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Home » पूर्वाग्रह से युक्त और तथ्यहीन हैं अन्तरराष्ट्रीय रैंकिंग देने वाली रिपोर्ट: EAC-PM
प्रमुख खबर

पूर्वाग्रह से युक्त और तथ्यहीन हैं अन्तरराष्ट्रीय रैंकिंग देने वाली रिपोर्ट: EAC-PM

अर्पित त्रिपाठीBy अर्पित त्रिपाठीNovember 23, 2022No Comments8 Mins Read
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अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर भारत की छवि को धूमिल करने का प्रयास अक्सर विभिन्न माध्यमों और विभिन्न स्तर पर किया जाता रहा है। सपेरे-मदारियों के देश से लेकर विभिन्न रैंकिंग इंडेक्स में भारत को निचले स्तर पर दिखाना एक ट्रेंड बन चुका है।

दुनिया भर में लोकतंत्र की ठेकेदार संस्थाएं आए दिन भारत की छवि को धूमिल करने का काम करती रहती है। पश्चिमी देशों से संचालित होने वाली यह संस्थाएं अपने मन मुताबिक, कौन देश कितना लोकतांत्रिक है या नहीं, इसका तमगा बांटती रहती है।

इन जैसी संस्थाओं के लिए भारत सरकार ने एक विस्तृत रिपोर्ट जारी की है।

In recent years, India’s rankings and scores have declined on a number of global opinion-based indices that deal with subjective issues such as democracy, freedom and so on. @sanjeevsanyal & @AakankshaArora5 write. (1/8)https://t.co/1WfesgCvir pic.twitter.com/vKKRWaa8Sr

— EAC-PM (@EACtoPM) November 22, 2022

प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार समिति के सदस्य संजीव सान्याल और आकांक्षा अरोड़ा द्वारा प्रस्तुत इस रिपोर्ट में पश्चिमी लोकतंत्र रेटिंग एजेंसियों की कार्यशैली में खामियों और उनका भारत के प्रति पूर्वाग्रह को उजागर किया गया है।

क्या कहती है रिपोर्ट?

भारत का प्रदर्शन वैश्विक अवधारणा इंडेक्स में खराब क्यों है? (WHY INDIA DOES POORLY ON GLOBAL PERCEPTION INDICES) नाम से प्रकाशित यह रिपोर्ट, विश्व भर में लोकतंत्र की रेटिंग देने वाली एजेंसियों- फ्रीडम इन वर्ल्ड इंडेक्स, EIU- डेमोक्रेसी इंडेक्स और वी-डेम इंडेक्स की कार्यशैली, उनमें पूछे गए प्रश्न, इन रिपोर्ट में भारत के प्रदर्शन एवं अन्य देशों के प्रदर्शन का परीक्षण करती है।

इस रिपोर्ट में विभिन्न लोकतंत्र इंडेक्स का परीक्षण किया गया है

फ्रीडम इन द वर्ल्ड इंडेक्स

रिपोर्ट में सबसे पहले फ्रीडम इन द वर्ल्ड इंडेक्स (Freedom In The World Index) नाम की एक रेटिंग एजेंसी का परीक्षण किया गया है। यह रिपोर्ट वर्ष 1973 से लगातार वार्षिक तौर पर प्रकाशित की जाती है। इसका प्रकाशन अमेरिका के न्यूयॉर्क शहर में स्थित फ्रीडम हाउस नाम की एक संस्था करती है।

वर्ष 2022 की इस रिपोर्ट में 195 देशों और 15 भू-भागों का आकलन किया गया है। इस रिपोर्ट को दो भागों में बांटा गया है। जो सात मुख्य विषयों पर आधारित होती है। इसमें पहला भाग राजनीतिक अधिकारों और दूसरा भाग नागरिक स्वतंत्रता का है।

राजनीतिक अधिकारों में चुनाव, राजनीतिक सहभागिता और सरकारी व्यवस्था का संचालन शामिल है जबकि नागरिक स्वतंत्रताओं में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और रूल ऑफ लॉ जैसे मुद्दे हैं।

इस रिपोर्ट में इन विषयों पर कुल 25 प्रश्न पूछे जाते हैं, जिसके प्रत्येक एक के अधिकतम 4 अंक हैं। वर्ष 2022 में भारत को इस रिपोर्ट में आंशिक रूप से स्वतंत्र बताया गया। वर्ष 2022 में इस रिपोर्ट में भारत का स्कोर 66 रहा, जबकि पिछले वर्ष यह 77 था। साथ ही इस रिपोर्ट में जम्मू एवं कश्मीर को अलग हिस्से के तौर पर गिना जाता है।

इससे पहले भारत को वर्ष 1975 में आपातकाल के दौरान और वर्ष 1991-96 के बीच आंशिक रूप से आजाद बताया गया था। ऐसे में प्रश्न उठता है कि भला आपातकाल के दौरान हुई हड़तालों और दमनकारी कार्रवाईयों में से कौन सी घटनाएं हैं जो आज के समय और वर्ष 1991-96 के बीच हो रही थी, जिसके कारण भारत को आंशिक रूप से मुक्त बताया गया?

इस रिपोर्ट को बनाने के लिए कुछ एक संस्थानों की मीडिया रिपोर्ट को लिया जाता है और उन्हें अपनी सुविधानुसार इस्तेमाल किया जाता है। उदाहरण के लिए रिपोर्ट में वर्ष 2019 में हुए आम चुनावों में जीते हुए मुस्लिम उम्मीदवारों का आँकड़ा दिया गया और बताया गया कि लोकसभा में उनका प्रतिनिधित्व मात्र 5% है जबकि जनसंख्या में मुस्लिमों की हिस्सेदारी 14% है।

लेकिन, इस बेतुकी तुलना में यह नहीं बताया गया कि इससे भारत के लोकतंत्र की गुणवत्ता में कैसे कमी आती है। क्योंकि, भारत एक प्रतिनधित्व वाला लोकतंत्र है ना कि कम्युनल अवार्ड वाली व्यवस्था।

इसी रिपोर्ट में भारत में पत्रकारों की हत्याओं को बताते हुए कहा गया कि वर्ष 2021 में भारत में 5 पत्रकारों की हत्या हुई, जो कि विश्व में सर्वाधिक है। इस रिपोर्ट में यह आँकड़ा नजरअंदाज किया गया कि भारत में विश्व की 22% जनसंख्या (चीन को छोड़कर) निवास करती है जबकि मरने वाले कुल पत्रकारों में से 11% ही भारत में हताहत हुए।

हास्यास्पद बात यह है कि इस रिपोर्ट के अनुसार तुर्की के कब्जे वाला साइप्रस एक मुक्त लोकतंत्र है। इस हिस्से को संयुक्त राष्ट्र तक की भी मान्यता नहीं है। तिमोर जैसे देश, जो कि इसी सदी में बने हैं को मुक्त लोकतंत्र बताया जाता है।

EIU- डेमोक्रेसी इंडेक्स

इस रिपोर्ट को इकोनॉमिक इंटेलिजेंस यूनिट, जो यूरोपियन यूनियन की एक आर्थिक सलाहकार शाखा है, द्वारा तैयार किया जाता है। इस रिपोर्ट में पांच भाग हैं जो कि 60 अलग-अलग प्रश्नों से मिलकर बनते हैं। इन प्रश्नों को इस तरह बनाया जाता है कि इनके जवाब से वही सिद्ध हो जो रिपोर्ट बनाने वाले कहना चाहते हो।

इन प्रश्नों का उत्तर कथित विशेषज्ञों और जनता से लिया जाता है। जनता के सर्वे के जवाब उपलब्ध न होने की दशा में विशेषज्ञों की राय को ही रिपोर्ट का आधार बना लिया जाता है। इसमें भी ध्यान देने वाली बात यह है कि यह संस्था वर्ल्ड वैल्यू सर्वे जैसे संस्थानों के पब्लिक सर्वे को अपना आधार बनाते हैं।

वर्ल्ड वैल्यू सर्वे का 2012 के बाद भारत में अभी तक कोई सर्वे नहीं हुआ है। ऐसे में लगातार 2012 से कथित विशेषज्ञों की राय पर ही रिपोर्ट बनाई जा रही है। वर्ष 2021 की नवीनतम रिपोर्ट में भारत की रैंक 46 बताई गई है। रिपोर्ट में भारत को एक दोषपूर्ण लोकतंत्र बताया गया है।

भारत को इस रिपोर्ट के पहले प्रकाशन वर्ष 2006 के बाद से ही दोषपूर्ण लोकतंत्र की श्रेणी में रखा गया है। ध्यान देने वाली बात यह है कि इस रिपोर्ट में भारत की रैंक वर्ष 2014 के बाद से लगातार गिरी है। रिपोर्ट में भारत में लोकतंत्र की गिरावट के जो कारण दिए गए हैं वह हास्यास्पद हैं।

उदाहरण के तौर पर, भारत में कोरोना काल के दौरान सरकार ने लोगों के अधिकारों में दखल दिया ऐसा कहा गया है। जबकि भारत में भी महामारी रोकने के लिए वही कदम उठाए गए जो बाकी देशों ने उठाए थे। वहीं किसान आन्दोलन को भारत में लोकतंत्र के सुधार के तौर पर दिखाया गया है।

अगर अलग-अलग देशों की बात की जाए तो, इस रिपोर्ट में लेसोथो जैसे देशों को, जहाँ आपातकाल घोषित किया गया है, उसे राजनीतिक शुचिता में भारत से ऊपर रखा गया है। श्रीलंका और हांगकांग जैसे देश, जहाँ लगातार राजनीतिक और आर्थिक अस्थिरता बनी हुई है, में भारत से अधिक नागरिक अधिकार बताए गए हैं।

V- DEM इंडेक्स

स्वीडन की एक संस्था द्वारा यह रिपोर्ट जारी की जाती है। रिपोर्ट में चुनाव, सहभागिता और उदारता जैसे मानक लिए जाते हैं। इस रिपोर्ट को तैयार करने के लिए कुछ तथ्यों और विशेषज्ञों के उत्तर को लिया जाता है। यह विशेषज्ञ कौन हैं इसकी जानकारी नहीं दी जाती।

पूछे जाने वाले प्रश्नों में से कुछ तो बहुत ही हास्यास्पद हैं। ऐसा ही एक प्रश्न है कि, क्या सर्वे किए जाने वाले देश में पत्रकार खुद पर सेंसर लगाते हैं? एक और ऐसा ही प्रश्न है कि, क्या सत्ता को बराबर हिस्सों में सभी तरह के समाज में बांटा गया है? कितने मीडिया संस्थान ऐसे हैं जो कि लगातार सरकार की बुराई करते हैं?

अब इस तरह के प्रश्नों से किसी भी राष्ट्र में लोकतंत्र को कैसे मापा जा सकता है, रिपोर्ट यह बताने में असफल रहती है। यह रिपोर्ट देश, काल, परिस्थिति और आर्थिक असमानता पर विचार किए बिना एक ही तरह के मानक सभी देशों पर लागू करती है। उदाहरण के तौर पर, सर्वे में पूछा जाता है कि ऐसे कितने मुद्दे है जिस पर देश भर में जनमत संग्रह होता है।

देखने वाली बात यह है कि भारत में अप्रत्यक्ष लोकतंत्र है, जिसमें जनता द्वारा चुने हुए प्रतिनिधि विभिन्न मुद्दों पर देश की संसद या राज्य विधानसभाओं में अपना पक्ष जनता की तरफ से रखते है। इसके अतिरिक्त भारत जैसे विशाल जनसंख्या वाले देश में हर बात पर जनमत संग्रह संभव ही नहीं है।

इस मानक पर भारत सहित अमेरिका को भी शून्य अंक दिए गए हैं। इस रिपोर्ट में भारत को वर्ष 2021 में चुनावी निरंकुशता वाला देश बताया गया था। इस रिपोर्ट के पीछे ऐसी मीडिया रिपोर्ट को रखा गया है जो भारत की गलत छवि दर्शाती हैं। नवीनतम रिपोर्ट में भारत की रैंक 93 है।

वहीं लेसोथो जैसे राष्ट्र जो कि कुछ वर्षों पहले ही गठित हुए हैं और जहाँ राजनीतिक अस्थिरता है को भारत से ऊपर रखा गया है। भारत के पड़ोसी राष्ट्र भूटान और नेपाल , जहाँ कुछ साल पहले तक राजशाही थी, उनको तक भारत से ऊपर रैंक किया गया है।

क्यों जरूरी है इस दुष्प्रचार का खंडन?

वैसे तो इन रिपोर्ट के कहने मात्र से भारत के लोकतांत्रिक मूल्यों और नागरिक अधिकारों में कमी नहीं आती परन्तु इनका जवाब देना इसलिए आवश्यक है क्योंकि इनसे विश्व में भारत की छवि खराब होती है। इसी तरह यह रिपोर्ट उन रेटिंग को भी प्रभावित करती हैं जिनका सीधा प्रभाव भारत के विदेशी संबंधों और बाहरी निवेशकों के आर्थिक निर्णयों पर पड़ता है।

वैश्विक संस्थाओं जैसे, विश्व बैंक की रेटिंग पर भी यह असर डालती हैं, ऐसे में आवश्यक है कि इन रिपोर्ट के दुष्प्रचार, आधी-अधूरी जानकारी देने और भारत के पूर्वाग्रह को उजागर किया जाए।

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