चेन्नई. चोलवंश की रानी सेम्बियन महादेवी की एक प्राचीन मूर्ति, जो कि 100 साल पहले नागपट्टिनम के एक मंदिर से चोरी हो गई थी, वह सीआईडी की मूर्ति विंग द्वारा वाशिंगटन में एक आर्ट गैलरी में खोज ली गई है। 10 वीं शताब्दी की यह पंचलौह मूर्ति सेम्बियन महादेवी गांव में कैलासनाथर भगवान शिव मंदिर की उत्सव मूर्ति थी।
दिलचस्प बात यह है कि सेम्बियन महादेवी उत्तम चोल की माँ और राजराजेश्वर चोल की दादी थीं, जिनपर तमिल में उपन्यास लिखा गया था और जल्द ही उनपर पोन्नियिन सेलवन नाम की फिल्म रिलीज होने वाली है।
मूर्ति विंग सीआईडी ने ई. राजेंद्रन नाम के व्यक्ति से प्राप्त एक शिकायत के आधार पर प्राचीन मूर्ति की जाँच शुरू की थी। शिकायत में कहा गया था कि मूर्ति को 1950 के दशक में अधिकारियों और स्थानीय लोगों की मिलीभगत से चुराया गया था। राजेंद्रन ने 2015 में वाशिंगटन डीसी की फ्रीर गैलरी ऑफ आर्ट में उस मूर्ति को देखा था, और इस मूर्ति की सम्भावित पहचान के आधार पर शिकायत दर्ज की थी।
उन्होंने आरोप लगाया कि उन्होंने वाशिंगटन की फ्रीर आर्ट गैलरी और आर्थर एम. सैकलर गैलरी में कई चोल-युग की मूर्तियों को देखा था। मूर्ति विंग सीआईडी प्रमुख जयंत मुरली ने इस मामले की गहराई जांच की और कथित मूर्ति को वाशिंगटन डीसी में गैलरी में पाया।
मूर्ति विंग सी.आई.डी. द्वारा जारी विज्ञप्ति में कहा गया है कि, “हालांकि शिकायतकर्ता ने अपनी शिकायत में दावा किया है कि मूर्ति की चोरी 1959 के बाद हुई थी, पर सीआईडी की जांच से पता चलता है कि इसे 1929 से पहले ही मंदिर से चुरा लिया गया था। फ्रीर गैलरी ऑफ आर्ट ने मूर्ति को न्यूयॉर्क में पुरातत्वविद् हैगोप केवोर्कियन से 1929 में अज्ञात क़ीमत पर खरीदा था। 1962 में हैगोप केवोर्कियन की मृत्यु हो गई थी। इसलिए हैगोप केवोर्कियन ने मूर्ति को किससे और कैसे प्राप्त किया, यह अभी भी जांच का विषय है।”
यह अत्यधिक ख़ूबसूरत शैली की मूर्ति प्राचीन भारतीय कला में राजसी और दैवीय व्यक्तित्वों के बीच की रेखा के धुंधले होने का भी उदाहरण है। रिलीज़ में यह भी कहा गया है कि, “जहाँ एक ओर मूर्ति की लम्बी देह और सुंदर अंग मुद्रा देवी पार्वती की याद दिलाते है, जिसमें उनका सिल्क का परिधान निचले पैरों तक लटका हुआ है, वहीं दूसरी ओर मूर्ति के चेहरे का आकार, चिपके हुए होठ, लंबी नाक और दाहिने हाथ में कत्थक की मुद्रा उन्हें सेम्बियन महादेवी जैसा दिखाती है”।
सीआईडी की आइडल विंग की जांच ने यह पुष्टि भी की कि शिव मंदिर में सेम्बियान महादेवी की मौजूदा मूर्ति नकली है। डीजीपी आइडल विंग, जयंत मुरली ने कहा कि यूनिट को यूनेस्को संधि के तहत जल्द ही मूर्ति को वाशिंगटन की आर्ट गैलरी से पुनः प्राप्त करने और कैलासनाथर मंदिर में पुनर्स्थापित करने की आशा है। स्थानीय लोगों और मन्दिर के पुजारियों ने भी मूर्ति को जल्द लाने की मांग की है।
कौन थीं सेम्बियन महादेवी ?
सेम्बियन महादेवी, जिनके पति गंधारादित्य ने 949 ई. से 962 ई. तक शासन किया था, वह छोटी उम्र में ही विधवा हो गई थीं। महादेवी लोककलाओं के संरक्षण के प्रति बहुत गम्भीर थीं, परम शिवभक्त थीं और बहुत धार्मिक व दानी थीं, इसलिए वह राज्य में अत्यधिक सम्मानित थीं। उन्होंने अपना अधिकांश जीवन नए मंदिरों के निर्माण और समाजकल्याण के लिए समर्पित कर दिया था, उन्होंने तमिलनाडू के कुत्रालम, विरुधाचलम, अदुथुराई, वक्कराई, अनंगुर, आदि में अनेक मन्दिरों का निर्माण किया था।
तिरु आरानेरी अलवार मंदिर उनके द्वारा निर्मित सबसे पुराने मंदिरों में से एक है। उन्होंने 967-968 ई. में नल्लूर के कंडास्वामी मंदिर को कांस्य और आभूषण के कई उपहार दिए थे, जिसमें नल्लूर मंदिर की देवी की आज भी पूजा की जाने वाली कांस्य मूर्ति भी शामिल है, इस मूर्ति की शैली सेम्बियन कांस्य की विशिष्ट शैली है।
परकेसरीवर्मन उत्तम चोल के एक शिलालेख से ज्ञात होता है कि राजमाता महादेवी के जन्मनक्षत्र ज्येष्ठा के दिन हर महीने कोनेरिराजपुरम में उमा महेश्वरस्वामी मंदिर में एक नियमित श्रीबलि समारोह आयोजित किया जाता था। मंदिर की नियमित व्यवस्था को बनाए रखने के लिए अन्न के लिए बहुत सा धान और बहुत भूमि दान की गयी थी जिसका पूरा विवरण भी दिया गया है। रानी सेम्बियन के जन्म नक्षत्र ज्येष्ठा पर आयोजित श्रीबलि-समारोह में पूजा के साथ साथ विशाल भोज का आयोजन भी किया जाता था।
उनके जीवनकाल के दौरान, उनके नाम पर स्थापित सेम्बियन महादेवी नगर के विशाल शिव मंदिर में उनके जन्मदिन पर उनके नाम से विशेष उत्सव का आयोजन किया जाता था। राजपरिवार द्वारा उनके सम्मान में राजमाता महादेवी की एक धातु की मूर्ति मंदिर में प्रदान की गयी थी जिसे उनके जन्मदिन समारोह की शोभायात्रा में उपयोग किया जाता था, यह मूर्ति संभवतः उनके बेटे महाराज पराकेसरी उत्तम चोल ने मन्दिर को प्रदान की थी।
आज भी दक्षिण भारत में सेम्बियन महादेवी को उसी श्रद्धा से याद किया जाता है जितनी श्रद्धा से उत्तरभारत में अहिल्याबाई होलकर को और बंगाल में रानी रासमणि को याद किया जाता है।