भारत द्वारा रूस से कच्चे तेल की खरीददारी जनवरी माह में रिकॉर्ड स्तर पर पहुँच गई। भारत पिछले वर्ष से लगातार रूस से बड़ी मात्रा में कच्चे तेल की खरीद कर रहा है।
जनवरी में सऊदी अरब और इराक को पीछे छोड़ कर रूस भारत का सबसे बड़ा कच्चे तेल का आपूर्तिकर्ता बन गया है। जनवरी 2023 के आँकड़े के अनुसार रूस से भारत ने 1.4 मिलियन बैरल प्रति दिन कच्चे तेल की खरीदारी की।
यह अब तक का सर्वकालिक उच्च स्तर है। वर्तमान में दुनिया के तीसरे सबसे बड़े कच्चे तेल के उपभोक्ता भारत के कुल कच्चे तेल की आपूर्ति का लगभग 28% हिस्सा अब रूस से आ रहा है।
भारत रूस से कच्चे तेल खरीद को बढ़ा क्यों रहा है?
भारत द्वारा रूस से तेल खरीदने का सबसे बड़ा कारण उसका अपना हित हैं। भारत इस समय अमेरिका और चीन के बाद विश्व का तीसरा सबसे बड़ा कच्चे तेल का उपभोक्ता है परन्तु कच्चे तेल के लिए उसे विदेशों पर निर्भर रहना पड़ता है।
परंपरागत रूप से भारत, सऊदी अरब और इराक जैसे देशों से कच्चे तेल की खरीदारी करता आया है।
पिछले वर्ष 2022 में फरवरी माह में रूस-यूक्रेन संघर्ष के बाद पश्चिमी देशों द्वारा रूस पर लगाए गए प्रतिबंधों के कारण कच्चे तेल की कीमतें आसमान छूने लगी थीं।
संघर्ष प्रारंभ होने के बाद कुछ ही दिनों में कच्चे तेल की कीमतें रिकॉर्ड स्तर 115 डॉलर/बैरल के आसपास पहुँच गई थीं।
ऐसे में भारत को अपने हित सुरक्षित करने, कम कीमत पर तेल खरीदने और अपनी तेल की आपूर्ति को बनाए रखने के लिए रूस से सप्लाई बढ़ाने फैसला किया था।
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दूसरी तरफ रूस प्रतिबंधों की वजह से अन्तरराष्ट्रीय बाजार में पहले की तरह तेल नहीं बेच पा रहा था इसलिए उसने भारतीय कम्पनियों को अन्तरराष्ट्रीय मूल्य से सस्ता तेल देने की पेशकश की थी।
जानकारों का कहना है कि रूस भारत को संघर्ष से पहले के बाजार मूल्यों पर तेल बेचता आया है।
भारत ने अपने हित सुरक्षित करने और अपनी जनता पर वैश्विक बाजार में आई अस्थिरता का प्रभाव न पड़ने देने के लिए रूस से तेल की खरीददारी बढ़ाई है।
नए आँकड़े क्या कहते हैं?
जनवरी माह के लिए सामने आए आँकड़ो के अनुसार, भारत की रूस से तेल खरीददारी जनवरी माह में 1.4 मिलियन बैरल प्रतिदिन पहुँच गई है। जनवरी माह में भारत द्वारा खरीदे गए 5 मिलियन बैरल/प्रति दिन तेल का 28% हिस्सा रूस से आया।
टाइम्स ऑफ़ इंडिया की एक रिपोर्ट के अनुसार, यूक्रेन और रूस के बीच फरवरी 2022 में संघर्ष चालू होने से पहले भारत अपनी जरूरत का मात्र 0.2% ही रूस से लेता था।
इसके पीछे का कारण रूस से तेल मंगाने में लगने वाले भाड़े का अधिक होना था। संघर्ष के बाद से रूस धीमे-धीमे भारत का सबसे बड़ा तेल का आपूर्तिकर्ता बन गया है।
समाचार वेबसाइट रायटर्स के अनुसार, वर्ष 2022 के अप्रैल माह से जनवरी 2023 तक के शुरूआती 10 महीनों में जहाँ ईराक भारत का सबसे बड़ा आपूर्तिकर्ता और रूस दूसरे नमबर पर रहा, वहीँ बाद में रूस सबसे बड़ा आपूर्तिकर्ता बन कर उभरा है।
इसके अतिरिक्त तेल उत्पादन करने वाले देशों के समूह ओपेक से भारत का तेल आयात भी नीचे आया है। रायटर्स के अनुसार, यह वर्ष 2022-23 में कुल तेल आयात का 48% रह गया है।
यह वर्ष 2008 में कुल आयात का लगभग 88% था। रिपोर्ट के अनुसार, इस बीच भारत की कनाडा से भी तेल की खरीददारी बढ़ी है।
तेल खरीददारी के पीछे है भारत की कूटनीतिक ताकत
भारत ने रूस से तेल खरीददारी में अपनी कूटनीतिक ताकत का भी उपयोग किया है।
अमेरिका और पश्चिमी देशों के दबाव के बाद भी भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर और ऊर्जा मंत्री हरदीप सिंह पुरी ने लगातार भारत के पक्ष को विश्व पटल पर मजबूती से रखा है।
विदेश मंत्री ने भारत द्वारा कच्चे तेल की रूस से खरीददारी पर पूछे गए प्रश्न के उत्तर ने यूरोप को दर्पण दिखाते हुए कहा था कि जितना तेल भारत रूस से एक माह में खरीदता है उससे अधिक यूरोप एक शाम में खरीद लेता है।
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एक अन्य मौके पर भारत की स्थिति को स्पष्ट करते हुए विदेश मंत्री ने कहा था कि मेरे देश में अधिकाँश लोग 2,000 डॉलर से कम की सालाना आय पर गुजर बसर करते हैं हम उन पर महंगे तेल का भार नहीं डाल सकते।
हमारा कर्तव्य उनके लिए अच्छी से अच्छी डील ढूंढना है। हमें जहाँ से सस्ते दामों में तेल मिलेगा हम वहां से खरीदेंगें।
भारत की स्थिति को विश्व बड़े पैमाने पर स्वीकार भी कर रहा है। हाल ही में एअर इंडिया और एयरबस तथा बोईंग के बीच हुई डील के कारण भारत का इन देशों में प्रभाव भी बढ़ा है। यह भारत की सॉफ्ट पॉवर को दर्शाता है।
क्यों अहम है भारत की रूस से कच्चे तेल की खरीददारी?
वैसे तो दो देशों के बीच कच्चे तेल की खरीददारी एक सामान्य बात है परन्तु भारत और रूस के कच्चे तेल बीच का यह व्यापार कई मायनों में रणनीतिक और व्यापारिक स्तर पर महत्वपूर्ण है।
भारत की रूस से कच्चे तेल खरीददारी में बढ़ोतरी पिछले वर्ष के फरवरी माह के बाद से आई है।
वर्ष 2022 के फरवरी माह से ही रूस का अपने पड़ोसी यूक्रेन से संघर्ष चला आ रहा है। इसके कारण यूरोपीय देशों ने उस पर कड़े प्रतिबन्ध लगा रखे हैं।
यूरोप के अतिरिक्त अमेरिका भी विश्व के अधिकाँश देशों को रूस से कच्चे तेल खरीददारी करने पर आर्थिक कठिनाइयों का सामना करने की बात कहता आया है।
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रूस द्वारा तेल बेचकर कमाई करने से रोकने के लिए पश्चिमी देशों ने प्राइस कैप फार्मूले को भी लागू किया है। इन देशों ने दिसम्बर 2022 से रूस से खरीदे जाने वाले तेल की कीमत 60 डॉलर/बैरल रखने की बात कही है।
इसका उल्लंघन करने वाले देशों को जहाज उपलब्ध ना कराने, जहाजों का बीमा ना करने एवं अन्य एक्शन शामिल हैं। भारत ने ऐसे किसी भी समझौते में शामिल होने से मना किया है।
भारत का कहना है इससे वैश्विक कच्चे तेल के बाजार में अस्थिरता आएगी और कीमतों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा जिससे छोटी अर्थव्यवस्था वाले देशों को और समस्या होगी। भारत अमेरिका एवं यूरोप के देशों के दबाव में आए बिना लगातार रूस से तेल खरीद रहा है।