ईरान में बीते लगभग तीन महीनों से जारी हिजाब-विरोध प्रदर्शन ने आख़िरकार ईरान की सरकार को घुटनों पर लाकर रख दिया। ईरानी सरकार प्रदर्शनकारियों के निशाने पर आने वाली मोरैलिटी गाइडेंस पुलिस ‘गश्त-ए-इरशाद’ को बन्द करने पर विचार कर रही है।
क्या है पूरी घटना?
तकरीबन ढाई महीने पहले एक ईरानी महिला महसा अमिनी को इस्लामी नियमों के अनुसार हिजाब नहीं पहनने के अपराध में गश्त-ए-इरशाद के अफसरों द्वारा गिरफ्तार कर, उसके साथ हिंसा की गई थी। जिससे उसकी मृत्यु हो गई। इस घटना के बाद अचानक ही राजधानी तेहरान समेत एक साथ पूरे ईरान में हिजाब-विरोधी कानूनों और गश्त-ए-इरशाद का विरोध शुरू हो गया। लोग सैकड़ों और हज़ारों की संख्या में सड़कों तथा सार्वजनिक स्थानों पर प्रदर्शन करने लगे।
इस विरोध प्रदर्शन को दबाने के लिए जब ईरानी शासन द्वारा बल प्रयोग किया गया तो यह प्रदर्शन और भी हिंसक और उग्र हो गया। हर तरफ पत्थरबाज़ी और आगजनी होने लगी। देखते-ही-देखते दुनिया भर की मीडिया में इस प्रदर्शन को जगह मिली और महिलाओं ने सांकेतिक रूप से अपने बाल काट कर ईरान सरकार और इसके हिजाब सम्बन्धी कानून का विरोध जताना शुरु किया।
टेलीविज़न से लेकर सोशल मीडिया तक ईरान में महिलाओं द्वारा सार्वजनिक तौर पर अपने बाल काटते और हिजाब जलाते हुए फोटोज और वीडियो वायरल होने लगे, जिसे देखते हुए ईरानी सरकार ने इंस्टाग्राम और व्हाट्सप्प को प्रतिबंधित तक कर दिया। कई इलाकों में इंटरनेट सेवा भी बंद कर दी गई।
शिया सरकार बनाम कुर्द
कुर्दिस्तान में महसा अमिनी को दफ़नाने के दौरान विरोध में तीन प्रदर्शनकरियों की मृत्यु हो गई थी। इन दो-ढाई महीनों में यह लड़ाई धीरे-धीरे ईरान के रूढ़िवादी इस्लामी शिया शासन बनाम कुर्द भी हो गई। इस्लामी रिवोल्यूशन के चार दशक बाद एक बार फिर कुर्दिस्तान की आज़ादी के नारे लगाए जा रहे हैं।
ईरान के उत्तर-पश्चिमी इलाकों में स्थित कुर्दिस्तान मूलतः एक सुन्नी बहुल इलाका है। इस कारण इन प्रदर्शनों का हिंसक होना स्वाभाविक भी है। चूँकि मध्य एशिया के सभी देश इस्लामिक हैं लेकिन इनके बीच एथनिक (जातीय) और शिया-सुन्नी मान्यताओं के आधार पर झगड़े होते रहते हैं। ईरान में भी एथनिक ग्रुप्स (जातीय समूहों) के बीच आपसी कलह होना सामान्य बात है।
आंदोलन को बाहर से हवा देने का आरोप
ईरानी सरकार ने इन प्रदर्शनों के पीछे अपने धुर-विरोधी अमेरिका और इज़राइल की साज़िश बताया। एक मुस्लिम देश होने के बावजूद भी अज़रबैज़ान के रिश्ते इज़राइल के साथ अच्छे हैं। इसका कारण है, अज़रबैज़ान-अर्मेनिया विवाद, जिसमें इज़राइल हमेशा से अज़रबैज़ान के समर्थन में रहा है। युद्ध के दौरान यह अज़रबैज़ान को हथियार भी देता है और यही आधार है ईरानी शासक अयातुल्लाह खमेनी के इज़राइल पर आरोप लगाने का।
जिस प्रकार पाकिस्तान में पश्तूनों का झुकाव अफ़ग़ानिस्तानी पश्तूनों से है। ठीक उसी प्रकार ईरान में अज़ेरी समुदाय (कुल जनसँख्या का लगभग 17%) का झुकाव अज़रबैज़ान की तरफ है। जिसका फायदा उठाकर अमेरिका और इज़राइल जैसे देश इन प्रदर्शनों को और हवा देने का काम कर रहे हैं।
मानवाधिकारों का उल्लंघन
ईरान जैसे रूढ़िवादी इस्लामी देश में यह घटनाएँ मामूली नहीं है। हिजाब-विरोधी प्रदर्शन में लोगों को फाँसी पर भी चढ़ाया गया। अब तक सैकड़ों लोगों की मृत्यु हो चुकी है और हजारों की संख्या में लोगों को गिरफ्तार किया जा चुका है। ऐसे में मानवाधिकारों के सवालों का उठना भी स्वाभाविक है। यूनाइटेड स्टेट्स ने ईरान के मोरैलिटी पुलिस को ब्लैकलिस्ट कर दिया।
इन सभी घटनाओं के बीच ईरान द्वारा ‘गश्त-ए-इरशाद’ को बंद करने का निर्णय प्रदर्शनकारियों और विशेष रूप से महिलाओं की बड़ी जीत कही जा सकती है।