भारत ने 6 जुलाई को नीदरलैंड के हेग आर्बिट्रेशन कोर्ट द्वारा सिन्धु जल समझौते पर दिए गए निर्णय को नकार दिया है। भारत ने कहा है कि उसकी जानकारी में आया है कि हेग में असंवैधानिक रूप से स्थापित किए गए इस कथित न्यायालय ने निर्णय दिया है कि वह सिन्धु जल समझौते के तहत आने वाली नदियों पर बनने वाली पनबिजली परियोजनाओं-रतले और किशनगंगा से जुड़े मामले पर सुनवाई कर सकता है।
भारत ने कहा है कि ऐसे किसी भी कथित कोर्ट का गठन सिन्धु जल समझौते के नियमों के विरुद्ध है। एक निष्पक्ष विशेषज्ञ पहले से ही इस मामले को देख रहा है। भारत ने वर्ष 19६० में विश्व बैंक की मध्यस्थता से हुए सिन्धु जल समझौते के नियमों का हवाला देते हुए स्पष्ट किया कि निष्पक्ष विशेषज्ञ द्वारा मामले को देखा जाना ही नियमों के अंतर्गत है।
गौरतलब है कि पाकिस्तान ने हेग स्थित परमानेंट कोर्ट ऑफ़ आर्बिट्रेशन में जम्मू-कश्मीर में बन रही पनबिजली परियोजनाओं-रतले और किशनगंगा को लेकर याचिका लगाई थी। भारत ने इस पर एहतराज जताते हुए कहा था कि यह कोर्ट इस मामले को सुनने के लिए उपयुक्त संस्था नहीं है और इसको लेकर भारत ने कोर्ट में अपना पक्ष रखा था।
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गौरतलब है कि यह न्यायालय वर्ष 1899 में राज्यों और संस्थाओं के बीच के आपसी विवादों को निपटाने के लिए स्थापित किया गया था। यह एक स्वतंत्र न्यायालय है और इसका संयुक्त राष्ट्र अथवा बहुदेशीय संस्थाओं से कोई सम्बन्ध नहीं है। ऐसे में भारत ने इस संस्था का अनिर्णय मानने से मना कर दिया है।
न्यायालय ने अपने निर्णय में कहा, “हमारे द्वारा दिया गया निर्णय दोनों पक्षों पर लागू होता है और इसके विरुद्ध अपील नहीं की जा सकती है। हम भारत द्वारा उठाए गए प्रश्नों को खारिज करते हुए यह निर्णय देते हैं कि यह कोर्ट पाकिस्तान द्वारा दाखिल किए गए मामले को सुनने की क्षमता रखती है।” हालाँकि, भारत ने इस निर्णय को एकतरफा बताया है।
पाकिस्तान इन दोनों मामलों को वर्ष 2016 में इस न्यायालय में लेकर गया था। पाकिस्तान, भारत द्वारा नियमों का ध्यान रखते हुए भी बनाई जाने वाली परियोजनाओं पर प्रश्न उठाता रहा है और जम्मू-कश्मीर के विकास में बाधक बना हुआ है। इसी कड़ी में पाकिस्तान ने वर्ष 20०६ में झेलम नदी पर बनाई जाने वाली किशनगंगा परियोजना और 2012 में चेनाब नदी पर बनने वाली रतले परियोजना को लेकर प्रश्न उठाए थे। इन मामलों को सिन्धु जल समझौते के तहत बनाए गए आयोग के समक्ष भी रखा था।
भारत ने कहा है कि इस मामले में निष्पक्ष विशेषज्ञ की पिछली बैठक हेग में फरवरी 2023 में हुई थी और आगे अब इसके सितम्बर माह में होने की आशा है। भारत ने यह भी कहा है कि वह ऐसी किसी भी असंवैधानिक कार्यवाही में भाग नहीं लेगा जो एकतरफा हैं और सिन्धु जल समझौते के नियमों के तहत नहीं आती।
भारत ने इसी सम्बन्ध में फरवरी माह में पाकिस्तान को सूचित करके कहा था कि अब समझौते की शर्तों को बदले जाने की आवश्यकता है।
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