साल 2011 में, ONGC-VL ने ईरान के सामने फरज़ाद-बी गैस फील्ड से जुड़े हुए डेवलपमेंट प्लान के प्रस्ताव को पेश किया। कुछ समय समझौते को लेकर बातचीत आगे बढ़ रही थी, उसी दौरान ईरान के न्यूक्लियर प्रोजेक्ट्स की वजह से पश्चिमी देशों ने ईरान के ऊपर प्रतिबंध लगा दिए। परिणामस्वरूप प्रस्ताव को लेकर कोई समझौता नहीं हो पाया।
साल 2015 में, जॉइंट कम्प्रेहैन्सिव प्लान ऑफ़ एक्शन (JCPOA) के तहत ईरान पर लगे प्रतिबंध हटा लिए गए। प्रतिबंध हटने के साथ ही ONGC-VL और ईरान की पारस आयल एंड गैस कंपनी (POGC) जो नेशनल ईरान आयल कंपनी (NIOC) का प्रतिनिधित्व कर रही थी, के बीच नए प्रस्तावों को लेकर बातचीत का दौर शुरु हुआ। हालाँकि, यह भी असफल रहा।
साल 2020 में, अमेरिका ने जॉइंट कम्प्रेहैन्सिव प्लान ऑफ़ एक्शन (JCPOA) से खुद को अलग करते हुए ईरान के ऊपर फिर प्रतिबंध लगा दिया। NIOC ने आखिरकार सारे प्रस्तावों को खारिज करते हुए बयान जारी किया कि ईरान सरकार अब इस गैस फील्ड को सिर्फ लोकल कंपनी से ही डेवलप करवाना चाहती है।
इन सभी घटनाक्रमों की वजह से भारत और ईरान के संबंधों में काफी उतार-चढ़ाव देखने को मिले। भारत एक समय पर ईरान के तेल का दूसरे नंबर पर आयातकर्ता था। वह वर्तमान में ईरान से तेल आयात नहीं करता है। दूसरी तरफ ईरान ने भी चाबहार-ज़ाहेदान रेलवे लाइन खुद ही बनाने का एलान कर दिया।
भारत और ईरान के बिगड़ते हुए रिश्तों को देख कर चीन ने ईरान की ओर सकारात्मक रुख अपनाते हुए ईरान के साथ एक कम्प्रेहैन्सिव पार्टनरशिप डील पर हस्ताक्षर किए। इसके तहत ईरान चीन को 25 साल तक सस्ते दाम पर कच्चा तेल सप्लाई करने को तैयार हो गया। दूसरी ओर चीन ने ईरान में बैंकिंग, टेलीकम्युनिकेशन, पोर्ट, रेलवे आदि से जुड़े हुए प्रोजेक्टों में निवेश करने का प्रस्ताव दिया।
फिलहाल, जब भारत की विदेश नीति ने नया रुख लिया है। भारत अपने बूते अपने हितों को देखते हुए फैसले ले रहा है, तो ईरान के सुर भी बदले हैं। ईरान वैसे भी घरेलू तौर पर मुसीबत में है।
जब भी कोई देश या कंपनी किसी दूसरे देश में निवेश करते हैं, तो उस निवेश से जुड़े हुए प्रोजेक्टों के डेवलपमेंट में हिस्सेदारी का पहला हक़ भी उन्हीं निवेशकर्ताओं को ही दिया जाता है। ईरान का भारत को फरज़ाद-बी गैस फील्ड में 30% हिस्सेदारी देने का प्रस्ताव ईरान की महानता के कारण नहीं, बल्कि यह भारतीय कंपनियों द्वारा किए हुए एग्रीमेंट में एक निश्चित दर के साथ खोज में किए गए निवेश का भुगतान करने का प्रावधान है।