ग्रिड-स्केल बैटरी स्टोरेज की स्थापना को प्रोत्साहित करने के लिए भारत सरकार ₹15,000 करोड़ तक की प्रोडक्शन लिंक्ड इंसेंटिव (PLI) योजना पर काम कर रही है। अगले एक महीने के भीतर ही इस योजना को अमल में लाया जा सकता है। इसके लिए 10,000-15,000 करोड़ रुपए का बजट रखे जाने की आशा है। इस योजना के पीछे का मुख्य उद्देश्य यह है कि देश की ग्रिड व्यवस्था को मजबूत किया जाए ताकि बिजली का आवंटन आसानी से हो सके और बिजली को स्टोर किया जा सके।
पीएलआई योजना एडवांस्ड केमिकल सेल (ACC) के लिए चल रही योजना के साथ ओवरलैप नहीं होगी, जो ई-मोबिलिटी में बड़े पैमाने पर उपयोग की जाती है। यह पहल इलेक्ट्रिक वाहनों के उपयोग को बढ़ावा देने और फॉसिल फ्यूल पर देश की निर्भरता को कम करने के सरकार के बड़े लक्ष्य का हिस्सा है। इसमें बड़े निवेश से रोजगार के अवसर पैदा होने और देश की अर्थव्यवस्था को बढ़ावा मिलने की उम्मीद है।
भारत दुनिया में जीवाश्म ईंधन के सबसे बड़े उपभोक्ताओं में से एक है और देश का परिवहन क्षेत्र ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में एक प्रमुख योगदानकर्ता है। सरकार ने वर्ष 2030 तक कुल वाहनों का 30% इलेक्ट्रिक वाहन हों, इसका लक्ष्य रखा है, जिसके लिए बैटरी के उत्पादन में बड़े निवेश की आवश्यकता होगी। वर्तमान में, भारत अपनी अधिकांश बैटरी चीन, जापान और दक्षिण कोरिया से आयात करता है।
भारतीय शोधकर्ता लिथियम के आयात पर निर्भरता कम करने के लिए बैटरी स्टोरेज के लिए कई नए तरीके खोज रहे हैं। चीन, वर्तमान में दुनिया के अधिकांश लिथियम को रिफाइन करता है।
भारत का लक्ष्य है कि 2030 तक वह 500 गीगावाट (GW) तक की रिन्यूएबल एनर्जी की क्षमता हासिल करे। इसके लिए, बिजली ग्रिड को स्थिर रखने और ऊर्जा की आपूर्ति को सुनिश्चित करने के लिए बिजली के स्टोरेज सिस्टम का महत्व हो गया है।
चूंकि, रिन्यूएबल एनर्जी स्रोतों से स्थिरता से हर समय बिजली मिलना मुश्किल होता है ऐसे में बैटरी स्टोरेज कैपसिटी बनाकर ऐसी समस्याओं से निपटा जा सकता है। इसके माध्यम से, अक्षय ऊर्जा को ग्रिड में स्टोर किया जा सकता है और इसके द्वारा बढ़ी हुई मांग के समय बिजली की आपूर्ति सुनिश्चित की जा सकती है।
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जैसे-जैसे अक्षय ऊर्जा क्षेत्र का विस्तार होता है, प्रभावी एनर्जी स्टोरेज आवश्यकता तेजी से महत्वपूर्ण होती जाती है। ग्रिड-स्केल बैटरी स्टोरेज सिस्टम अतिरिक्त रिन्यूएबल एनर्जी को को स्टोर करके ग्रिड को स्थिर करने का एक साधन प्रदान करते हैं और ऊर्जा की कमी के समय पर बढ़ी हुई मांग अवधि के दौरान इसे जारी करते हैं।
अभी इस योजना से संबंधित इनपुट प्राप्त करने, ड्राफ्ट करने और कैबिनेट की मंजूरी लेने में समय लगेगा। आशा है कि यह अगले वर्ष तक जारी हो जाएगी।
भारत लिथियम के आयात पर अपनी निर्भरता कम करने के लिए वैकल्पिक बैटरी केमिस्ट्री की भी खोज कर रहा है, जो मुख्य रूप से चीन में संसाधित होती हैं। देश के भीतर ऊर्जा स्टोरेज सिस्टम की विनिर्माण क्षमता को बढ़ाना सरकार की प्राथमिकता है।
ऊर्जा स्टोरेज क्षेत्र को मजबूत करने के लिए कई नीतिगत निर्णय लागू किए गए हैं। बैटरी ऊर्जा स्टोरेज सिस्टम की खरीद और उपयोग के लिए दिशानिर्देश जारी किए गए हैं, उन्हें सहायक सेवाओं के साथ उत्पादन, ट्रांसमिशन और डिस्ट्रीब्यूशन प्रॉपर्टीज में इंटीग्रेटेड किया गया है। केंद्र सरकार के लगातार प्रयासों के कारण यह बढ़ रहा है और मार्च 2023 तक देश में ऊर्जा स्टोरेज का यह स्तर 30 MWh के ऊपर पहुँच गया था।
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने केंद्रीय बजट 2023-24 में यह घोषणा की है कि ऐसी योजनाओं को पर्याप्त धन दिया जाएगा। इसके लिए, 4,000 मेगावाट घंटे (MWh) क्षमता वाले बैटरी ऊर्जा संचय तंत्र (BESS) को वायेबिलिटी गैप फंडिंग (VGF) के साथ जोड़ा जाएगा। इसका मुख्य उद्देश्य अर्थव्यवस्था को सतत विकास पथ पर आगे बढ़ाना है। नवीनतम नीतिगत फैसलों ने ऊर्जा भंडारण क्षेत्र को मजबूत किया है।
बीईएसएस के खरीद और उपयोग के लिए निर्देश जारी किए गए हैं और डिस्कॉम कंपनियों को ऊर्जा भंडारण करने की जिम्मेदारी सौंपी गई है। राष्ट्रीय विद्युत योजना ने वित्त वर्ष 2022-27 के दौरान 8,680 मेगावॉट/34,720 मेगावॉट-घंटे और बाद के पांच वर्षों (FY28-32) के लिए 38,564 मेगावॉट/201,500 मेगावॉट-घंटे की आवश्यकता का अनुमान लगाया है। यह अनुमान बैटरी ऊर्जा भंडारण क्षमता में महत्वपूर्ण वृद्धि की आवश्यकताओं को दर्शाता है।
यह योजना भारत के रिन्यूएबल ऊर्जा लक्ष्यों के साथ मिलाकर बनाई हुई है और ग्रिड में रिन्यूएबल स्रोतों के इंटीग्रेशन को सहायता करेगी, ग्रिड स्थिरता सुनिश्चित करेगी और बढ़ी हुई मांग की अवधि के दौरान निरंतर बिजली आपूर्ति करेगी।
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