बीते कल 57 मुस्लिम देशों के संगठन OIC यानी ऑर्गेनाइजेशन ऑफ इस्लामिक कोऑपरेशन ने बयान जारी कर कहा है कि भारत में रामनवमी की शोभायात्रा के दौरान मुसलमानों को निशाना बनाया जाना चिंताजनक है। OIC ने हमेशा की तरह भारत पर अपना एजेण्डा थोपते हुए अजीजिया मदरसे में लगी आग को आधार बनाते हुए इस्लामोफोबिया का जमकर रोना रोया।
यह पहली बार नहीं है जब OIC ने इस तरह का बयान जारी किया है। इससे पहले भी यह ऑर्गनाइजेशन भारत के कश्मीर, कर्नाटक में हिजाब बैन, हरिद्वार में धर्म संसद, नागरिकता संशोधन कानून और ऐसे कई अन्य आंतरिक मामलों पर टिप्पणी करता आया है।
हर बार की तरह इस बार भी विदेश मंत्रालय ने OIC को आईना दिखाने का काम किया। मंत्रालय ने जारी किए गए अपने बयान में कहा है कि OIC की यह टिप्पणी सांप्रदायिक मानसिकता और भारत विरोधी एजेंडे का एक और उदाहरण है। OIC भारत विरोधी ताकतों के एजेण्डे पर चलकर अपनी प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचाता रहता है।
सवाल यह है कि OIC हर बार इस तरह के बयान कैसे जारी कर देता है? वह भी तब जब स्थानीय स्तर पर स्थिति उसके बयानों के विपरीत होती है?
इसका जवाब है भारत के सेकुलर वर्ग के वे बुद्धिजीवी, ऐक्टिविस्ट, पत्रकार लॉबी जिनकी पीढ़ियां भारत की छवि एक इस्लामोफोबिक राष्ट्र और अल्पसंख्यकों को पीड़ित दिखाने में घिस गई।
पत्रकार मीर फैजल को ही ले लें। उनके प्री-प्लांड फोटोशूट के कारण ही अजीजिया मदरसे की बात देश की मीडिया से लेकर विदेशों की मीडिया तक पहुँची और अभी भी पहुंचाने की कोशिश की जा रही है। भारत के मीडिया ने इसे थोड़ा और ग्लोरीफाई किया कि 110 वर्ष पुराना मदरसा जलाया गया। जहां हजारों किताबें जमा थी।
राना अयूब ने तो पुलिस जांच से पहले ही बता दिया कि 1,000 लोगों की सशस्त्र भीड़ ने पेट्रोल बम फेंके।
ट्विटर पर टूलकिट के अनुसार हैशटैग चलाए गए। कुछ पीएचडी धारकों ने बख्तियार खिलजी का बचाव करते हुए इसे नालंदा विश्वविद्यालय का बदला बता दिया। ना केवल बख्तियार खिलजी का बचाव किया गया बल्कि नालंदा विश्वविद्यालय को जलाए जाने की बात को ही नकार दिया गया।
पढ़े-लिखे इन जाहिलों की बात का एक जवाब यह भी हो सकता है कि उस समय मीर फैजल जैसा कोई एजेण्डाधारी पत्रकार नहीं था वरना वो फोटोशूट तो जरूर करवा लेता।
नेतागणों की बात करें तो वे एक कदम आगे बढ़े और यह बताने में लग गए कि मरता क्या न करता। जान बचाने के लिए मुस्लिम बच्चों को ये करना पड़ा है। वे अपनी सुरक्षा में बम बना रहे थे।
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एजेण्डाधारियों का यह वर्ग नहीं बताएगा कि बिहारशरीफ में ही हिन्दुओं की दुकानों के गोदाम जिसकी कीमत करोड़ों रुपए थी उसे कैसे एक मुस्लिम भीड़ ने आग के हवाले कर दिया। यह नहीं दिखाया गया कि कैसे उमेश प्रसाद गोस्वामी की 10 दुकानों को क्षतिग्रस्त किया गया और मध्ययुगीन मुस्लिम आक्रांताओं की नक़ल करके सामान लूट लिया गया। कोई यह नहीं बताएगा कि मुस्लिमों की उस भीड़ में से उठकर एक व्यक्ति ने गुलशन कुमार को गोली मार दी। एजेण्डाधारियों ने यह नहीं बताया कि 500 हिन्दू लापता कैसे हो गए या यह कि जब हिन्दू अपनी जान बचाने के लिए थाने जाता है तो पुलिस उन्हें भगा देती है। एजेण्डाधारियों ने 8 साल के उस बच्चे के बारे में नहीं बताया जो पुलिस पर पत्थर मार रहा था। इस पर यह वर्ग चुप्पी साध लेता है कि आखिर पत्थरबाजी करने वाला यह बच्चा कौन है? जब इस तरह के सवाल पूछे जाएं तो यह वर्ग एकाएक असहज होने लगता है, विक्टिम कार्ड खेलने लगता है और आप पर, हम पर, इस्लामोफोबिक का ठप्पा लगाने का प्रयास किया जाता है।
OIC को समझना चाहिए कि यह भारतीय हिंदुओं की संस्कृति का असर है कि समय-समय पर जिस भारत को इस्लामोफोबिक बताने का कुत्सित प्रयास किया जाता है, वह भारत मुस्लिम आबादी के लिहाज से शीर्ष तीन देशों में है।
समय को देखते हुए OIC का यह बयान आश्चर्यचकित भी नहीं करता। देश में राजनीतिक घटनाक्रम तेज़ी से बदल रहे हैं और इस समय देशी राजनीति में केवल डोमेस्टिक प्लेयर्स ही नहीं खेल रहे हैं। विदेशी प्लेयर्स भी खेल रहे हैं और कई टूलकिट एक साथ एक्टिवेट कर दी गई हैं। अमेरिका या जर्मनी का भारत में राजनीतिक घटनाओं पर नजर रखने की घोषणा हो या भारतीय विपक्ष के प्रमुख नेता द्वारा भारतीय राजनीति में वैश्विक शक्तियों से हस्तक्षेप करने का आह्वान, किसी भी घटना को आइसोलेशन में नहीं देखा जा सकता। ऐसे में OIC के इस वक्तव्य को पहले से घट रही इन्हीं घटनाओं का विस्तार माना जाएगा।
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