संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन (Conference of Parties of the UNFCCC/COP 27) का 27वाँ सम्मेलन आज यानी रविवार (नवम्बर 06, 2022) को मिस्त्र के शर्म अल-शेख में शुरु हो चुका है। यह बैठक 18 नवम्बर तक चलेगी।
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक कॉप 27 (COP 27) की बैठक की पृष्ठभूमि में रूस-यूक्रेन युद्ध और उससे उपजे संकट चर्चा का विषय होंगे। इसके साथ ही, तीन रिपोर्ट, जिनमें बताया गया था कि 190 से अधिक देशों द्वारा ग्लोबल वार्मिंग के लिए किए गए प्रयास पर्याप्त नहीं है, यह चर्चा का मुख्य बिन्दु रहेगा।
उल्लेखनीय है कि वर्ष 2015 में भारत सहित दुनिया के 200 देशों ने जलवायु परिवर्तन को लेकर पेरिस समझौते पर एकजुट हो कर हस्ताक्षर किए थे। इसमें दुनिया के तापमान को 1.5 डिग्री से अधिक ना बढ़ने देने की प्रतिबद्धता व्यक्त की गई थी।
भारत की तरफ से कॉप 27 की बैठक में देश के पर्यावरण मंत्री भूपेन्द्र यादव प्रतिनिधित्व कर रहे हैं। साथ ही, भारत सरकार के कई अन्य मंत्रालय के अधिकारी और विशेषज्ञ भी इस बैठक में शामिल होंगे, जिनका नेतृत्व पर्यावरण मंत्री कर रहे हैं।
इस सम्मेलन में भारत जलवायु परिवर्तन के वित्त सम्बन्धी मुद्दे को बड़े पैमाने पर उठाने का प्रयास करेगा। यूएनईपी रिपोर्ट ने हाल ही में यह उल्लेख भी किया है कि विकासशील देशों को जलवायु परिवर्तन के प्रभाव को कम करने के लिए कई साल 2030 तक प्रतिवर्ष 340 अरब डॉलर की देने की बात कही है। जबकि, वर्तमान में विकसित देश 340 अरब डॉलर का दसवां हिस्सा दे रहे हैं।
जलवायु परिवर्तन के वित्त मुद्दे के अलावा, जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को कम करने के लिए विकासशील देशों को सहायता प्रदान करने के लिए एक तंत्र पर कार्य करने के लिए चर्चा होने की उम्मीद है।
कॉप 27 की बैठक से पहले संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन ने एक नई रिपोर्ट जारी की है। रिपोर्ट के मुताबिक दुनिया भर के देश ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन कम होता दिखा रहे हैं। हालाँकि, यह प्रयास इस सदी के अंत तक वैश्विक तापमान वृद्धि को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित करने के लिए काफी नहीं होंगे।
संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन सम्मेलन की हालिया रिपोर्ट कहती है कि कई देश ऐसे हैं जो ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करने का मात्र दिखावा कर रहे हैं।
कॉप 27 की बैठक से पहले जारी इस रिपोर्ट में चेतावनी दी गई है कि अगर ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन पर लगाम नहीं लगती है तो, इस सदी में जलवायु परिवर्तन के सबसे भयानक प्रभावों से बचना मुश्किल हो जाएगा।
परिणामस्वरूप भीषण सूखा, लू अथवा हीटवेव और भारी बारिश के बाद बाढ़ जैसी घटनाएँ होना आम बात हो जाएगी। इसका प्रभाव मानवजाति पर तो पड़ेगा ही साथ ही पारिस्थितिकी तंत्र और जैव विविधता पर भी बुरा असर पड़ने की आशंका जताई गई है।