प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सितंबर, 2016 में उरी में हुए आतंकी हमले के ठीक बाद पाकिस्तान को चेतावनी देते हुए कहा था कि ‘खून और पानी एकसाथ नहीं बह सकते’। इस आतंकी हमले के ग्यारह दिन बाद ही प्रधानमंत्री मोदी ने सिंधु जल संधि की समीक्षा की बात कही थी। यह भी तय माना जाने लगा कि यदि भारत इस समझौते पर कोई फ़ैसला लेता है तो पाकिस्तान की स्थिति बदतर हो सकती है। आज भारत ने इस समझौते पर फिर बहस छेड़ दी है। आर्थिक कंगाली से जूझ रहे पाकिस्तान पर इस मुद्दे के क्या परिणाम हो सकते हैं?
भारत और पाकिस्तान के बीच वर्ष 1960 के सिंधु जल समझौते (Indus Water Treaty) पर लगातार सवाल उठते रहे हैं। इस संधि के अंतर्गत पानी के बंटवारे, उसके उपयोग समेत पानी पर बनने वाली परियोजनाओं और अन्य विषयों पर पाकिस्तान लम्बे समय से विवाद करता आया है।
अब भारत ने समझौते में आवश्यक बदलाव के लिए पाकिस्तान को पत्र लिखा है। भारत की मांग है कि समझौते के शर्तों में अब समयानुकूल बदलाव किए जाएं। विदेशी मामलों पर लिखने वाले पत्रकार सिद्धांत सिब्बल के अनुसार, भारत ने पाकिस्तान को एक नोटिस जारी कर के समझौते की शर्तों को बदलने की बात की है और उसे 90 दिनों के अंदर बातचीत के लिए मेज पर आने को कहा है।
भारत का यह कदम पाकिस्तान की बदहाल आर्थिक हालातों के बीच आया है। हालांकि इस मामले में भारत के विदेश मंत्रालय की तरफ से अभी तक कोई बयान नहीं आया है। सिब्बल के अनुसार नोटिस में लिखा गया है कि पाकिस्तान को बातचीत के लिए बैठ कर 62 वर्षों के अनुभव भी साझा करने चाहिए।
क्या है सिंधु जल समझौता?
Indus Water Treaty भारत और पाकिस्तान के बीच सिंधु नदी और उसके साथ बहने वाली 5 नदियों, झेलम, चिनाब, रावी, सतलुज और ब्यास के पानी के बंटवारे को लेकर किया गया समझौता है। यह समझौता भारत और पाकिस्तान के बीच वर्ष 1960 में किया गया था।
समझौते पर भारत की ओर तत्कालीन प्रधानमंत्री स्वर्गीय जवाहरलाल नेहरू और पाकिस्तान की ओर से वहाँ के तत्कालीन राष्ट्रपति जनरल अयूब खान ने हस्ताक्षर किये थे। समझौते में विश्व बैंक ने एक गारंटर की भूमिका निभाई थी। समझौते के अनुसार विश्व बैंक की भूमिका दोनों देशों के बीच भविष्य में होने वाले किसी संभावित विवाद के निपटारे के लिए निष्पक्ष पर्यवेक्षक या विशेषज्ञ की नियुक्ति की थी।
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भारत और पाकिस्तान के बीच हुए इस समझौते की एक और शर्त के अनुसार दोनों देशों के बीच पानी के बंटवारे या उससे सम्बंधित अन्य विवाद का हल निष्पक्ष विशेषज्ञों द्वारा न निकाल पाने की स्थिति में दोनों देश अंतरराष्ट्रीय न्यायालय में जा सकते हैं। साथ ही, दोनों देशों के बीच समझौते को सुचारू रूप से चलाने के लिए परमानेंट इंडस कमीशन बनाया गया, जो दोनों देशों के बीच संवाद का माध्यम है।
सिंधु जल समझौते के मूल तत्व
भारत और पाकिस्तान के बीच जिन नदी समूह के पानी के बंटवारे को लेकर समझौता हुआ उनमें सिंधु मुख्य नहीं है। बाकी नदियाँ भारत और पाकिस्तान में अलग-अलग जगहों पर सिंधु नदी में मिल जाती हैं। सिंधु नदी अरब सागर में गिरती है।
1960 के दौरान दोनों देशों को कृषि के लिए सिंचाई के साधनों को विकसित करने समेत बाढ़ रोकने और नदियों के तंत्र को विकसित करने के लिए एक समझौते की आवश्यकता थी और इसे देखते हुए विश्व बैंक मध्यस्तता के लिए राजी हुआ। पश्चिमी पाकिस्तान (आज का पाकिस्तान) के पास स्वतंत्रता से पहले पंजाब राज्य का बड़ा हिस्सा है जिसमें यह सभी नदियाँ बहती हैं।
ऐसे में उसे अपनी पानी की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए भारत की ओर से एक रजामंदी चाहिए थी कि आने वाले समय में उसके पानी के स्रोतों पर खतरा नहीं आएगा क्योंकि इनमें से सभी नदियों का (सिंधु को छोड़कर) उद्गम स्थल भारत में ही है।
भारत और पाकिस्तान के बीच सितम्बर, 1960 में हुई यह जल संधि दोनों देशों के बीच पानी के बंटवारे, उसके उपयोग, विवाद की स्थिति में उससे निपटने के तरीके और आपस में आंकड़ों की साझेदारी जैसे मुद्दों को लेकर की गई थी। संधि के बाद भारत और पाकिस्तान दोनों को विश्व बैंक ने कुछ लोन भी दिए थे।
संधि के अंतर्गत पूर्वी नदियों- सतलुज, रावी और ब्यास के पानी के ऊपर भारत को बिना किसी रोक टोक के उपयोग की इजाजत दी गई थी और पश्चिमी नदियों- सिंधु, झेलम और चिनाब के पानी के उपयोग के ऊपर पाकिस्तान को इजाजत दी गई थी।
इन नदियों के पानी के उपयोग में सिंचाई और पनबिजली परियोजनाएं शामिल हैं। सिंधु जल संधि के अंतर्गत पूरे सिंधु प्रवाह तंत्र का अधिक फायदा पाकिस्तान को मिलता है। पानी के बंटवारे में लगभग 80% पानी पाकिस्तान को मिलता है जबकि भारत को मात्र 20% पानी मिलता है।
इस विषय को लेकर देश में लंबे समय से भारत के अंदर से ही तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू पर भारत के हितों को अनदेखा करने का आरोप लगता रहा है।
कहाँ पर होता है विवाद?
भारत और पाकिस्तान के बीच इस संधि के बाद भी आपस में कई बार विवाद की स्थिति उत्पन्न हो चुकी है। अधिकांश मौकों पर पाकिस्तान द्वारा भारत के कानूनी तौर पर अधिकार वाले हिस्सों में भी बनाई गई परियोजनाओं पर सवाल उठाता रहा है। इसका सबसे बड़ा उदाहरण जम्मू-कश्मीर में स्थित तुलबुल परियोजना है।
इसके अतिरिक्त पाकिस्तान ने किशनगंगा परियोजना पर भी अड़ंगा डाला है। इसको लम्बे समय से इसकी मांग होती आई है कि पाकिस्तान के साथ की गई इस संधि को या तो सुधार कर 50:50 के अनुपात में किया जाए या संधि को खत्म किया जाए।
वर्ष 2016 में पाकिस्तान के आतंकवादियों द्वारा भारत के उरी कैम्प पर किए गए हमले में जवानों के वीरगति प्राप्त करने के बाद प्रधानमन्त्री नरेंद्र मोदी ने भी कहा था कि पानी और खून साथ-साथ नहीं बह सकते।
पाकिस्तान ने कई बार किया है संधि की शर्तों का उल्लंघन
सिंधु जल समझौते के अंतर्गत बांटी गई नदियों के ऊपर पनबिजली परियोजनाएं बनाने का भारत को पूरा अधिकार है। पाकिस्तान लगातार इस काम में रोड़े अटकाते हुए वर्ष 2010 में किशनगंगा परियोजना को अंतरराष्ट्रीय कोर्ट में ले गया था, जिसमें जीतने के बाद भारत ने वर्ष 2013 में इस परियोजना पर पुनः काम चालू कर दिया था।
पकिस्तान फिर से वर्ष 2016 में इस परियोजना से जुड़े मामलों को अंतरराष्ट्रीय न्यायालय में ले गया। देखा जाय तो पकिस्तान ने इस संधि की शर्तों को कई बार अपनी विदेश नीति को प्रभावशाली बनाने के लिए किया है। पाकिस्तान बड़े स्तर पर इन नदियों के पानी के ऊपर ही निर्भर है, लेकिन मूलभूत सुविधाओं के न रहने के कारण अपने देश में इन नदियों के पानी का समुचित उपयोग नहीं कर पाया है।
क्या होगा भारत के नोटिस का असर, क्या खत्म होगा समझौता?
भारत ने संधि के अनुच्छेद 12 के नियमन 3 का हवाला देते हुए यह नोटिस पाकिस्तान को दिया है। इसके अंतर्गत भारत ने पाकिस्तान को बातचीत के लिए 90 दिन का समय दिया है। मामले में मध्यस्थ विश्व बैंक भी मई 2022 में अपने स्तर से विवादों को सुलझाने का प्रयास कर चुका है।
समझौते की इस शर्त को भारत ने पहली बार इस्तेमाल करने का फैसला किया है। भारत भी इस मामले को लेकर अंतरराष्ट्रीय कोर्ट में जा सकता है। वहीं पाकिस्तान के विदेश मंत्रालय ने इस मामले पर प्रतिक्रिया जारी करते हुए कहा है कि इस प्रकार की रिपोर्ट कोई फर्क नहीं पड़ता है और अंतरराष्ट्रीय कोर्ट जल्द ही पाकिस्तान द्वारा उठाए गए मुद्दों पर सुनवाई करने वाला है।
वर्ष 2019 में पुलवामा हमले के बाद से लगातार इस संधि के खत्म करने की मांग उठती रही है। केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने कहा था कि ऐसे तरीके इस्तेमाल किए जा सकते हैं जिनसे पाकिस्तान को जाने वाले पानी के बहाव को कम किया जा सकता है।
अंग्रेज़ी समाचार पत्र ‘द हिन्दू’ के अनुसार, भारत बिना किसी नियम का उल्लंघन किए भी पाकिस्तान में बनी पनबिजली परियोजना को घाटे के सौदे में बदल सकता है। हालाँकि संधि के नियमों के अनुसार संधि को दोनों सरकारों की रजामंदी से खत्म या संशोधित किया जा सकता है।
संधि टूटने पर क्या होगा पाकिस्तान का हाल?
पाकिस्तान के अंदर सिंचाई के मुख्य स्रोत नदियाँ ही हैं। इनमें से मात्र सिंधु और झेलम नदी ही ऐसी हैं जो साल भर बहती हैं। बाकी नदियों में मानसून के अलावा अन्य मौसम में या तो पानी कम रहता है या ये नदियां सूख जाती हैं। पाकिस्तान के अंदर सिंधु जल प्रवाह के अंतर्गत तीन बड़े बाँध, 85 छोटे बाँध, 19 बैराज और 12 बड़ी नहरें बनाई गई हैं।
इनके माध्यम से 7 लाख से भी अधिक खेत सींचने वाले ट्यूबवेल आधारित हैं। सिंधु जल प्रवाह से पाकिस्तान में 16 लाख स्क्वेयर किलोमीटर क्षेत्रफल की खेती को सिंचाई के लिए पानी मिलता है। ऐसे में यदि भारत समझौते से बाहर आकर प्रवाह को छेड़ता है तो पाकिस्तान में बड़े स्तर पर कृषि को नुकसान हो सकता है। साथ ही पीने की पानी की समस्या और बिजली के उत्पादन की समस्या पैदा होगी
पाकिस्तान में घोटालों की जड़ रहा है सिंधु जल प्रवाह
यह पाकिस्तान का दुर्भाग्य ही है कि बंटवारे के लगभग पचहत्तर वर्ष बाद भी देश में पानी की उपलब्धता को लेकर पर्याप्त काम नहीं हुआ। बांध की कमी पर बार-बार चर्चा तो हुई पर कोई ठोस काम न हो सका।
वर्ष 2018 में इमरान खान के सत्ता में आने के बाद देशभर में पानी की कमी का हवाला देते हुए पाकिस्तानियों और देश से बाहर रहे अपने नागरिकों से चंदे देने की अपील की ताकि देश में बांधों का निर्माण किया जा सके।
पाकिस्तान के पूर्व मुख्य न्यायाधीश जस्टिस शाकिब निसार ने एक फंड बनाकर दुनियाभर में रहने वाले पाकिस्तानी नागरिकों से बांध बनाने के नाम पर उसमें पैसे मंगवाए पर उसके बाद भी कुछ नहीं हो सका।
इस मामले में बड़े घोटाले सामने आए। पाकिस्तान की एक संसदीय समिति के अनुसार, 40 मिलियन डॉलर का बांध बनाने के चक्कर में विज्ञापनों पर ही 63 मिलियन डॉलर खर्च कर दिए गए थे।
सिंधु नदी पर डायमर-भाषा बांध बनाने के प्रस्ताव को आगे रखकर इकठ्ठा किये गए पैसे में बड़े स्तर पर घोटाले हुए और अब पाकिस्तान के पूर्व मुख्य न्यायधीश शाकिब निसार इस मामले में लगातार पूछताछ के दायरे में हैं।