कॉन्ग्रेस के लिए इससे बेहतर और क्या हो सकता है कि कोई विदेशी संस्था 140 करोड़ से अधिक आबादी वाले देश में 3000 के सैंपल साइज के आधार पर कोई ‘रिसर्च पेपर’ जारी करे, और उसमें भारत की आर्थिक उन्नति की नकारात्मक समीक्षा वाली हैडिंग के साथ सनसनी बटोर ली गई हो। एक बार फिर कॉन्ग्रेस ने यही कारनामा दोहराया है और इस बार इस राष्ट्र-विरोधी प्रपंच के सेनापति खुद पार्टी अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे हैं।
कॉन्ग्रेस अध्यक्ष ने संयुक्त राष्ट्र (UN) की एक रिपोर्ट का हवाला देते हुए ट्वीट किया और दावा किया कि देश के 74% लोग स्वस्थ आहार का खर्च नहीं जुटा सकते।
लेकिन आपको बता दें कि संयुक्त राष्ट्र की जिस रिपोर्ट का जिक्र खड़गे कर रहे हैं वो एक तरह से अधूरी रिपोर्ट है, या यूँ कहें कि एक अधूरे डेटा से भारत की झूठी तस्वीर बनाने का प्रयास किया जा रहा है।
क्या है पूरा सच
संयुक्त राष्ट्र द्वारा ‘स्टेट ऑफ़ फूड सिक्योरिटी एंड नुट्रिशन इन द वर्ल्ड 2023’ नामक एक रिपोर्ट जारी की गयी। 316 पन्नों की इस रिपोर्ट में दुनिया के कई देशों में पौष्टिक आहार और उसे खरीद पाने की क्षमता पर बात की गयी है।
हैरानी की बात ये है कि इस रिपोर्ट में भारत की स्थिति ‘दयनीय देशों’ में गिनाई गयी है। यहाँ तक कि भारत को श्रीलंका एवं बांग्लादेश से भी बुरी स्थिति में दिखाया गया है। लेकिन सच क्या है? सच ये है कि इस रिपोर्ट के लिए आंकड़े सिर्फ मुंबई से लिए गए हैं। भारत के तमाम 28 राज्य एवं 8 केंद्र शासित प्रदेशों में से एक महाराष्ट्र के शहर मुंबई से!
अब आप सोचिए कि पूरे भारत का आकलन सिर्फ एक शहर के आंकड़ों से किया जा रहा है और मुंबई में भी सिर्फ 3000 लोगों पर जुटाई गयी जानकारी पर ये रिपोर्ट जारी कर दी गयी।
रिपोर्ट में निष्कर्ष निकाला गया कि मुंबई में भोजन की लागत पांच वर्षों में 65% बढ़ी, जबकि वेतन/मजदूरी केवल 28%-37% बढ़ी। एसओएफआई (State of Food Security and Nutrition in the World) की इस रिपोर्ट में स्वस्थ आहार की लागत स्थानीय खाद्य पदार्थों को देखकर निकाली जाती है जो आहार संबंधी दिशानिर्देशों को पूरा करते हैं। क्या मुंबई एवं देश के अन्य हिस्सों में मिलने वाले खाद्य पदार्थों की कीमतों की तुलना सम्भव है?
प्रश्न ये है कि अगर कॉन्ग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे इस रिपोर्ट पर इतना भरोसा करते हैं तो उन्होंने इस रिपोर्ट में शामिल अन्य बिंदुओं को क्यों साझा नहीं किया?
रिपोर्ट का दूसरा पहलू
इसी रिपोर्ट में भारत में बढ़ते कृषि अनुसन्धान और कृषि बाजार की सफलता का भी जिक्र किया गया है। बेंगलुरु और उसके आसपास पर केंद्रित एक अध्ययन ऐसे साक्ष्य प्रदान करता है। ग्रामीण क्षेत्रों में आधुनिक कृषि के उपयोग को बढ़ाने में छोटे और मध्यवर्ती शहर एवं कस्बे की आवश्यक भूमिका देखी गयी क्योंकि इनके कारण ही ग्रामीण क्षेत्रों का बाजारों के साथ बेहतर जुड़ाव हो पाया।
भारत में शहरी क्षेत्रों से बढ़ती मांग और ग्रामीण क्षेत्रों से छोटे और मध्यवर्ती शहर/ कस्बे तक बेहतर सड़कों और परिवहन संपर्क जैसे कारकों के संगम ने आगरा और बिहार जैसे स्थानों में आलू किसानों के लिए कोल्ड स्टोरेज सुविधाओं के विस्तार को बढ़ावा दिया। इसका परिणाम यह हुआ कि आलू की आपूर्ति की मौसमी स्थिति कम हो गई। किसानों और उपभोक्ताओं के बीच पारंपरिक ग्रामीण दलालों में कमी आ गयी।
रिपोर्ट में इस बात पर भी प्रकाश डाला गया है कि किस प्रकार से भारत में ग्रामीण एवं शहरी के बीच के फासले को यातायात ने कम कर सब्जी, डेरी प्रोडक्ट, मीट आदि की मांग एवं पूर्ती के संतुलन के साथ लोगों की आमदनी में भी इजाफा किया है।
वहीं इसी रिपोर्ट मे भारत में ई-कॉमर्स बाजार के विकास का उल्लेख किया गया है। बताया गया कि कोविड-19 महामारी के बाद जहाँ चीन में ई-कॉमर्स के बाजार में प्रति वर्ष 10 से 20 प्रतिशत की वृद्धि हुई वहीं भारत में यह वृद्धि 30 से 70 प्रतिशत की थी। लेकिन कॉन्ग्रेस के लिए यह आंकड़े मायने नहीं रखते।
5 साल में 13.5 करोड़ लोग गरीबी से हुए मुक्त
कॉन्ग्रेस के लिए यदि आंकड़े वास्तव में मायने रखते तो ये उस रिपोर्ट का भी प्रचार अवश्य करते जो UNDP द्वारा जारी आंकड़ों पर भी चर्चा करते जिसमें बताया गया है कि विगत छः वर्षों में 13.5 करोड़ लोग, स्वास्थ्य, शिक्षा और जीवन स्तर में सुधार के चलते बहुआयामी गरीबी से बाहर निकल गए। नीति आयोग की रिपोर्ट में दावा किया गया है कि कोरोना महामारी से उबरते हुए उत्तर प्रदेश के साथ, बिहार और मध्य प्रदेश ने सबसे तेजी से लोगों की गरीबी में कमी दर्ज की है।
इस रिपोर्ट में बताया गया था कि भारत ने साल 2015-16 में भारत के गरीबों की संख्या में 9.89% की महत्वपूर्ण गिरावट दर्ज की है, जो राष्ट्रीय बहुआयामी गरीबी सूचकांक (MPI) के दूसरे संस्करण के अनुसार 2019-2021 में 24.85% से बढ़कर 14.96% हो गई है।
वहीं ग्रामीण क्षेत्रों में गरीबी में 32.59% से 19.28% तक सबसे तेजी से गिरावट देखी गई, शहरी क्षेत्रों में गरीबी में 8.65% से 5.27% की कमी देखी गई। कॉन्ग्रेस के लिए अधिक आवश्यक यह है कि किस प्रकार वे भारत की नकारात्मक तस्वीर पेश करने वाली बातों को अधिक से अधिक भुना सकते हैं।