“In today’s world it’s not the side of the bigger army that wins, it’s the country that tells a better story that prevails. And india is, and must remain, in my view, the land of the better story”
अर्थात, “वर्तमान में किस देश के पास कितनी सैन्य शक्ति है ये मायने नहीं रखता बल्कि, मायने तो ये रखता है कि कौन सा देश प्रभावी तरीके से अपनी कहानी कह सकता है और भारत, मेरी नजर में, बेहतरीन कहानी कहने की भूमि है और इसे इसी तरह बने रहना चाहिए”
ये शब्द शशि थरूर के हैं जो उन्होंने आज से करीब 13 वर्ष पूर्व 2009 में एक टेड टॉक (TED TALK) में बात करते हुए कहे थे। पूरे आख्यान में उन्होंने स्थानीय मुद्दों से लेकर सिनेमा जगत को ‘सॉफ्ट पावर (Soft Power)’ का हिस्सा बताया था। तब उनके आख्यान को सुनकर यह समझना आसान लगता था कि कैसे दुनिया के सामने एक टीवी सीरियल से लेकर ‘इस्त्रीवाले’ तक देश की छवि का निर्माण करते हैं।
बहरहाल, हमने बीते कुछ वर्षों में सॉफ्ट पावर का जिक्र सुना। मात्र शशि थरूर से ही नहीं बल्कि विशेषज्ञों और बुद्धिजीवियों ने समय-समय पर इसका उल्लेख किया कि कैसे ‘हार्ड पावर’ और ‘सॉफ्ट पावर’ किसी देश की छवि को प्रभावित कर सकते हैं। 13 वर्ष पहले शशि थरूर ने भले ही सॉफ्ट पावर की बात की लेकिन इस शब्द का प्रयोग करने वाले वे पहले व्यक्ति नहीं थे।
सॉफ्ट पावर ‘टर्म’ का प्रयोग सबसे पहले अमेरिका में जन्मे राजनीति वैज्ञानिक जोसेफ नी (Joseph nye) ने वर्ष 1980 में किया था। इसके बाद, वर्ष 1990 में जोसेफ नी की एक पुस्तक आई थी, ‘बाउंड टू लीड द चेंजिंग नेचर ऑफ अमेरिकन पावर’। इस पुस्तक में सॉफ्ट पावर का उल्लेख किया गया था। इसमें जो परिभाषा और संदर्भ दिए गए वे चर्चित हुए और सॉफ्ट पावर कूटनीति के लिए एक महत्वपूर्ण शब्द के रूप में प्रचलित हो गया। यहाँ तक की जोसेफ नी ने वर्ष 2004 में ‘सॉफ्ट पावर’ नाम से ही इस विषय पर एक विस्तृत किताब भी लिखी।
जोसेफ नी ने सॉफ्ट पावर को इस तरह परिभाषित किया है, “Soft power is getting others to want the outcomes you want by co-opting people rather than coercing them”, अर्थात, जो परिणाम आप चाहते हैं, वही और लोग भी चाहें इसके लिए दबाव नहीं बल्कि समन्वय और सह चयन की नीति अपनाना ही सॉफ्ट पावर है।
यदि हम पावर यानी शक्ति या ताकत की परिभाषा पर ध्यान दें तो वो कहती है कि शक्ति, दूसरों को प्रभावित करने की क्षमता है ताकी आप इच्छित परिणामों की प्राप्ति कर सकें। इस परिभाषा में सभी प्रकार की शक्ति निहित हैं, या यूं कहें कि हॉर्ड पावर (सैन्य बल, परमाणु शक्ति, आर्थिक प्रतिबंध, आक्रमक निर्णय) भी इसमें शामिल है। हालाँकि, इसी शक्ति की परिभाषा में से आक्रमकता को निकालकर रणनीति और संयोजन का मेल कर दिया जाए तो सॉफ्ट पावर की ताकत सामने आती है, जो वर्तमान वैश्विक परिस्थितियों में अधिक व्यावहारिक प्रतीत होती है।
एक देश के परिप्रेक्ष्य में सॉफ्ट पावर का सीधा अर्थ देखें तो वह है; दुनिया में उस देश की क्या छवि है, क्या विश्वसनीयता है और उस छवि के आधार पर लोग आपको कितना भरोसेमंद मानते हैं। सॉफ्ट पावर का निर्माण और प्रचार किसी भी देश की आर्थिक और राजनीतिक साख बढ़ाने वाले होता है। जोसेफ नी के अनुसार, वर्तमान तकनीकी दौर में किसी भी देश की विश्वसनीयता ही उसका सर्वश्रेष्ठ हथियार है। इसलिए जोसेफ नी ने मौटे तौर पर सॉफ्ट पावर के तीन आयाम निर्धारित किए हैं- देश के राजनीतिक मूल्य, विदेश नीति एवं संस्कृति।
इसलिए जब भारत के प्रधानमंत्री वैश्विक मंच पर ‘यह युद्ध का समय नहीं है’ कहते हैं तो वैश्विक सराहना उन्हें मिलती है। दुनिया भर की रैंकिंग प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को वैश्विक नेताओं में सर्वोच्च स्थान देती है तो इससे भारत की राजनीतिक शक्ति की वैश्विक मंचों पर स्वीकार्यता बढ़ती है। विदेश मंत्री एस जयशंकर जब कूटनीति के लिए हिंदू ग्रंथ महाभारत और रामायण का संदर्भ देते हैं तो वे देश की सॉफ्ट पावर को दुनिया के सामने रख रहे होते हैं। ठीक इसी तरह देश का सिनेमा और टीवी ड्रामा भी इसमें बड़ा योगदान देते हैं। हालाँकि, भारत में इनकी क्या स्थिति है इसे जानने से पहले हम देख लेते हैं कि दुनियाभर में सॉफ्ट पावर का क्या प्रभाव है।
इसका सबसे पहला उदाहरण संयुक्त राज्य अमेरिका है। दुनिया का सबसे पुराना लोकतंत्र। आदर्श जीवन यापन की सुविधाएं, अच्छी शिक्षा, घूमने के लिए रोमांचक जगह और हॉलीवुड। ये संदर्भ हैं, जो अमेरिका का नाम आते ही हमारी सोच और जेहन में आते हैं। यहाँ की राजनीतिक व्यवस्था हो या विश्वविद्यालय, सिनेमा हो या प्रशासनिक मॉडल, सब अमेरिका के सॉफ्ट पावर की पहचान है।
यह अचानक कहीं से नहीं आए। इनका वर्षों से योजनागत तरीके से निर्माण किया गया है। अमेरिका को दिखाया गया है कि अगर आपको घूमना है तो बीच से लेकर बर्फ तक, सारे सुंदर नजारे इसी देश में हैं। यहाँ की शिक्षा का बेहतरीन स्तर का प्रसार किया गया है जो दुनियाभर से युवाओं को अमेरिका जाने के लिए आकर्षित करता है।
अमेरीकी सिनेमा, अर्थात हॉलीवुड, अमेरिका का सबसे बड़ी सॉफ्ट पावर है जो हमें बार-बार बताता रहा है कि जब भी एलियन का हमला होगा पृथ्वी को बचाने की जिम्मेदारी अमेरिकी हीरो पर आन पड़ेगी क्योंकि पृथ्वी की रक्षा के लिए आवश्यक तत्व किसी और देश के पास नहीं हैं। हॉलीवुड की फिल्मों में विलेन अधिकतर रूस और ईरान जैसे देशों से होता है। यह दिखाता है कि कोल्ड वॉर भले ही ख़त्म हो गया हो पर उसकी कुछ चीजें अभी भी दिखाई जा सकती हैं और देखनेवाला उसपर प्रश्न नहीं उठाएगा। यह इसलिए है क्योंकि हॉलीवुड का प्रभाव दुनिया के बड़े हिस्से पर है। इस स्तर तक कि पूरी दुनिया का युवा नेटफ्लिक्स और अन्य साइट्स के जरिए उनका कंटेंट देख रहा है।
पर भारतीय सिनेमा से क्या आप ऐसी किसी छवि की उम्मीद कर सकते हैं? यहाँ तो एलियन्स के साथ हीरो रोमांटिक गाने पर नाचते नजर आता है। रोबोट शादी करना चाहता है और दुश्मन देश की बच्ची के साथ भारत में अत्याचार होता है। इन सबसे भारत की क्या छवि क्या बनती है?
जर्मनी का उदाहरण लें तो वो सॉफ्ट पावर के मामले में दुनिया में महत्वपूर्ण स्थान रखता है। जर्मन तकनीक और जर्मन इंजीनियरिंग से बने उत्पाद की विश्वसनीयता जाहिर है चीन के उत्पादों से अधिक होगी। जर्मनी तकनीक और इंजीनियरिंग के मामले में सॉफ्ट पावर रखता है। यहाँ पर बने उत्पादों की दुनिया में विशेष छवि रहती है। इसका फायदा किसको मिलता है? जाहिर है जर्मनी को ही मिलेगा। जर्मनी जब विदेशी बाजार में ‘मेड विद जर्मन इंजीनियरिंग’ का ठप्पा लगा के उत्पाद उतारता है तो उसके बिकने की संभावनाएं अपने आप बढ़ जाती हैं।
हालाँकि, अगर आँकड़ों पर नजर डालें तो भारत की तकनीक के मामले में उतनी खस्ता हालत नहीं है लेकिन दुनिया में हम इसका प्रचार करने में नाकाम रहे हैं। दुनिया में ही क्यों, अगर कोई पूछे कि ‘मेड इन इंडिया’ का कौनसा मोबाइल फोन आपको सबसे ज्यादा पंसद है तो शायद ही आप किसी का नाम ले पाएं।
हाल के ही वर्षों में आप देखें तो एशियाई देश भी सॉफ्ट पावर के मामले में आगे आए हैं। इनमें जापान, कोरिया चीन और भारत का नाम हम सबसे आगे ले सकते हैं। जापान भी जर्मनी की तरह ही अपनी तकनीक को सॉफ्ट पावर के तौर पर इस्तेमाल करता है और एनीमेशन (Animation), जापानी व्यंजन का जिस तरह का प्रभाव सोशल मीडिया पर दिखा है वो भी सॉफ्ट पावर का ही हिस्सा है और जापान इसे बेहतरीन तरीके से प्रयोग भी करता है। चाहे आप ओलंपिक ले लें या कोई और कार्यक्रम उनमें शुभंकर (mascot) एनीमेटेड किरदार ही होते हैं।
बीटीएस आर्मी (BTS army) की लोकप्रियता सबने हाल में देखी होगी। भारत में भी इसका क्रेज है। ये किसी देश की सेना नहीं बल्कि साउथ कोरिया का एक म्यूजिक बैंड है। के-पॉप और कोरिया टीवी ड्रामा हाल के दिनों में युवाओं में सबसे ज्यादा प्रचलित है। भारत में भी देखें तो अधिकतर युवा वर्ग कोरियन कलाकारों से प्रभावित नजर आते हैं। नेटफ्लिक्स हो या बाजार देश में कोरियन उत्पादों की मांग में लॉकडाउन के बाद से बढ़ी है। ये प्रभाव ही साउथ कोरिया का सॉफ्ट पावर दर्शाते हैं।
सॉफ्ट पावर को लेकर ब्रैंड फाइनेंस नामक संस्था द्वारा हर वर्ष ‘ग्लोबल सॉफ्ट पावर इंडेक्स’ जारी किया जाता है जिसमें दुनिया भर के देशों की रैंकिंग दर्शायी जाती है। अब इस इंडेक्स की वर्ष 2020 की सूची पर नजर डालें तो इसमें संयुक्त राज्य अमेरिका पहले स्थान पर है। दूसरे, तीसरे और चौथे स्थान पर क्रमशः जर्मनी, यूनाइटेड किंगडम और जापान है। इस सूची में चीन 5वें तो भारत 27वें स्थान पर है।
ग्लोबल सॉफ्ट पावर इंडेक्स, 2021 की रैंकिंग को देखें तो भारत और अमेरिका, दोनों को इस वर्ष नकारात्मक छवि का सामना करना पड़ा। क्यों करना पड़ा उसका उल्लेख आगे करेंगे। फिलहाल रैंकिंग की बात करें तो पहले स्थान पर जर्मनी काबिज है वहीं दूसरे, तीसरे और चौथे पर इसी क्रम में जापान, यूनाईटेड किंगडम और कनाडा है। अमेरिका को इसमें 6 वाँ स्थान मिला है तो भारत को 36 वाँ। चीन इसमें भी टॉप-10 में 8वें नंबर पर शामिल है।
अब इसी इंडेक्स का 2022 का संस्करण देखें तो देशों के स्थिति में बदलाव होते हुए अमेरिका एक बार फिर पहले स्थान पर आ गया है। दूसरे स्थान पर यूनाईटेड किंगडम, तीसरे पर जर्मनी, चौथे पर चीन और पांचवें स्थान पर जापान है। भारत की रैंकिंग भी इस वर्ष सुधार के साथ 29वें स्थापर पहुंच गई है।
इन श्रेणियों में किस प्रकार बदलाव होता है, यह इस बात पर निर्भर करता है कि उक्त वर्ष उस देश में किस तरह की सकारात्मक या नकारात्मक घटनाएं सामने आई। कोई भी देश मात्र कुछ वर्षों की विरासत के साथ ही सॉफ्ट पावर नहीं बन सकता। इसके लिए समय-समय पर देश के राजनीतिक मूल्यों में सुधार करना होता है। विदेश नीति के प्रभावी क्रियान्वयन से इसे बरकरार रखना होता है।
उदाहरण के लिए ग्लोबल सॉफ्ट पावर इंडेक्स, 2021 में भारत और अमेरिका दोनों की रैंकिंग को नुकसान पहुँचा क्योंकि इस वर्ष अमेरिका में कैपिटल हिल में दंगे हुए। राष्ट्रपति चुनाव में हुए विवाद और महामारी के फैलाव के दौरान बिगड़ी व्यवस्था ने इस विकसित राष्ट्र की सॉफ्ट पावर को नुकसान पहुँचाया है। वहीं भारत ने इस वर्ष सीएए, किसान आंदोलन सहित कई विरोध प्रदर्शनों का सामना किया जिससे विश्व में देश की छवि को नुकसान पहुँचा।
हालाँकि, कोरोना के दौरान जिस तरह भारत ने दुनिया की मदद की है और देश में महामारी की स्थिति को संभाला है, उसने अवश्य ही देश को एक सॉफ्ट पावर के रूप में स्थापित किया है। बीते समय की राजनीतिक घटनाओं में देश की विदेश नीति का लोहा पड़ोसी देशों ने भी माना है। रूस-युक्रेन युद्ध हो या अफगानिस्तान में तालिबान आक्रमण के बाद देशवासियों को बाहर निकालना, देश ने बेहतरीन कार्यप्रणाली से बेशक ही वैश्विक मंचों पर अपनी साख बढ़ाई है।
हमारे देश की विरासत ही इसकी सॉफ्ट पावर है और इसको हम योग के जरिए भी देख चुके हैं। भारत द्वारा प्रस्तावित होने के बाद दुनिया द्वारा अंतरराष्ट्रीय योग दिवस मनाया जाना देश की सॉफ्ट पावर को वैश्विक स्तर पर स्थापित करने का सबसे प्रभावशाली कदम रहा है। योग शिक्षा का प्रचार प्रसार करने में देश ने भले ही देर की हो पर आज योग की शिक्षा दुनिया भर के विश्वविद्यालयों में पढ़ाया जाना भारत के सॉफ्ट पावर को दिखाता है।
इसी तरह भारतीय आयुर्वेद चिकित्सा को भी सरकार द्वारा बढ़ावा दिया जा रहा है। ये देश की सॉफ्ट पावर स्थापित करने में मदद करेगा। जापान का उदाहरण लें तो वहाँ की एक पुस्तक ‘इकागई (Ikigai)’ काफी प्रचलित है जिसमें जापानी जीवनयापन के तरीकों को समझाया गया है। अब सोचें की ये पुस्तक सिर्फ इसलिए पढ़ी जाती है क्योंकि लोग जापान के रहन-सहन से प्रभावित है, वो उनकी तरह जीवन यापन करना चाहते हैं। ये है जापान की सॉफ्ट पावर।
ये भारत की क्यों नहीं हो सकती? यहाँ हजारों वर्ष पुरानी संस्कृति है, जिसमें आदर्श जीवन यापन के तौर-तरीके बताए गए हैं। हमारे ग्रंथ, मंदिर, विरासत यहाँ तक की स्वामी विवेकानंद से लेकर महात्मा गाँधी देश की सॉफ्ट पावर है। जब पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा अपने कार्यकाल के दौरान भारत दौरे पर आए थे तब उन्होंने अपने भाषण की शुरुआत स्वामी विवेकानंद के उदाहरण और प्रेरणा से ‘मेरे भारतीय बहनों और भाइयों’ कहकर की थी। ये भारत की सॉफ्ट पावर का उदाहरण है।
अब आते हैं भारतीय सिनेमा पर। इसमें पावर तो है लेकिन दिशाहीन है। एक समय था जब भारतीय फिल्में रूस, जापान और मिडल ईस्ट में अपना जबरदस्त प्रभाव रखती थी। रूस में तो राज कपूर की फिल्में बेहद प्रचलित थी। शाहरुख खान को भी एक समय दुबई ने अपना ब्रांड एंबेसडर बनाया था। अगर शशि थरूर की ही टेड टॉक से जानकारी लें तो अफगानिस्तान में टीवी सीरियल ‘क्योंकि सास भी कभी बहु थी’ इतना प्रचलित था कि रात 8.30 बजे इसके प्रसारण के समय देश में विवाह से लेकर बड़े से बड़े कार्यक्रम रद्द हो जाया करते थे।
भारतीय सिनेमा भले ही बड़ी संख्या में लोगों तक अपनी पहुँच रखता हो लेकिन ये प्रभाव कायम करने में नाकाम रहा है जो इसे सॉफ्ट पावर के रूप में स्थापित कर सके और अगर बना भी है तो देश का सही पक्ष दुनिया के सामने रखने में सफल नहीं रहा है। बेवजह अंतरंग दृश्य, नैरेटिव आधारित कहानियां और राजनीतिकरण के चलते सिनेमा मनोरंजन का साधन कम प्रोपेगेंडा का हथियार अधिक बन गया है।
आज आप उम्मीद कर सकते हैं कि जैसे हॉलीवुड अमेरिका की छवि को दुनिया के सामने पेश करता है वैसे बॉलीवुड कभी भी कर पाएगा? हाल ही में देश में चल रहे विवाद के बीच बॉलीवुड अभिनेत्री दीपिका पादुकोण द्वारा फीफा वर्ल्ड कप की ट्रॉफी का अनावरण किया गया तो सोशल मीडिया पर उनके सॉफ्ट पावर होने की बात चली।
बेशक, देश अपने कलाकार को अंतरराष्ट्रीय मंच मिलने पर गौरवान्वित महसूस करता है लेकिन इसका दूसरा पहलू देखिए कि जब विश्व में पहचान बनाने वाले इन कलाकारों की फिल्में अंतरराष्ट्रीय वर्ग देखेगा तो भारत की छवि का किस प्रकार का अनुमान लगाएगा? वो सकारात्मक होगा या नकारात्मक?
दीपिका पादुकोण के नाजुक कंधों पर ही अकेले ये जिम्मेदारी नहीं है बल्कि, बॉलीवुड और देश में स्थिति कई सिनेमा इंडस्ट्री की है। क्या के-पॉप या जापान की एनीमेशन की तरह ये वैश्विक मंच पर जगह बना पाएंगे, वो भी देश की सॉफ्ट पावर के सही इस्तेमाल के साथ? बहरहाल, किसी भी देश की सॉफ्ट पावर उसकी सभ्यता, संस्कृति, ड्रामा, राजनीतिक, व्यंजन, कला, संगीत और भाषा से जुड़ी होती है और भारत में इन सब की कोई कमी नहीं इसमें कोई दो राय नहीं है।
साल 2019 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने एक बयान में भारतीय फ़िल्म उद्योग की और सॉफ्ट पावर की बात करते हुए कहा था कि भारतीय फ़िल्मों का सॉफ्ट पावर की शक्ति में अहम योगदान है। उन्होंने कहा था कि यह दुनिया को अपनी ओर आकर्षित करती है और भारत की ब्रांडिंग का काम करती है।
किसी देश के लिए सॉफ्ट पावर बनना सिर्फ वैश्विक मंचों पर अपनी छवि पर पॉलिश लगाना नहीं है बल्कि इसके लिए जमीनी स्तर पर कार्य करने की जरूरत रहती है। देश में गरीबी, गंदगी और सॉफ्ट पावर साथ-साथ नहीं रह सकते। इसलिए देश में स्वच्छता मिशन और आवास योजनाओं के बाद जो फायदा पहुँचा है वो सॉफ्ट पावर इंडेक्स में साफ नजर आता है।
अब वापस आते हैं शशि थरूर द्वारा दिए आख्यान पर कि; “विविधताओं से भरे लोकतंत्र में सबके बीच सर्वसम्मति के लिए छोटा सा नियम ये है कि -आपको हर समय सभी बातों पर सहमत होने की आवश्यकता नहीं, जब तक आप इस बारे में जमीनी नियमों पर सहमत होते हैं कि आप कैसे असहमत होंगे…भारत की आज भी सफलता का ये कारण है कि इतने विचारक, पत्रकार, बुद्धिजीवी होने के बाद भी इस बात पर सर्वसम्मति बनाने में सफल रहा है कि कैसे सर्वसम्मति के बिना ही आगे बढ़ा जाए।”