संयुक्त राष्ट्र संघ के अधीन एक संस्था की तरफ से आई एक रिपोर्ट ने भारत में जनसंख्या (India’s Population) पर नई बहस को जन्म दे दिया है। 19 मार्च को जारी संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या फंड (UNFPA) की इस रिपोर्ट के अनुसार भारत वर्ष 2023 की पहली छमाही में ही चीन (China) को पीछे छोड़ दुनिया का सबसे अधिक जनसंख्या वाला देश बन जाएगा।
UNFPA की रिपोर्ट में भारत की जनसंख्या 142 करोड़ और पड़ोसी चीन की जनसंख्या 140 करोड़ के आसपास बताई। जनसंख्या के आँकड़े के सामने आने के साथ ही टोटल फर्टिलिटी रेट, धर्म के हिसाब से जनसंख्या वृद्धि दर और संसाधनों की उपलब्धता पर बहस आरंभ हो गई है।
इस बहस को आँकड़ों के माध्यम से समझा जाए तो पता चलता है कि भारत की बढ़ती जनसंख्या को लेकर चिंतन करने की जरूरत है भी और नहीं भी है। कोई भी सामान्य बुद्धि वाला व्यक्ति मेरी इस बात से असहमत हो सकता है कि भला बढ़ती जनसंख्या चिंता का विषय क्यों नहीं हो सकती है।
प्रत्येक व्यक्ति यह जानता है कि बढ़ती जनसंख्या के कारण संसाधनों पर दबाव आता है जिससे शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार और अन्य समस्याएं खड़ी होती हैं। बढ़ती जनसंख्या के लिए भोजन, रहने की जगह और अन्य सुविधाओं की व्यवस्था करना एक चुनौतीपूर्ण काम होता है।
लेकिन, चिंता करने की जरूरत क्यों नहीं है, इसके लिए कुछ आँकड़ों का परीक्षण किया जाना जरूरी है। इस मामले में सबसे पहला आँकड़ा है जनसंख्या वृद्धि दर। भारत की जनसंख्या वृद्धि दर वर्तमान में 1% से नीचे है। यह 1990 से लगातार घट रही है। एक आँकड़े के अनुसार तो यह 0.8% है।
यानी जनसंख्या की बढ़त पर लगाई जाने वाले रोक बिना किसी सरकारी बाध्यता के ही काम कर रही है। वर्ष 1990 में यह 1.3 के स्तर पर थी। इसका अर्थ यह है कि आने वाले समय में बड़ी जनसंख्या होने के बाद भी हम अपनी जनसंख्या में पहले की तुलना में कम नए लोग जोड़ रहे होंगे।
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दूसरा और सबसे महत्वपूर्ण आँकड़ा है टोटल फर्टिलिटी रेट का। सामान्य भाषा में कहा जाए तो फर्टिलिटी रेट किसी भी महिला द्वारा उसकी प्रजनन क्षमता के दौरान जन्म दिए गए बच्चों की संख्या है। भारत में वर्तमान में औसत TFR 2.0 है, जबकि किसी भी जनसंख्या के अपने आप को स्थिर बनाए रखने के लिए 2.1 के TFR की आवश्यकता होती है।
भारत का TFR लगातार घटा है। नेशनल फैमिली एंड हेल्थ सर्वे से यह बात सामने आई है। 1992-93 में देश का TFR 3.4 था जो कि अब घट कर 2.0 पर आ गया है।
इसका अर्थ यह है कि भारत की जनसंख्या आने वाले वर्षों में अपने चरम को छूकर नीचे की तरफ जाएगी। इसका एक बड़ा उदारहण चीन है जहाँ अब जनसंख्या में कमी आना आरंभ हो गया है। चीन का TFR वर्तमान में 1.28 है। चीन की जनसंख्या तेजी से बढ़ कर अब नीचे की तरफ जा रही है। वर्ष 2022 पहला ऐसा साल था जब चीन ने 6 दशकों के बाद जनसंख्या में कमी देखी।
रिसर्च एजेंसी PEW के मध्यम अनुमानों के अनुसार, भारत की जनसंख्या इस दशक के अंत तक 150 करोड़ का आँकड़ा पार करेगी और वर्ष 2064 तक धीमे धीमे बढ़ते हुए 170 करोड़ का आँकड़ा छुएगी जो इसका चरम होगा। इसके पश्चात यह कम होना चालू करेगी।
एक अन्य बात यह है कि भारत में शिक्षित वर्ग में TFR की दर औसत से भी नीचे है। जबकि कम शिक्षित वर्गों में यह ऊंचे स्तर पर है। धर्म के आधार पर भी देखा जाए तो देश में मुस्लिमों में TFR सबसे अधिक है और लगातार रिप्लेसमेंट लेवल (वह दर जिसमें एक जनसंख्या अपनी संख्या स्थिर रखती है) से ऊपर है।
धार्मिक समूह और जनसंख्या का फर्टिलिटी रेट
वर्तमान में मुस्लिमों को छोड़ कर बाक़ी तीनों मुख्य धर्मों का TFR रिप्लेसमेंट लेवल से नीचे जा चुका है। हालाँकि मुस्लिमों में भी इसमें गिरावट देखने को मिली है। देश के पहले नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे 1992-93 में मुस्लिमों को लेकर यह कहा गया था कि उनमें अन्य किसी भी धार्मिक समूह से अधिक फर्टिलिटी रेट है। एक मुस्लिम महिला के औसतन एक हिन्दू महिला से 1.1 अधिक बच्चे हैं।
कुछ ऐसा ही ट्रेंड हमें वर्गवार आधार पर देखने को मिलता है, जहाँ अनूसूचित जनजाति और अनूसूचित जातियां, जो कम शिक्षित और आर्थिक रूप से सशक्त नहीं हैं, उनमें भी TFR अधिक है।
यहाँ यह बात भी ध्यान देने वाली है कि इन सभी वर्गों में भी TFR लगातार घटा है और अब सभी वर्गों में यह रिप्लेसमेंट लेवल से नीचे आ चुका है। आने वाले समय में यह कारक भारत की आबादी को नीचे लाने के लिए ज़िम्मेदार होंगे।
अब जबकि हम देख चुके हैं कि आने वाले समय में हमारी जनसंख्या चरम को छूकर वापस जाएगी तो यह प्रश्न उठता है कि आज से पूर्ववर्ती सरकारों ने कभी जनसंख्या नियन्त्रण का प्रयास क्यों नहीं किया?
वर्तमान सरकार के पास जनसंख्या नियन्त्रण को लेकर कदम ना उठाने को लेकर सबसे कारण यह है कि हम पहले ही जनसंख्या घटने वाले चक्र में आ चुके हैं। समाज में आर्थिक और शैक्षिक स्तर के बढ़ने से लगातार देश में आबादी बढ़ने की दर में कमी आई है और आगे इसके और कम होने की संभावना है।
भारत वर्तमान में अपनी पूरी शक्ति से विश्व का मैन्युफैक्चरिंग हब बनने के लिए जोर लगा रहा है। इसमें केंद्र सरकार को कुछ हद तक सफलता भी मिली है। धीमे धीमे बड़ी कम्पनियों ने अपना निर्माण केंद्र भारत को बनाना चालू कर दिया है, ऐसे में आने वाले समय में भारत को युवा श्रम की आवश्यकता होगी।
पूर्व की सरकारों द्वारा जनसंख्या नियन्त्रण को लेकर निर्णय ना लिए जाने के पीछे यह तर्क दिया जा सकता है कि भारत चीन की तरह कम्युनिस्ट तानाशाही नहीं है जहाँ कोई भी निर्णय लागू कर दिया जाए। ऐसे में सरकारें ऐसे क़दमों से बचती रही हों। भारत में एक बड़े वर्ग में जनसंख्या नियन्त्रण को संदेह की दृष्टि से देखा जाता रहा है।
भारत की औसत आयु वर्तमान में लगभग 28 वर्ष है। चीन की भी निर्माण क्षेत्र में सफलता के पीछे उसकी कम आयु की आबादी का होना था। अब यह मौका भारत के पास है।
चीन में आयु बढ़ने के साथ ही धीमे-धीमे श्रम की लागत और कार्य करने वाली शक्ति दोनों घट रही हैं। भारत अगर आज ऐसा कोई कदम उठाता है जिससे आगे जनसंख्या वृद्धि दर अत्यंत धीमी हो जाए तो उससे भारत को ही नुकसान होगा।
जनसंख्या पर हो रही बहस में इस बात पर जोर दिए जाने की आवश्यकता है कि अब हमारे पास जो जनसांख्यिकी है उसका कितना अधिक से अधिक उपयोग देश को आगे बढ़ाने में किया जाए।
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