भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन इसरो द्वारा हाल ही में चंद्रयान-3 की सफल लॉन्चिंग के साथ इतिहास रचा गया था। यह स्पेस कार्यक्रम देश के लिए कई मायनों में विशेष रहा। चंद्रयान-3 के लॉन्च होने से एक दिन पहले (इसरो) के वैज्ञानिकों की टीम ने चंद्रयान-3 के लघु मॉडल के साथ तिरुपति वेंकटचलपति मंदिर का दौरा किया था। वैज्ञानिकों की टीम द्वारा चंद्रयान-3 की सफल लॉन्चिंग की प्रार्थना करने के लिए मंदिर गई थी।
आस्था और विज्ञान के संबंध पर बिखरे बुद्धिजीवी वर्ग द्वारा वैज्ञानिकों के इस कदम पर प्रश्न उठाए गए थे। व्यक्तिगत स्वतंत्रता और आस्था को लेकर लेफ्ट लॉबी का पक्षपाती रवैया आस्था और विज्ञान में टकराव को बढ़ावा देता ही है, हालांकि सनातन धर्म और विज्ञान का रिश्ता बहुत पुराना है। सनातन शास्त्रों में विज्ञान के कई उम्दा उदाहरण देखने को मिलते हैं। यही कारण है कि भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) के चेयरमैन एस सोमनाथ ने कहा कि विज्ञान का मूल वेद हैं पर अरब के रास्ते यह ज्ञान पश्चिमी देशों तक पहुंचा और वहां के वैज्ञानिकों ने इसे अपने नाम से प्रचारित कर दिया।
इसी सनातन शिक्षा और विज्ञान के बेजोड़ मेल का उदाहरण हाल ही में अमेरिका में देखने को मिला जहां प्रवासी भारतीयों के एक समूह ने चंद्रयान-3 की सफल लैंडिग के लिए पूजा, हवन और कीर्तन का आयोजन किया। आयोजन में चंद्रयान की सफल लैंडिंग के लिए कीर्तन और मंत्रोच्चार किया गया।
अमेरिका के डेनेवर में रहने वाले भारतीय मूल के सोनाली और शिवेंद्र आहूजा ने अपने निवास स्थान पर चंद्रयान 3 की सफल लैंडिंग के लिए यह कार्यक्रम करवाया जिसमें अन्य प्रवासी भारतीयों की उपस्थिति देखी गई। आयोजन स्थल पर मिशन की तस्वीर के साथ आगंतुकों से अनुरोध किया गया कि सब मिलकर चंद्रयान-3 की सफल लैंडिग के लिए प्रार्थना करें।
कार्यक्रम का आयोजन करने वाले शिवेंद्र आहुजा कहते हैं; न केवल इतिहास बल्कि हमारी संस्कृति भी बताती रही है कि हमारे लिए आस्था और विज्ञान में कभी टकराव नहीं रहा। विज्ञान चंद्रमा को पृथ्वी का उपग्रह मानता है और सनातन धर्म चन्द्रमा को देवता। ऐसे में हमने सोचा कि हम चन्द्र देवता से चंद्रयान को उनकी जमीन पर उतरने की अनुमति देने का अनुरोध करें ताकि चंद्रयान सकुशल वहाँ लैंड कर सके।
चंद्रयान-3 की सफलता के लिए यह प्रार्थना न सिर्फ प्रवासी भारतीयों की आस्था का प्रमाण है बल्कि यह देश के प्रति उनकी स्नेह को भी दर्शाता है। प्रवासी भारतीय अमेरिका ही नहीं दुनिया के किसी भी देश में रहें पर वे भारत के कल्याण और समृद्धि के प्रति योगदान देने के लिए सदैव तत्पर रहते हैं। विदेश में रहकर अपनी संस्कृति को बढ़ावा देकर यह देश की सॉफ्ट पावर बने हुए हैं। प्रवासी भारतीयों को अब सरकार के द्वारा भी ‘ब्रेन-ड्रेन’ नहीं बल्कि‘ब्रेन-गेन’ के रूप में देखा जा रहा है। यह कहना अतिश्योक्तति नहीं होगी की प्रवासी समुदाय देश के लिए विदेश में रणनीतिक संपत्ति बनकर उभरा है।
यह भी पढ़ें- चंद्रयान-3 की सफलता में नेहरूवाद की संभावना और वाजपेयी सरकार का योगदान