पिछले कुछ दशकों से इजरायल-हमास युद्ध की एक सबसे बड़ी हकीकत परम्परागत युद्ध में इजरायल की बढ़त और सूचना युद्ध में उसका पिछड़ना रहा है। हमास के आतंकियों द्वारा किए गए हमलों के बाद इजरायल की जवाबी कार्रवाई लगभग हर बार प्रश्नों के दायरे में आ जाती थी। हमास इन हमलों का उपयोग अपने लिए सहानुभूति पैदा करने के लिए करता था। ’महिलाओं और बच्चों’ केन्द्रित सूचना अभियानों और मानवाधिकार संगठनों की सक्रियता एक ऐसा परिप्रेक्ष्य निर्मित करती थी, जिससे हमास के सभी कृत्यों को वैधता मिल जाती थी। इजरायल ‘नैतिकता और मानवता’ के द्वंद्व में फंस जाता था, लेकिन इस बार ऐसा नहीं दिख रहा है।
इजरायल-हमास के ताजा संघर्ष में तमाम प्रयासों के बावजूद हमास को वैसी वैधता और सहानुभूति नहीं मिल रही है, जैसी उसे मिलती रही है। सूचना के मोर्चे पर इजरायल की अभूतपूर्व सक्रियता के साथ वैश्विक सूचना पारिस्थितिकी में आए बदलावों के कारण ऐसा हो रहा है। हमास का हमला होने के कुछ मिनटों के भीतर और जवाबी कार्रवाई करने से पहले इजरायल सूचना और संचार के अनेक मोर्चों पर पूरी ताकत के साथ सक्रिय हो गया था और उस संचारीय-परिप्रेक्ष्य के अनुसार अपने तर्क गढ़ने शुरू कर दिए थे, जिसका उसे सामना करना था।
7 अक्टूबर को 10 बजकर 38 मिनट पर इजरायल डिफेंस फोर्सेज ने सूचना दी कि शबात और सिमचट तोराह की छुट्टियों के बीच हमास ने हमला कर दिया है। साथ ही, खुद की सुरक्षा का संकल्प भी व्यक्त किया। इसके बाद इजरायली डिफेंस फोर्सेज ने धड़ाधड़ रणनीतिक संचार सम्बन्धी कई सूचना-संचार अभियान प्रारंभ किए। अपने कथन को प्रामाणिक और रियल टाइम बनाने के लिए इजरायली डिफेंस फोर्सेज ने अपने प्रवक्ताओं को सैन्य वेशभूषा में ब्रीफिंग के लिए उतारा।
युद्ध की ऐसी स्थिति में ’विजुअल्स’ की वैधता और प्रामाणिकता बहुत अधिक होती है। विजुअल्स किसी भी सूचना युद्ध में सबसे प्रभावी हथियार साबित होते हैं, इसी तथ्य को ध्यान में रखते हुए इजरायल ने अपने कुछ सैनिकों को युद्ध के मैदान से लाइव कवरेज करने के लिए नियुक्त किया है। ऐसी लाइव कवरेज का उपयोग पूरी दुनिया की मीडिया कर रही है और इससे इजरायली पक्ष और उसके तर्कों को मजबूती मिली। इजरायली सुरक्षा बल विदेशी मीडिया को जिस तरह से सुरक्षा प्रदान कर हमास के हमले की वास्तविकता को दिखाने के लिए प्रेरित कर रहे हैं, उससे विभिन्न देशों की मीडिया को अपने ‘विजुअल्स’ बनाने में सहूलियत मिल रही है और इजरायल को वास्तविकता दिखाने में सहायता प्राप्त हो रही है।
इजरायल ने आतंकी ठिकानों पर हमलों की सटीक फुटेज उपलब्ध करवा कर भी अपनी उपस्थिति सूचना और संचार की दुनिया में निरंतर बनाए रखी है।
सूचना-पारिस्थितिकी को पहले ही अपने विजुअल्स से भरकर इजरायल ने हमास द्वारा चलाए जाने वाले ’महिलाओं और बच्चों केन्द्रित‘ परम्परागत सोशल मीडिया अभियान को पैर जमाने का मौका ही नहीं दिया। 16 अक्टूबर को इजरायल डिफेंस फोर्सेज ने X (पूर्व में ट्विटर) के माध्यम से आतंकवादियों की रॉ फुटेज उपलब्ध करवाकर दुनिया भर को आतंकी हमले की वास्तविक झलक दी। विदेशी मीडिया की कवरेज के साथ भी, इजरायल, उसके सुरक्षा बलों और प्रवक्ताओं ने लगातार अपनी संलग्नता बनाए रखी। इससे इजरायल वैश्विक सूचना प्रवाह के प्रति निरंतर सजग बना रहा और आवश्यक तर्कों और तथ्यों को निरंतर परिष्कृत करता रहा।
इजरायल डिफेंस फोर्सेज के जोनाथन कार्निकस और मेजर लिब्बी विश जैसी प्रवक्ता विदेशी मीडिया को जिस तरह से हैंडल कर रहे हैं, उससे स्पष्ट होता है कि इजरायल ने सूचना के मोर्चे को लेकर लम्बी तैयारी की है। प्रवक्ता न केवल मीडिया के व्याकरण को अच्छी तरह समझने वाले हैं, बल्कि मीडिया के ‘टाइम’ और ‘स्पेस’ को अपने हितों की लिए उपयोग करने की कला में पूरी तरह दक्ष हैं। संभावित प्रश्नों का जिस तरह के साहस और तर्कों द्वारा ये प्रवक्ता सामना कर रहे हैं, वह बताता है कि हाल के वर्षो में इजरायल ने परम्परागत आरोपों और आक्षेपों का ‘काउंटर नैरेटिव’ तैयार करने के लिए काफी मेहनत की है।
इससे पहले इजरायल या तो ऐसे आरोपों का उत्तर देने की जरूरत नहीं समझता था या फिर नैतिकता में द्वंद्व में फंसकर सुरक्षात्मक रूख धारण कर लेता था। इस बार इजरायल ने हमास आतंकियों के लिए नई शब्दावली और तुलनाएं गढ़ीं और यह संदेश देने की निरंतर कोशिश की कि मानवाधिकार और मानवतावाद उनको ही दिए जा सकते हैं, जो इसमें विश्वास करते हैं। जो स्वयं ऐसे उदात्त सिद्धांतों में विश्वास नहीं करते, वे इसकी मांग भी नहीं कर सकते। इसीलिए इजरायली रक्षा मंत्री योव गैलेंट ने पहले ही रेखा खींचते हुए कह दिया कि “हम मानव पशुओं से लड़ रहे हैं।” संदेश स्पष्ट था कि ऐसे आतंकियों के साथ युद्ध में मानवाधिकार की बात बेमानी है। इजरायली प्रधानमंत्री ने हमास को आईएसआईए से भी बदतर बताकर अपने देश की कार्रवाई को वैधता प्रदान करने की कोशिश की। यह कहा जा सकता है कि इस संघर्ष में नैतिकता और मानवता के परम्परागत में द्वंद्व में नहीं फंसा।
इजरायल अपनी सूचना और संचार रणनीति में अपने दूतावासों का जमकर उपयोग कर रहा है। भारत के संदर्भों को ध्यान में रखकर भी यदि देखें तो इजरायल की सूचना रणनीति, उसकी तीव्रता और परिप्रेक्ष्य समझ में आ जाता है। भारत में इजरायली दूतावास ने हमले की स्थिति स्पष्ट करने और सहयोग मांगने के लिए हिंदी के साथ अन्य भारतीय भाषाओं में भी ट्टीट किए। उसका प्रयास उस परिप्रेक्ष्य को ही नष्ट करना था, जिसके माध्यम से हमास के प्रति सहानुभूति पैदा होती थी। 11 अक्टूबर, 2023 को भारत में इजरायली दूतावास के X हैंडल ‘Israel in India’ ने लिखा कि ’हमास आतंकवादियों ने बिस्तरों में सो रहे बच्चों, महिलाओं और बुजुर्गों की बेरहमी से हत्या कर दी। आंखें मत मूदें। इस हत्याकांड का सच साझा करें। इसके साथ ही हैशटैग, बैनर भी ट्वीट किए गए। संदेशों में अधिक से अधिक स्थानीयता का समावेश करने की कोशिश की गई। इस रणनीति का स्पष्ट प्रभाव दिख रहा है।
इजरायल की हथियार प्रणाली ‘आयरन डोम’ ने उसे दुनिया भर में विशेष प्रसिद्धि दी है। एक ऐसी हथियार प्रणाली जो हवाई हमलों को हवा में इंटरसेप्ट करती है और वहीं नष्ट कर देती है। ऐसा लगता है कि अब सूचना-संचार के क्षेत्र में भी इजरायल एक ऐसी संचार पारिस्थितिकी और रणनीति बनाने पर काम कर रहा है, जो भावी सूचना हमलों को न केवल शुरुआती अवस्था में ही इंटरसेप्ट करे, बल्कि नष्ट भी कर दे। यह नई संचार पारिस्थितिकी और संचार रणनीति अपना प्रभाव कितने समय तक बनाए रख पाती है, इससे भावी युद्धों की रूपरेखा तय होगी।
यह लेख डॉ जयप्रकाश सिंह द्वारा लिखा गया है। डॉ सिंह हिमाचल प्रदेश केन्द्रीय विश्वविद्यालय के कश्मीर अध्ययन केंद्र में सहायक आचार्य और हायब्रिड वारफेयर के विशेषज्ञ हैं।
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