वर्ष 1971 का लोकसभा चुनाव, एक ओर नारा था ‘इंदिरा हटाओ’ तो दूसरी तरफ इंदिरा ने कहा ‘गरीबी हटाओ’। ‘इंदिरा हटाओ’ पर ‘गरीबी हटाओ’ का नारा भारी पड़ता है और कॉन्ग्रेस प्रचण्ड बहुमत के साथ सत्ता में काबिज़ हो जाती है। लोकसभा की 545 सीटों में से 352 सीटें जीतकर इंदिरा गाँधी प्रधानमंत्री बनती हैं।
इंदिरा गाँधी ने रायबरेली सीट से चुनाव लड़ा था, जिसमें उन्होंने अपने मुख्य प्रतिद्वंदी राजनारायण को पराजित किया। चुनाव परिणाम आने के चार साल बाद राजनारायण ने हाईकोर्ट में चुनाव परिणाम को चुनौती दी। 12 जून, 1975 को इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने इंदिरा गांधी का चुनाव निरस्त कर उन पर छः साल तक चुनाव न लड़ने का प्रतिबंध लगा दिया। कोर्ट ने श्रीमती गांधी के प्रतिद्वंदी राजनारायण सिंह को चुनाव में विजयी घोषित कर दिया था।
इसके बाद इंदिरा गाँधी 25 जून 1975 को पूरे देश में इमरजेंसी लगा देती हैं। प्रेस पर रोक लग जाती है और वह सभी विपक्षी नेताओं को जेल भेज देती हैं।
शायद, श्रीमती गाँधी अपनी इस सबसे बड़ी राजनैतिक भूल से तो वाकिफ थीं लेकिन इसके परिणामों का अंदाज़ा उन्हें भी न था।
जनता पार्टी का उदय एवं कॉन्ग्रेस की पहली हार
आपातकाल के जरिए इंदिरा गांधी जिस विरोध को शांत करना चाहती थीं, उसी ने 19 महीने में देश को वर्षों पीछे धकेल दिया था। एक बार इंदिरा गाँधी ने कहा था कि आपातकाल लगने पर विरोध में कुत्ते भी नहीं भौंके थे, लेकिन उन्हें उनकी गलती का अहसास जल्द ही होने वाला था।
करीब 2 साल बाद 1977 में अचानक ही वह लोकसभा चुनाव की घोषणा करती हैं। इन्हीं चुनावों में जनता ने अपना स्पष्ट जवाब दे दिया था। उत्तर भारत में कॉन्ग्रेस का सूपड़ा साफ हो गया।
जनसंघ, कॉन्ग्रेस (ओ), भारतीय लोकदल, सोशलिस्ट पार्टी से मिलकर बनी जनता पार्टी ने बहुमत हासिल कर स्वतंत्र भारत में पहली गैर कॉन्ग्रेस सरकार बनाई। कांग्रेस से अलग हुए मोरारजी देसाई को पहला गैरकॉन्ग्रेसी प्रधानमंत्री चुना गया। गृहमंत्री का पद चौधरी चरण सिंह की झोली में गया।
जनता पार्टी की सरकार बन चुकी थी। दबे स्वरों में इंदिरा गाँधी को उनकी दवा का स्वाद चखाने की मांग की जाने लगी। ये मांग कार्यकर्ताओं से लेकर पार्टी की कैबिनेट बैठक तक पहुँचने लगी। बैठकों में अटल-आडवाणी ,तत्कालीन कानून मंत्री शांतिभूषण ,जॉर्ज फर्नाडीस सहित राजनारायण जैसे बड़े नेताओं के बीच इंदिरा को गिरफ्त्तार करने की चर्चा चलने लगी।
गृहमंत्री चौधरी चरण सिंह से भी इस योजना से सहमत दिखे। वह तो जब इमरजेंसी के समय तिहाड़ जेल में बंद थे तो वह कहते थे ,
“यदि मैं सत्ता में आता हूं तो इंदिरा को इसी कोठरी में बंद करूंगा”
इस गिरफ्तारी की मांग को और बल तब मिला जब इंदिरा गांधी का नाम जीप घोटाले में जुड़ा।
उन पर चुनाव प्रचार के लिए जीप की खरीददारी में भ्रष्टाचार का आरोप था। दरअसल ,आरोप ये था कि 1977 के लोकसभा चुनाव के दौरान रायबरेली से चुनाव लड़ते हुए इंदिरा गाँधी के लिए 100 जीपें खरीदी गई थीं। इनका भुगतान कॉन्ग्रेस पार्टी ने नहीं बल्कि उद्योगपतियों ने किया था। और इन जीपों को खरीदने में सरकारी पैसे का भी इस्तेमाल भी किया गया।
गिरफ्तारी की योजना
इसके बाद चौधरी चरण सिंह गिरफ्तारी की योजना पर काम शुरू कर देते हैं। उनका अफसरों को निर्देश था कि गिरफ्तारी के लिए केस को मजबूत रखा जाए।
इसी बीच कॉन्ग्रेसको सियासी संजीवनी मिलती है, बिहार के बलेछी में 11 दलितों की हत्या कर दी जाती है। बेलछी बाढ़ से प्रभावित क्षेत्र था। इंदिरा गाँधी हाथी पर बैठकर गांव का दौरा करती हैं। इस क्षेत्र में 5 दिन गुजारने के बाद देशभर में इंदिरा के समर्थन में माहौल बनने लगता है। रायबरेली के दौरे में भी इंदिरा को भारी जन समर्थन प्राप्त होता है।
अब जनता पार्टी इंदिरा को जीप घोटाले मामले में गिरफ्तार करने के लिए एक्शन मोड में आ जाती है। चरण सिंह अफसरों की सूची तैयार करते हैं। जिसमें वह इस गिरफ्तारी मिशन के लिए तत्कालीन सीबीआई अफसर एनके सिंह पर भरोसा जताते हैं। कहा जाता है कि चौधरी चरण सिंह ने इसके लिए क़ानूनविदों से राय लेनी भी उचित नहीं समझी।
प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई ने भी इंदिरा गांधी को हथकड़ी न पहनाए जाने की शर्त पर गिरफ्तारी की अनुमति दे दी।
अब गिरफ्तारी कब की जाए? ये यक्ष प्रश्न था।
1 अक्टूबर या 2 अक्टूबर?
बताया जाता है कि 1 अक्टूबर का दिन इसलिए नहीं चुना गया क्यों कि गृहमंत्री चरण सिंह की पत्नी ने शनिवार के इस दिन को अशुभ माना। चर्चा ये भी थी कि 2 अक्टूबर को गाँधी जयंती के दिन क्या उचित रहेगा?
इसके बाद जनता सरकार ने अपने सलाहकारों से राय लेकर 3 अक्टूबर का दिन चुना।
एफआईआर दर्ज़ की जाती है।
आरोप तय होते हैं।
पहला जीप घोटाला और दूसरा आरोप एक फ्रेंच कंपनी को कॉन्ट्रैक्ट देने का मामला, जिसमें भारत सरकार को ₹11 करोड़ का घाटा हुआ।
3 अक्टूबर 1977 का दिन था। यह तय होता है कि इंदिरा को शाम को गिरफ्तार किया जाएगा, ताकि वे एक रात जेल में बिता सकें। इंदिरा गाँधी के घर के बाहर के क्षेत्र को छावनी में तब्दील कर दिया गया था।
एनके सिंह इंदिरा को गिरफ्तार करने के लिए पहुँचते हैं। इंदिरा कहती हैं कि आप पहले से अपॉइंटमेंट लेकर क्यों नहीं आए।एनके सिंह कहते हैं कि ‘मैं जिस काम के लिए आया हूं उसमें अपॉइंटमेंट की जरूरत नहीं है’।
इंदिरा गांधी की गिरफ्तारी की खबर राजनैतिक गलियारों तक पहुँच गई थी। वहां कॉन्ग्रेस कार्यकर्ताओं का हुजूम उमड़ पड़ा था। इंदिरा गाँधी ने भी घटना का पूरा राजनैतिक लाभ उठाने हेतु कार्यकर्ताओं के सामने अभिवादन करते हुए अपनी गिरफ्तारी दे दी।
अगले दिन यानी 4 अक्टूबर को इंदिरा गांधी को चीफ मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट के सामने पेश किया गया। मजिस्ट्रेट ने सबूतों के अभाव में सिर्फ डेढ़ मिनट में ही केस खारिज कर दिया।
जनता सरकार के इस ‘ब्लंडर’ से इंदिरा गाँधी के नए राजनैतिक जीवन की शुरुआत हुई और इस घटना ने उन्हें पुनः सत्ता प्राप्त करने में मदद की।
इस घटनाक्रम पर चुटकी लेते हुए प्रणब मुखर्जी ने कहा था, “इंदिरा ने जिस जनता पार्टी को 19 महीने तक जेल में रखा, वे इंदिरा गांधी को 19 घंटे भी जेल में नहीं रख पाए।“