भारतीय कॉटन उद्योग बांग्लादेश को पश्चिमी देशों से मिलने वाले गार्मेंट्स ऑर्डर में कमी का असर महसूस कर रहा है। ज्ञात हो कि बांग्लादेश का गारमेंट्स उद्योग कच्चे माल और इनपुट वस्तुओं के लिए भारत पर निर्भर रहता है।
द इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के अनुसार, बांग्लादेश का गार्मेंट्स उद्योग, जिसका देश के निर्यात आय में 80% से अधिक का योगदान है, हाल में हुए राजनीतिक उथल पुथल का शिकार होता नज़र आ रहा है। यह उद्योग में बांग्लादेश में लगभग चालीस लाख लोगों को नौकरियाँ देता है, हाल में आई राजनीतिक अस्थिरता से बड़े स्तर पर प्रभावित हुआ है। इसके परिणामस्वरूप भारतीय कॉटन निर्यात की आपूर्ति श्रृंखला पर इसका असर दिखाई दे रहा है।
पश्चिमी ऑर्डर में कमी के कारण बांग्लादेश के कपड़ा उत्पादन में आया इस व्यवधान का असर खासकर ढाका और चटगाँव जैसे प्रमुख औद्योगिक केंद्रों पर दिखाई दे रहा है। उद्योग के अंदरूनी सूत्रों के अनुसार हालाँकि मौजूदा ऑर्डर को पूरा करने के लिए अभी भी कुछ सामग्री भारत से मंगाई जा रही है, लेकिन पश्चिमी कंपनियों से नए ऑर्डर अस्थायी रूप से बंद हो गए हैं।
चेन्नई स्थित फरीदा समूह के अध्यक्ष एम. रफीक अहमद, जिन्होंने बांग्लादेश के फुटवियर क्षेत्र में निवेश किया है, ने कहा कि इन अपेक्षाकृत स्थिर क्षेत्रों में उत्पादन जारी है। उन्होंने आशा व्यक्त की कि बांग्लादेश की सबसे कम विकसित देश (LDC) की स्थिति से जुड़ी अनुकूल शुल्क शर्तों के कारण पश्चिमी ऑर्डर फिर से शुरू हो जाएँगे।
हालाँकि, नए ऑर्डर में रुकावट ने बांग्लादेश को भारतीय कॉटन निर्यात को प्रभावित करना शुरू कर दिया है। कन्फ़ेडरेशन ऑफ़ इण्डियन टेक्सटाइल इंडस्ट्री (CITI) की महासचिव चंद्रिमा चटर्जी ने पुष्टि की है कि पश्चिमी खरीदारों से भारत में इनक्वायरी की संख्या बढ़ रही है, लेकिन भारतीय कपड़ा उद्योग पर तत्काल प्रभाव नकारात्मक रहा है। उन्होंने इस बात पर प्रकाश डाला कि बांग्लादेश को इनपुट सामग्री का निर्यात धीमा हो गया है, जबकि भारत वैकल्पिक बाजारों की खोज कर रहा है। चटर्जी ने घरेलू मांग को संबोधित करने और भारत की प्रतिस्पर्धी स्थिति में सुधार करने के लिए सही दिशा में उठाए गए कदमों के रूप में उत्पादन से जुड़े प्रोत्साहन (PLI) और PM MITRA योजनाओं जैसी सरकारी पहलों की ओर इशारा किया।
बांग्लादेश में मानवाधिकार को लेकर हाल में चिन्ताएँ बढ़ गई हैं, जिससे पश्चिमी खरीदार वैकल्पिक आपूर्तिकर्ताओं की तलाश कर रहे हैं। रिपोर्ट में उद्धृत एक सूत्र के अनुसार, यह बदलाव हाल ही में आये राजनीतिक संकट से पहले ही शुरू हो गया था, क्योंकि यूरोपीय बाजार बांग्लादेश के मानवाधिकार रिकॉर्ड को लेकर चिंतित थे। इस बदलाव के बावजूद, अधिकांश नए ऑर्डर कंबोडिया, वियतनाम और इंडोनेशिया को मिले हैं। भारत को इन नये ऑर्डर का लाभ अभी तक नहीं मिला है क्योंकि यहाँ लाभ स्टेबल प्रोडक्ट मिक्स और बाज़ार चुनौतियों के कारण सीमित हैं।
बांग्लादेश का 45 बिलियन डॉलर का परिधान उद्योग, जो इसकी अर्थव्यवस्था का एक महत्वपूर्ण घटक है, बुनियादी ढाँचे के मुद्दों से भी जूझ रहा है, जिसमें बिजली की कमी और रूस-यूक्रेन युद्ध और प्रतिकूल मौसम की स्थिति के कारण उच्च इनपुट लागत शामिल है, जैसा कि S&P Global द्वारा रिपोर्ट किया गया है। ये चुनौतियाँ मौजूदा संकटों को बढ़ाती हैं और उद्योग की भविष्य की स्थिरता के बारे में सवाल उठाती हैं।
बांग्लादेश की स्थिति कूटनीतिक मोर्चे पर भी एक महत्वपूर्ण चिंता का विषय बनी हुई है। भारतीय प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी और अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने हाल ही में बांग्लादेश की राजनीतिक स्थिति पर चर्चा की। भारतीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने भी बांग्लादेश में चल रहे घटनाक्रमों के बीच भारतीय परिधान और बुने हुए कपड़े क्षेत्र के सामने “अनिश्चितता” को स्वीकार किया पर यह उम्मीद भी जताई कि अंतरिम सरकार जल्द ही स्थिरता बहाल करेगी।
जैसे-जैसे संकट बढ़ता जा रहा है, यह स्पष्ट हो गया है कि भारतीय कपड़ा क्षेत्र को इन नए बाजार की गतिशीलता के साथ तेजी से तालमेल बिठाना होगा तथा अपने पड़ोसी की राजनीतिक और आर्थिक अस्थिरता से उत्पन्न चुनौतियों से निपटते हुए बदलती वैश्विक मांग को पूरा करने के लिए अपने उत्पादों में विविधता लानी होगी।
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