भारत ग्लोबल वैल्यू चैन (GVCs) में एकीकरण को बढ़ाकर अपने निर्यात और व्यापार को उल्लेखनीय रूप से बढ़ावा दे सकता है। आज वैश्विक व्यापार तेजी से वैश्विक मूल्य श्रृंखलाओं (जीवीसी) के माध्यम से हो रहा है, जहां उत्पादन के विभिन्न चरण कई देशों में फैले हुए हैं।
विनिर्माण क्षमताएं होने के बावजूद भारत की वर्तमान में GVCs में सीमित भागीदारी है। ऐसे में कुछ नीति परिवर्तन ही चुनौतियों से निपटने में में मददगार साबित हो सकते हैं। सही योजनाओं और नीतियों की सहायता से भारत को 2030 तक अपने विदेशी व्यापार को 1.2 ट्रिलियन डॉलर तक बढ़ाने में मदद मिल सकती हैं।
वैश्विक व्यापार का लगभग 70% अब ग्लोबल वैल्यू चेन के भीतर होता है। विभिन्न देश विभिन्न चरणों के विशेषज्ञ हैं। जैसे डिजाइन से लेकर किसी उत्पाद के विभिन्न घटकों के उत्पादन और उनकी एसेंबलिंग तक अलग-अलग देशों में होने लगी है। इलेक्ट्रॉनिक्स, ऑटोमोबाइल और अन्य उद्योगों के ग्लोबल वैल्यू चेन आज कई देशों में फैले हैं।
भारत में उच्च-मूल्य वाले क्षेत्रों में भाग लेने की क्षमता है, लेकिन उसे वर्तमान में इंफ्रास्ट्रक्चर की बाधाओं जैसी चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। पिछले कुछ समय में चीन, जापान और दक्षिण कोरिया जैसे अन्य एशियाई देशों ने व्यापार बुनियादी ढांचे में केंद्रित निवेश के माध्यम से ग्लोबल वैल्यू चेन की सहायता से मैन्युफ़ैक्चरिंग में अच्छा प्रदर्शन किया है।
ग्लोबल ट्रेड रिसर्च इनिशिएटिव (GTRI) की हाल में आई एक रिपोर्ट में ग्लोबल वैल्यू चेन के एम एकीकरण में वृद्धि से भारत के लिए अवसरों का विश्लेषण किया गया है। इस विश्लेषण में पाया गया कि मौजूदा कमियों को दूर करने से वर्ष 2030 तक भारत के विदेशी व्यापार में 1.2 ट्रिलियन डॉलर जोड़ने में मदद मिल सकती है। बंदरगाहों में सुधार, व्यापार में सुविधा, एंकर फर्मों को आकर्षित करने और उच्च तकनीक क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित करने के संबंध में छह मुख्य सुझाव दी गईं है।
रिपोर्ट के मुताबिक बताए गए छः सुझाव कुछ इस प्रकार हैं –
पहला सुझाव 99% शिपमेंट के लिए ग्रीन चैनल मंजूरी जैसे उपायों के माध्यम से बंदरगाह और सीमा शुल्क प्रक्रियाओं को स्वचालित करने का सुझाव देता है। दूसरा यह कि अवसरों की पहचान करने के लिए भारत के 85% निर्यात के लिए जिम्मेदार शीर्ष 10,000 निर्यातकों का विश्लेषण करने का सुझाव देता है।
एक अन्य प्रमुख सुझाव में अनुसंधान एवं विकास, डिजाइन, प्रोटोटाइपिंग और बिक्री के बाद जैसे GVCs के उच्च-मूल्य वाले खंडों पर ध्यान केंद्रित करना शामिल है। देशों ने विभिन्न कार्यों में विशेषज्ञता हासिल की है – अमेरिका, जर्मनी अनुसंधान एवं विकास में उत्कृष्ट हैं जबकि चीन असेंबली पर ध्यान केंद्रित करता है।
उदाहरण के तौर पर, रिपोर्ट में iPhone और लैपटॉप जैसे उत्पादों के लिए ग्लोबल वैल्यू चैन (GVCs) का विवरण दिया गया है। यह बताता है कि विभिन्न देश विशिष्ट घटकों या सेवाओं में कैसे योगदान करते हैं। अंतिम असेंबली आमतौर पर चीन में होती है। हालाँकि, Apple जैसी कंपनियाँ अब भारत में भी कुछ उत्पाद असेंबल कर रही हैं।
रिपोर्ट में जहाज के टर्नअराउंड समय में सुधार और कतारों को कम करने के लिए अन्य देशों की सर्वोत्तम प्रथाओं को बेंचमार्क करने का भी आह्वान किया गया है। इसमें व्यापारियों, शिपिंग कंपनियों, बंदरगाहों और सीमा शुल्क जैसे प्रासंगिक हितधारकों के बीच संचार बढ़ाने के लिए कहा गया है। निर्यात-आयात अनुपालन प्रक्रियाओं को एकीकृत करने के लिए राष्ट्रीय व्यापार नेटवर्क नामक एक ऑनलाइन प्लेटफ़ॉर्म प्रस्तावित है।
इन उपायों को एकीकृत करने से मौजूदा बाधाओं को दूर करने में मदद मिल सकती है और वैश्विक उत्पादन नेटवर्क में भारतीय कंपनियों की अधिक प्रभावी भागीदारी हो सकती है। इससे भारत के निर्यात और विदेशी व्यापार को काफी बढ़ावा मिलेगा।
यदि रिपोर्ट में दिए गए उपायों अथवा सुझावों को अच्छी तरह से लागू किया जाता है, तो भारत GVCs भागीदारी की वर्तमान सीमाओं को पार कर सकता है। इससे घरेलू कंपनियों को वैश्विक उत्पादन नेटवर्क में एकीकृत होने और निर्यात अवसरों का लाभ उठाने की अनुमति मिलेगी। सफल होने पर, यह आने वाले दशक में भारत के विदेशी व्यापार में 1.2 ट्रिलियन डॉलर की महत्वपूर्ण राशि जोड़ सकता है,और इसे अंतर्राष्ट्रीय व्यापार में एक प्रमुख खिलाड़ी बना सकता है।
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