस और उसके इकोसिस्टम को समय समय पर देती रही हैं, कभी डेमोक्रेसी इंडेक्स के नाम पर, कभी हंगर इंडेक्स के नाम पर और कभी हैप्पीनेस इंडेक्स के नाम पर। लगभग ऐसा ही एक तिनका कुछ महीनों पहले हिंडनबर्ग ने पकड़ाया था। उस तिनके के सहारे विपक्ष दो ढाई महीने तक तैरा और उसके बाद नये तिनके की खोज में निकल लिया। अब तैरने के लिए उसे नये तिनके की प्राप्ति जैक डोर्सी से हुई है।
पूर्व ट्विटर सीईओ जैक डोर्सी ने भारत सरकार पर लगाए आरोप: भारत के कानूनों को मानने से किया था मना
तिनके ढूँढने और उसे कुछ समय तक पकड़ कर तैरने की इस क़वायद ने विपक्ष को निकम्मा बना दिया है और इस निकम्मेपन ने उसे भारतीय राजनीति और लोकतंत्र में केवल अविश्वास करना सिखाया है। यही कारण है कि विपक्ष और उसका इकोसिस्टम लोकतांत्रिक व्यवस्था में अपनी भागीदारी का न तो रास्ता निकाल पा रहा है और न ही तरीका। इसका उदाहरण पिछले सात-आठ वर्षों में समय-समय पर दिखाई दिया है पर सबसे बड़ा उदाहरण पिछले महीने देश के नये संसद भवन के उद्घाटन के समय दिखाई दिया।
ऐसा विपक्ष जो लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं में भाग लेने के लिए तैयार नहीं है, राजनीतिक व्यवस्था में तैरते रहने के लिए उसे विदेशियों द्वारा दिए गए तिनके के सहारे ही रहना होगा। एक तिनका BBC ने डाक्यूमेंट्री के रूप में पकड़ाया था तो विपक्ष के लिए महीने भर तैरने की व्यवस्था हो गई थी। उसके बाद हिंडनबर्ग ने एक तिनका पकड़ा दिया तो दो ढाई महीने तैरने की व्यवस्था हो गई। अब जैक डोर्सी ने एक तिनका पकड़ा दिया है। विपक्ष भी बड़े आराम से डोर्सी द्वारा सरकाये गए तिनके को पकड़ कर ख़ुश हुआ जा रहा है। शायद यह सोच कर कि पंद्रह दिन तैरने की व्यवस्था हो चुकी है। तैर लो, आगे भी कोई न कोई तिनका पकड़ा ही देगा।
सबसे मजे की बात यह है कि विपक्ष ने न तो BBC के तिनके से कुछ सीखा और न ही हिंडनबर्ग के तिनके से। BBC द्वारा जब डाक्यूमेंट्री का तिनका पकड़ाया गया तब विपक्ष को लगा कि उसे ब्रह्मास्त्र मिल गया। उसने BBC के दफ्तरों पर हुई आयकर विभाग की कार्रवाई को भी बदले की राजनीति बताया। उसके बाद क्या हुआ, सबके सामने है। हिंडनबर्ग द्वारा अदानी समूह पर लगाये गये आरोपों के प्रति जब विपक्ष को यह कह कर आगाह किया गया कि हिंडनबर्ग की अपनी विश्वसनीयता संदिग्ध है, तब उसने इसे सिरे से नकार दिया। उसके सर्वोच्च न्यायालय द्वारा घोषित जाँच समिति की अंतरिम रिपोर्ट में क्या निकला, यह सबके सामने है।
हिंडनबर्ग ने विपक्ष को जो तिनका पकड़ाया था, वह अब बहकर आगे जा चुका है तो उसने जैक डोर्सी द्वारा सरकाया गया तिनका पकड़ लिया है। आज यदि कोई विपक्ष को यह याद दिलाए कि कैसे जैक डोर्सी और उसकी टीम ने भारतीय क़ानूनों को मानने से इनकार कर दिया था या यह कि उसके खिलाफ अमेरिका तक में जाँच चल रही है और उसकी विश्वसनीयता भी बहुत अधिक संदिग्ध है तो विपक्ष इस बात को नहीं सुनेगा। विपक्ष और उसके इकोसिस्टम का ध्यान इस समय पंद्रह दिन के लिए तैरने की खातिर मिले जैक डोर्सी के उस तिनके पर है। इस तिनके का भी वही हाल होगा जो अन्य तिनकों का हुआ है। वह दिन दूर नहीं जब विपक्ष देखेगा कि वह एक तिनके से दूसरे तिनके की खोज में डह डह फिरता रहा और वह ट्रक और दूर जा चुका है जिसकी बत्ती के पीछे राहुल गांधी ने उसे लगाया था।