भारतीय रेलवे आज भी देश के यातायात की रीढ़ है। दुनिया में सबसे विस्तृत तंत्र के साथ बीते वर्षों में रेलवे मंत्रालय ने आधुनिकीकरण एवं सुरक्षा प्रबंधन योजनाओं से रेल यातायात को मजबूत और प्रभावी बनाया है। ओडिशा में हुए भीषण हादसे ने कई राजनीतिक दलों को वो प्रश्न उठाने का मौका दिया है जो पिछले 9 वर्षों में उन्हें नहीं मिल पाया था। बहरहाल, दुर्घटना की जांच और उससे संबंधित प्रश्नों का जवाब जांच एजेंसी पर छोड़ा जा सकता है। इसी बीच भारत सरकार के उन कार्यों पर नजर डालनी आवश्यक है जिससे देश लंबे समय से इस प्रकार की त्रासद घटना से बचा हुआ था।
भारतीय रेलवे में संस्थागत बदलावों एवं योजनाओं से सुरक्षा को मजबूत किया गया है। यही कारण है कि 2006-07 और 2013-14 के बीच दुर्घटनाओं की संख्या 1,243 से घटकर 2014-15 और 2022-23 के बीच 638 हो गई है। वर्तमान सरकार की प्राथमिकता भारतीय रेलवे के तकनीक से लैस बनाने के साथ ही दुर्घटना मुक्त एवं यात्रियों की सुरक्षा का इंतजाम करनी रही। कवच जैसी तकनीक के साथ, नए आधुनिक लोको का निर्माण और वंदे भारत जैसी आधुनिक गाड़ियों के संचालन से भारतीय रेलवे की अत्याधुनिक तस्वीर बनाने का प्रयास सराहनीय रहा।
दुर्घटनाओं में कमी
वर्ष, 2014 के बाद से आई रेल दुर्घटनाओं की कमी उल्लेखनीय रही है। इसके लिए किए गए उपायों पर नजर डालने से पूर्व उन आंकड़ों की चर्चा कर लेते हैं जिनसे पता चलता है कि पिछले कुछ वर्षों में रेलवे सुरक्षा बढ़ी है। वर्ष 2014-15 से 2022-23 तक प्रति वर्ष के आधार पर रेलवे दुर्घटनाओं में 54 प्रतिशत की कमी आई है। दुर्घटना प्रति मिलियन ट्रेन किलोमीटर (APMTKM) की बात करें तो 2006-07 में 0.23 से घटकर 2013-14 में 0.10 हो गया, और 2022-23 में 0.03 हो गया है।
वर्तमान केंद्र सरकार ने 2014 से ही मानवरहित क्रासिंग गेट की संख्या न्यूनतम करने पर सबसे अधिक जोर दिया है। जहाँ 2009-2014 के बीच पिछले 5 वर्ष की अवधि में, 5,687 मानवरहित फाटकों को समाप्त कर दिया गया। वहीं, अप्रैल 2014 से जनवरी 2019 तक 8,948 समपार फाटकों को हटाया गया। इनमें से 3,479 केवल 2018-19 में समाप्त किए गए थे। रेलवे के ब्रॉड गेज नेटवर्क पर अंतिम मानवरहित समपार (यूएमएलसी) को 31 जनवरी, 2019 को समाप्त कर दिया गया था।
अत्याधुनिक बोगियों का निर्माण
रेलवे के आधुनिकीकरण और सुरक्षा उपायों को मजबूत करने के दौरान मंत्रालय के सामने जो समस्या सामने आई वो थी पुराने कोच या बोगियों की। यह वजन में ज्यादा होने के साथ ही पटरी से जल्दी उतर जाते जो दुर्घटनाओं का मुख्य कारण बनता था। वर्ष 2016-17 के दौरान इन बोगियों के अध्ययन के बाद मंत्रालय ने इन्हें अत्याधुनिक लिंक हॉफमैन बुश (Linke Hofmann Busch, LHB) बोगियों के साथ बदलने का निर्णय लिया गया। सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए वर्तमान सरकार के कार्यकाल में प्रतिवर्ष 1,387 LHB बोगियों का निर्माण कर रेलवे के आधुनिकीकरण की दिशा में गंभीर प्रयास किए गये। इसके परिणामस्वरूप दुर्घटनाओं में कमी आई है। दरअसल, एलएचबी कोच हल्के वजन वाले अत्याधुनिक कोच हैं जो उच्च गति प्राप्त कर सकते हैं और एंटी-क्लाइम्बिंग फीचर से लैस हैं। अर्थात, दुर्घटनाओं के मामले में कोचों को एक-दूसरे के ऊपर चढ़ने से रोकते हैं, जिससे हताहतों की संख्या कम हो जाती है।
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स्वचालित सिग्नलिंग
ट्रेनों की दुर्घटनारहित आवाजाही सुनिश्चित करने के लिए के रेल मंत्रालय द्वारा सभी रेलवे स्टेशनों पर स्वचालित इलेक्ट्रॉनिक ब्लॉक सिग्नलिंग सिस्टम स्थापित किया गया है। यह लागत प्रभावी समाधान होने के साथ ही पटरियों पर आसानी से लाइन क्षमता एवं सुरक्षा उपायों में वृद्धि करता है। 2022-23 तक भारतीय रेलवे द्वारा 530 किलोमीटर के क्षेत्र में स्वचालित सिग्नलिंग प्रणाली स्थापित की जा चुकी है।
रेलवे स्टेशनों का आधुनिकीकरण
पिछले लगभग एक दशक में भारतीय रेलवे ने न सिर्फ यूटीएस मोबाइल टिकटिंग ऐप जैसी सुविधाओं से यात्रियों के लिए सफर को आसान बनाया बल्कि रेलवे स्टेशनों का आधुनिकीकरण सुरक्षा, सुविधा एवं स्वच्छता को ध्यान में रखकर किया गया है। 400 से अधिक रेलवे स्टेशनों का पुनर्विकास किया गया है। 1,275 स्टेशनों को विश्व स्तरीय स्टेशन के रूप में विकसित किया गया है। न केवल वर्तमान रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव ने बल्कि उनके पहले अन्य रेलमंत्रियों ने भी अपनी घोषणा में मौजूदा बुनियादी ढांचे में भी बदलाव कर आधुनिकीकरण पर जोर दिया गया और उसके लिए मंत्रालय द्वारा गंभीर प्रयास हुए हैं।
रेलवे के आधुनिकीकरण में सबसे बेहतरीन उपाय रेलवे ट्रैक का विद्युतीकरण भी रहा है। वर्तमान सरकार की योजना में भारतीय रेलवे को दुनिया का सबसे बड़ा ग्रीन रेलवे नेटवर्क बनाना है। इसके लिए वर्ष, 2024 तक पूरे रेल ट्रैक तंत्र का विद्युतीकरण करने का लक्ष्य रखा गया है। रेलवे मंत्रालय के अनुसार, देश के 14 राज्यों एवं केंद्र शासित प्रदेशों में 100 प्रतिशत विद्युतीकरण का कार्य पूर्ण भी हो चुका है। इस कदम से भारतीय रेलवे आधुनिकता के साथ ही पर्यावरण के अनुकूल चलने वाला सबसे सरल यातायात माध्यम बनने की ओऱ अग्रसर है।
कवच
भारतीय रेलवे के नवीनीकरण के कदमों में सुरक्षा को प्राथमिकता एवं दुर्घटनाओं की संख्या में कमी लाने पर सरकार ने सबसे अधिक जोर दिया और इस दिशा में कई नई तकनीकों को रेलवे तंत्र में शामिल भी किया। इन्हीं में से सबसे प्रभावी तकनीक कवच रही। कवच यानि स्वचालित ट्रेन सुरक्षा प्रणाली जो कि पूर्णतया स्वदेशी है। इसी प्रकार की विदेशी प्रणाली की लागत भारतीय रेलवे पर आर्थिक दबाव डाल सकती थी। हालांकि स्वदेशी कवच से ट्रेन टक्कर बचाव प्रणाली को विकसित किया गया है। इसके द्वारा मानव त्रुटि के कारण होने वाली दुर्घटनाएं एवं सिग्नल पासिंग खतरे और ओवर-स्पीडिंग के मामलों में कमी आती है।
कवच प्रणाली के अन्य लाभों की बात करें तो इससे टर्नआउट के पास पहुंचने पर स्वचालित ब्रेक लगाकर ट्रेनों की गति को नियंत्रित किया जा सकता है। साथ ही सिग्नल पहलुओं को दोहराने की प्रक्रिया से उच्च गति और धुंधले मौसम में दुर्घटनाओं कमी सुनिश्चित की जा सकती है। कवच समपार फाटकों पर ऑटो सीटी बजाने जैसे कार्यों में भी सक्षम है।
हालांकि कवच को रेलतंत्र के साथ जोड़ना काफी जटिल प्रक्रिया है इसके कारण इसके इंप्लीटेशन के लिए चरण बद्ध तरीके से कार्य किया जा रहा है। कवच को अभी दक्षिण-मध्य रेलवे के 1,400 किलोमीटर से अधिक के रूट पर सफलता पूर्वक लगाया गया है। पूर्णतया स्वदेशी तकनीक के लाभ एवं लागत के चलते भविष्य में इसे अन्य देशों द्वारा भी अपनाए जाने की संभावना है।
कवच जैसी प्रणाली औऱ रेलवे के आधुनिकीकरण से भारतीय रेलवे ने भविष्य के लिए सुरक्षित यातायात की नींव रखी है। रेलवे स्वच्छता से शुरू होते हुए यात्री सुविधाओं और सुरक्षा से संबंधित इंफ्रास्ट्रक्चर के विकास में महत्वपूर्ण कार्य हुए हैं। इंफ्रास्ट्रक्चर में बदलाव या पुरानी कार्यप्रणाली को ही प्रभावी मानने की मानसिकता देश में आधुनिकीकरण का विरोध करती है जिससे वास्तव में आंकड़ों में सुधार देखा गया है।
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