इंडिया टुडे कॉन्क्लेव में 18 मार्च को देश के पूर्व वित्तमंत्री पी चिदंबरम इंडिया टुडे के राजदीप सरदेसाई नामक ऐंकर के साथ कन्वर्सेशन में थे। सरदेसाई ने चिदंबरम से कहा; भारत में मुद्रास्फीति की दर पिछले वर्ष औसतन पाँच दसमलव पाँच प्रतिशत रही जो दक्षिणी एशिया और पश्चिमी देशों की तुलना में कम थी। मोदी सरकार का कहना है कि इन्फ़्लेशन को कंट्रोल में रखने में उसने यूपीए सरकारों की तुलना में अच्छा काम किया है। यूपीए सरकार के समय इन्फ़्लेशन डबल डिजिट में था।
इसके जवाब में चिदंबरम ने कहा; यूपीए सरकार के समय साल 2009 से 2011 के बीच इन्फ़्लेशन सचमुच बढ़ा हुआ था। उन्होंने आगे कहा; लेकिन इसके पीछे कारण यह था कि मेरे विचार से तब के वित्तमंत्री प्रणब मुखर्जी का विश्वास अन्य वित्तमंत्रियों की तरह स्टिमुलस पैकेज पर अधिक था और इसी वजह से इन्फ़्लेशन बढ़ा। हमने वो पैसे खर्च किए जो हमारे पास थे ही नहीं और इसीलिए इन्फ़्लेशन कंट्रोल से बाहर चला गया। इसलिए, हम इस बात से इनकार नहीं करते कि यूपीए के समय इन्फ़्लेशन बढ़ा हुआ था।
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चिदंबरम ने बड़ी सहजता से बिना पलक झपकाए इन्फ़्लेशन की ज़िम्मेदारी का सारा ठीकरा स्वर्गीय प्रणब मुखर्जी के सर पर फोड़ दिया। पर उन्होंने जो कहा, क्या वह पूरा सच है?
नहीं।
कृष्ण बिहारी नूर की ग़ज़ल की पंक्तियाँ हैं कि; सच घटे या बढ़े तो सच न रहे, झूठ की कोई इंतिहा ही नहीं।
हम आपको बताते हैं कि चिदंबरम यहाँ सच घटा कर कैसे ख़ुद की फाइनेंसियल विजार्ड की ईमेज बचाने के चक्कर में झूठ बोल रहे थे।
आप भारत में इन्फ़्लेशन सम्बंधित यह चार्ट देखें।
साल 2004 में जब स्वर्गीय अटल बिहारी वाजपेयी जी की सरकार बाहर हुई और यूपीए वन की सरकार बनी तब इन्फ़्लेशन की दर 3.77 प्रतिशत थी। चिदंबरम ने वित्त मंत्री के रूप में कार्यभार सँभाला और साल 2005 में यह दर 4.25 प्रतिशत हो गई। उसके बाद साल 2006 में 5.80 प्रतिशत, 2007 में 6.37 प्रतिशत, 2008 में 8.35 प्रतिशत और 2009 में 10.88 प्रतिशत रही।
तो चिदंबरम इन्फ़्लेशन के बढ़ने का कारण वित्त मंत्री मुखर्जी को भले ही बताकर निकल लें पर सच यह है कि इन्फ़्लेशन उनके कार्यकाल में ही बढ़ना शुरू हो गया था और प्रणब मुखर्जी को फिर से वित्त मंत्री बनाने का कारण ही शायद चिंदम्बरम का फाइनेंसियल और इकोनॉमिक मिसमैनेजमेंट था।