कॉन्ग्रेस के भारत जोड़ो यात्रा के इतर महीने भर चलने वाले कार्यक्रम काशी-तमिल संगमम के माध्यम से सही मायनों में भारत को जोड़ने का प्रयास किया जा रहा है। उत्तर और दक्षिण की राजनीति करने वाले लोगों ने जो क्षेत्रीय, भाषाई और वैचारिक खाई खोदी है, उसे पाटने का काम प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा धर्म और संस्कृति को लेकर किए जा रहे कार्य हैं। भले ही दशकों से काशी और तमिलनाडु के बीच के सम्बन्धों के प्रतीक भौतिक संरचनाओं को ढहाया जा रहा हो लेकिन इनका भावनात्मक जुड़ाव आज भी मजबूत है।
हाल ही में विदेश मंत्री एस जयशंकर भी इस कार्यक्रम में शामिल हुए। इस दौरान उन्होंने बताया कि भारत सरकार ने कम्बोडिया स्थित विश्व के सबसे बड़े मन्दिर के जीर्णोद्धार का बीड़ा उठाया है। यह भारत और दुनिया भर में फैले सभी सनातनियों का दायित्व है और इसे बहुत पहले ही पूरा कर लिया जाना चाहिए था। हालाँकि, पूर्व की सरकारों ने जब राम को ही मिथ्या बताने का प्रयास किया हो तो फिर उनसे क्या अपेक्षा की जा सकती है।
वाजपेयी सरकार की पहल
वर्ष 2004 में तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने कम्बोडिया की तत्कालीन सरकार से अंकोरवाट मन्दिर के जीर्णोद्धार के लिए द्विपक्षीय समझौता किया था। इस समझौते के तहत भारत सरकार द्वारा लगभग 5.5 मिलियन डॉलर की सहायता दी जानी थी। यह कार्य दो-दो वर्षों के पाँच चरणों में पूरा करने का लक्ष्य निर्धारित किया गया था लेकिन उसी वर्ष आम चुनाव के बाद सत्ता में आई कॉन्ग्रेस सरकार ने इसे नज़रअंदाज़ कर दिया।
एक ओर चीन, जापान और साउथ कोरिया जैसे देशों ने भारत समेत अन्य देशों में बौद्ध धर्म से जुड़े ऐतिहासिक धरोहरों के संरक्षण और जीर्णोद्धार हेतु आर्थिक सहायता दी है, वहीं भारत जिसके मूल में ही सनातन धर्म है, क्या उसका दायित्व नहीं है कि वह दुनिया भर में फैले प्रमुख हिन्दू मन्दिरों-धरोहरों को संरक्षित करने के लिए अपनी प्रतिबद्धता दिखाए?
अंकोरवाट मन्दिर
यह मन्दिर उत्तरी कम्बोडिया में स्थित है, जिसका निर्माण खमेर राजवंश के शासक सूर्यवर्मन द्वितीय द्वारा 1112-53 ई. के मध्य करवाया गया था। अंकोरवाट का प्राचीन नाम यशोधरपुर है। खमेर व चोल शैली का यह मन्दिर मुख्यत: विष्णु भगवान को समर्पित है लेकिन यहाँ शैव और बौद्ध धर्म के कलाकृतियाँ भी देखी जाती हैं।
लगभग 400 एकड़ में फैला यह मन्दिर परिसर यूनेस्को की विश्व सम्पदा की सूची में भी शामिल है। चूना-पत्थर से निर्मित लगभग हज़ार साल के बाद आज भी यह दुनिया का सबसे बड़ा मन्दिर है। इस मन्दिर की भव्यता देख यह अनुमान लगाया जा सकता है कि उस काल में कम्बोडिया में हिन्दू धर्म अपने चरम पर रहा होगा। हालाँकि, वर्तमान में इसके संरक्षण के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाए गए हैं।
हिन्दू सभ्यता को सहेजने का प्रयास
भारत के उप-राष्ट्रपति जगदीप धनखड़ और विदेश मंत्री ने भी अपना पहला विदेश दौरा कम्बोडिया के अंकोरवाट मन्दिर का किया था। विदेश मंत्री ने इस दौरान कहा भी था कि हमारी सभ्यता भारत ही नहीं बल्कि भारतीय प्रायद्वीप से कहीं आगे तक फैली है। आज जब हम अपनी सभ्यता को पुनर्स्थापित और पुनर्जीवित कर रहे हैं तो यह मात्र भारतीय सीमा के अन्दर ही नहीं बल्कि दुनिया भर में अपने साथ अपनी सभ्यता को ले गए भारतीयों का सहयोग करना भी हमारी जिम्मेदारी है।”
विदेश मंत्री ने एस जयशंकर ने यह भी कहा कि दुनिया में 3.5 करोड़ भारतीय मूल के हिन्दुओं के धार्मिक हितों की रक्षा करना भी भारत सरकार का दायित्व है।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी सरकार के प्रयासों से संयुक्त अरब अमीरात और बहरीन जैसे इस्लामी देशों में भी हिन्दू मन्दिरों की परिकल्पना इस बात का सूचक है। इसके अलावा नेपाल में रामायण सर्किट के निर्माण में 200 करोड़ का योगदान, श्रीलंका में थिरुकेतीस्वरम मन्दिर का जीर्णोद्धार, भारत-पाक युद्ध के दौरान पाक फौजियों ने ढाका के रमना काली मन्दिर को खण्डित किया था, जिसे 2021 में भारत सरकार द्वारा पुन: बनवाया गया। वर्ष 2015 में नेपाल में आए भीषण भूकम्प के बाद भारत सरकार ने नेपाल में कई मन्दिरों की मरम्मत के लिए आर्थिक सहायता भी दी थी। डेरा बाबा नानक श्री करतारपुर कॉरिडोर का निर्माण आदि इस सूची में शामिल हैं।
भारत में भी केन्द्र सरकार द्वारा सैकड़ों वर्षों से उपेक्षित देव-स्थलों के पुनर्निर्माण और जीर्णोद्धार करवाने का कार्य किया गया है। इनमें अयोध्या में रामलला मन्दिर, द्वारिका का सोमनाथ मन्दिर, उज्जैन का महाकाल परिसर, काशी विश्वनाथ मन्दिर, उत्तराखण्ड में केदारनाथ मन्दिर, जम्मू का रघुनाथ मन्दिर।
इसके अलावा श्रद्धालुओं की धार्मिक यात्रा की सुगमता के लिए सरकार ने काफी कार्य किए हैं। इनमें प्रमुख तौर पर चार धाम यात्रा कॉरिडोर, कटड़ा स्थित वैष्णो देवी मन्दिर, कैलाश मानसरोवर यात्रा के लिए सड़क निर्माण जैसे विकास कार्य शामिल हैं।