राजनीति की दृष्टि से वर्ष 2023 बहुत महत्वपूर्ण है। कई राज्यों में विधानसभा चुनाव संपन्न हो चुके हैं और कई और महत्वपूर्ण राज्यों में आने वाले हैं। आगामी वर्ष लोकसभा चुनाव को लेकर व्यस्तता वाला रहेगा। पिछले कुछ वर्षों में देश के विकास, अर्थव्यवस्था और संबंधित अन्य क्षेत्रों को लेकर दावे किए जाते रहे हैं। ख़ासकर विपक्ष पिछले लगभग सात वर्षों में बार-बार देश की खराब अर्थव्यवस्था का दावा करता रहा है। उधर न केवल मोदी सरकार बल्कि अंतरराष्ट्रीय संस्थाएं यह बताते रहे हैं कि भारत की अर्थव्यवस्था का न केवल आकार बढ़ा है बल्कि वर्तमान में बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में भारत सबसे विकासशील देश है।
ज़ाहिर है कि इन संस्थाओं के ऐसा कहने के पीछे एक आधार है पर विपक्षी दल अपने आरोपों के समर्थन में ठोस कारण आगे नहीं रख सके हैं। ऐसे में हम यह जानने का प्रयास करेंगे कि सच्चाई क्या है? ऐसा करना इसलिए भी आवश्यक है क्योंकि जैसे-जैसे देश चुनाव की ओर बढ़ेगा, वैसे-वैसे बढ़ते शोर में सच के कहीं पीछे रह जाने की संभावना है।
मोदी सरकार के समावेशी विकास के दावे कितने सच हैं?
किसी भी अर्थव्यवस्था के विकास का आदर्श बिंदु होता है समावेशी विकास। यदि इस लिहाज से देखा जाए तो वर्ष 2014 से ही मोदी सरकार देश में समावेशी विकास का दावा करती रही है। प्रश्न यह है कि ये दावा कितना सच है? वर्तमान सरकार की कौन सी योजनाएं ऐसी रही हैं जिन्हें समावेशी विकास का आधार माना जा सकता है? यदि पिछले सात वर्षों में देखा जाए तो अर्थव्यवस्था में समावेशी विकास के लिए सरकार की जिस योजना को आधार माना जा सकता है, वह है जनधन योजना।
आंकड़ों के अनुसार जनधन योजना के अंतर्गत 40 करोड़ से अधिक बैंक अकाउंट खोले गए जो सरकार की ओर से डिलीवरी का आधार बने। वैसे इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि वर्ष 2014 तक बैंकिंग सेवाओं का अधिक से अधिक भारतीयों तक पहुंचाना बहुत बड़ी चुनौती रही थी और तब तक की सरकारें इन विषय में सक्षम साबित नहीं हुई थी। ऐसे में जनधन अकाउंट मोदी सरकार की तमाम आर्थिक योजनाओं डिलीवरी का आधार बने।
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इसके साथ ही प्रधानमंत्री मुद्रा योजना ने 2 करोड़ से अधिक छोटे व्यवसायों को संपार्श्विक-मुक्त ऋण प्रदान किया है। आयुष्मान भारत योजना ने 55 करोड़ से अधिक लोगों को स्वास्थ्य बीमा कवरेज प्रदान किया है। स्वच्छ भारत अभियान के तहत देश में 11 करोड़ से अधिक शौचालयों का निर्माण किया गया। उज्ज्वला योजना ने गरीबी रेखा से नीचे के परिवारों की महिलाओं को 8 करोड़ से अधिक मुफ्त एलपीजी कनेक्शन प्रदान किए हैं।
आंकड़े बताते हैं कि इन पहलों ने वित्तीय समावेशन, उद्यमशीलता, स्वास्थ्य देखभाल और स्वच्छ ऊर्जा तक आम भारतीय की पहुंच को बढ़ावा देने में मदद की है और समाज के वंचित वर्गों के लिए समग्र जीवन स्तर में सुधार का काम किया है।
भारतीय अर्थव्यवस्था में वर्ष 2014 के पहले और बाद की संक्षिप्त तुलना
मोदी सरकार के समावेशी विकास के दावों को आंकड़ों के आधार पर देखने के बाद आर्थिक विकास के अन्य मानकों को आगे रखकर वर्ष 2014 के पहले दस वर्ष और उसके बाद के लगभग 9 वर्षों में भारतीय अर्थव्यव्स्था के प्रदर्शन का तुलनात्मक अध्ययन किया जा सकता है। ऐसी तुलना इक्कीसवीं सदी के भारत में दो सरकारों के प्रदर्शन का आधार बन सकती है।
अब प्रश्न है कि अर्थव्यवस्था के किन मानकों को आगे रखकर तुलना की जाए? ज़ाहिर है कि ऐसे मानको के आधार पर ही तुलना हो सकती है जो परंपरागत तौर पर आधुनिक विश्व में अर्थव्यवस्था के लिए आवश्यक माने जाते हैं।
यह पूछा जा सकता है कि वर्ष 2014 के बाद आर्थिक क्षेत्रों में हुए वित्तीय और तकनीकी विकास और बदलाव के प्रभाव को कैसे आंका जा सकेगा? इसमें कोई दो मत नहीं कि वर्ष 2014 के पश्चात आर्थिक क्षेत्र में तेज़ी से बदलाव हुआ है पर यह देखना भी आवश्यक है कि ऐसे बदलाव को तत्कालीन सरकार कैसे स्वीकार करती है और अर्थव्यवस्था को सुदृढ़ करने में इसका कितना उपयोग करती है।
यदि इस बिंदु पर तुलना की जाए तो इस बात से कोई इनकार नहीं कर सकता कि मोदी सरकार ने अर्थव्यवस्था को सुदृढ़ बनाने में न केवल तकनीक बल्कि वित्तीय व्यवस्था का अच्छा इस्तेमाल किया है। अब एक कोशिश करते हैं अर्थव्यवस्था के मानकों पर दोनों सरकारों के प्रदर्शन की तुलना की।
2014 से पहले और बाद में हुए कुछ प्रमुख बदलाव इस प्रकार हैं:—
आर्थिक विकास : वर्ष 2014 से पहले भारतीय अर्थव्यवस्था लगभग 6-7% की औसत दर से बढ़ रही थी। 2014 के बाद से अर्थव्यवस्था ने लगभग 7-8% की औसत वृद्धि दर के साथ विकास देखा है। इसके अलावा वर्ष 2018 में भारत चीन को पछाड़कर दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ती प्रमुख अर्थव्यवस्था बना।
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अब प्रश्न उठता है कि समावेशी विकास के मुद्दे पर दोनों सरकारें कहां खड़ी होती हैं? इसमें कोई दो मत नहीं कि इस मुद्दे पर आँकड़े मोदी सरकार के पक्ष में दिखाई देते हैं। वर्ष 2014 के बाद योजनाओं की डिलीवरी के फ्रंट पर मोदी सरकार कहीं अधिक सफल दिखाई देती है।
मुद्रास्फीति : वर्ष 2014 से पहले मुद्रास्फीति भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए एक चिंता का प्रमुख विषय थी। 2013 में उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (सीपीआई) मुद्रास्फीति की दर 10% से ऊपर थी। हालांकि, तब से, मुद्रास्फीति काफी हद तक नियंत्रण में रही है। 2019 में, CPI मुद्रास्फीति की दर लगभग 4% थी।
पिछले वर्ष से मुद्रास्फीति की दर बढ़ी है पर इस पर यह कहा जा सकता है कि रूस-यूक्रेन युद्ध ने दुनिया भर की अर्थव्यवस्थाओं पर बुरा असर डाला है। यदि अन्य बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में मुद्रास्फीति की दर देखें तो पायेंगे कि अन्य देशों की तुलना में भारत ने इस विषय में बहुत अच्छा किया है।
यहाँ हम एक और बिंदु को रेखांकित करना चाहेंगे। यूपीए के समय मुद्रास्फीति की दर दो अंकों में थी और इस बात को पी चिदंबरम ने हाल ही में इंडिया टुडे समिट में स्वीकार भी किया। पर यहाँ एक बात को रेखांकित करने की आवश्यकता है और वह है मुद्रास्फीति की दर को नियंत्रण में करने के लिए दोनों सरकारों द्वारा किए गए प्रयास। जहाँ यूपीए सरकार ने मुद्रास्फीति की दर को नियंत्रण करने के लिए केवल वित्तीय रास्ते को (ब्याज दर में बढ़ोतरी पढ़ें) अपनाया वहीं मोदी सरकार ने अन्य और तरीक़े अपनाये जिसके कारण सप्लाई चेन को सुदृढ़ किया गया। ख़ासकर फ़ूड इन्फ़ेक्शन को नियंत्रित करने के लिए प्राइस स्टेबिलाइज़ेशन फण्ड की स्थापना और उसका सही इस्तेमाल सबसे प्रमुख कदम रहा।
इसके अलावा कर सुधार में GST और वित्तीय कदमों में विमुद्रीकरण ने मुद्रास्फीति की दर को नीचे लाने में प्रमुख भूमिका निभाई। GST लागू करने से पहले विमुद्रीकरण एक महत्वपूर्ण कदम था जिसकी विवेचना सही तरीके से किए जाने की आवश्यकता है।
डिजिटल इंडिया : मोदी सरकार ने पिछले कुछ वर्षों में वित्त और आर्थिक क्षेत्र में होने वाले बदलावों की न केवल समय पर पहचान की बल्कि संभावित बदलावों और नवाचारों को स्वीकार करते हुए आर्थिक विकास में उन्हें लगाया।
यह बात मोदी सरकार को एक आत्मविश्वासी सरकार की तरह प्रस्तुत करती है। इसके ठीक उलट यूपीए-2 अपने शुरुआती दिनों से ही पॉलिसी पैरालिसिस की शिकार रही। वर्ष 2010 से ही सरकार के खिलाफ भ्रष्टाचार के इतने मामले आए कि उसका आत्मविश्वास डगमगा गया और वह निर्णय लेने में डरने लगी। पॉलिसी पैरालिसिस के साथ बढ़ती महंगाई, बैंकों में भ्रष्टाचार और उनका खराब प्रदर्शन सरकार के कामकाज के आड़े आया।
वहीं वर्तमान सरकार ने डिजिटल तकनीक के महत्व पर जोर दिया और डिजिटल साक्षरता तथा डिजिटल सेवाओं को बढ़ावा देने के लिए कई पहल शुरू की हैं। भारत में वर्ष 2014 तक इंटरनेट कनेक्शन 25.15 करोड़ था जो कि 2022 में 2.3 गुना बढ़कर 83.69 करोड़ हो गया है। भारत में वर्ष 2014 में ब्रॉडबैंड कनेक्शन 6.1 करोड़ था जो कि वर्ष 2022 में 12.3 गुना बढ़कर 81.62 करोड़ हो गया। इस डिजिटल क्रांति का असर देश की अर्थव्यवस्था पर पड़ा और न केवल सरकार बल्कि अंतरराष्ट्रीय संस्थाएँ भी इसे स्वीकार करती हैं।
विदेशी निवेश : यूपीए -1 के दौरान देश में FDI आना शुरू हुआ। शुरुआती पांच वर्षों में यदि GDP के अनुपात में देखें तो यह प्रतिशत 2004 में 0.77% से बढ़कर 2008 में 3.62 तक पहुँच गया था पर उसके बाद के वर्षों में यह लगातार नीचे जाता गया। इसके पीछे वर्ष 2008-09 में अमेरिका में आई सबप्राइम क्राइसिस का भी योगदान था पर इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि इसके पीछे सरकार में पॉलिसी पैरालिसिस और भ्रष्टाचार का भी बड़ा हाथ था। तत्कालीन सरकार की पॉलिसी पैरालिसिस का असर यह हुआ कि विदेशी निवेशकों का भारतीय आत्मविश्वास डगमगाया और इसके कारण भारतीय अर्थव्यवस्था को बड़ा नुकसान हुआ।
वर्ष 2014 के बाद विदेशी निवेशकों का भारतीय अर्थव्यवस्था में विश्वास बढ़ा है और इसके पीछे मोदी सरकार की दीर्घकालिक नीतियों और आर्थिक सुधारों का का बड़ा योगदान है। यदि अर्थव्यवस्था की साइज को आगे रखा जाए तो देश में FDI लगातार बढ़ा है और यह पिछले 6 वर्षों से GDP के औसतन 2% से ऊपर रहा है।
इंफ्रास्ट्रक्चर का विकास : विशेषज्ञों के अनुसार यूपीए-1 के दौरान होने वाले आर्थिक विकास के पीछे उसके पूर्व की वाजपेयी सरकार द्वारा किए गए इंफ्रास्ट्रक्चर के विकास का बड़ा योगदान था। डॉक्टर मनमोहन सिंह की सरकार की समस्या यह रही कि वह वाजपेयी सरकार द्वारा विकसित इंफ्रास्ट्रक्चर में अधिक कुछ जोड़ पाने में अक्षम रही। यही कारण है कि एक बिंदु पर पहुँच कर यूपीए सरकार के लिए आर्थिक विकास को बरकरार रखना मुश्किल हो गया।
हाईवे कंस्ट्रक्शन के ये आँकड़े बताते हैं कि अर्थव्यवस्था के इस बिंदु पर मोदी सरकार यूपीए से बहुत आगे है। इसके अलावा इंफ्रास्ट्रक्चर की क्वालिटी एक ऐसा विषय है जिस गंभीर विमर्श की आवश्यकता है। केवल हाईवे ही नहीं, रेलवे कनेक्टिविटी और नागरिक उड्डयन के लिए बनाये गये नये हवाई अड्डे इस बात का सबूत हैं कि वर्तमान सरकार द्वारा बनाया जा रहा इंफ्रास्ट्रक्चर अगले कई दशकों तक देश की अर्थव्यवस्था को आगे के जाने में सक्षम है।
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इन बिंदुओं के अलावा कुछ और बिंदु हैं जिनका तुलनात्मक अध्ययन हम अगले भाग में प्रस्तुत करेंगे।