भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) द्वारा एक हालिया रिपोर्ट में बताया गया है कि भारत को वर्ष 2047 तक विकसित राष्ट्र बनने के लिए प्रति वर्ष 7.6% की जीडीपी वृद्धि दर हासिल करनी होगी। रिपोर्ट में बताया गया है कि देश में प्रति व्यक्ति आय को किस स्तर तक बढ़ाना होगा और कैसे हम यह उपलब्धि प्राप्त कर सकते हैं।
रिजर्व बैंक द्वारा जुलाई माह के लिए जारी किए बुलेटिन में हंरेंद्र बेहारा, वी धान्या, कुनाल प्रियदर्शी एवं सपना गोएल द्वारा ‘इंडिया@100’ शीर्षक से लिखे गए लेख में बताया गया है कि कैसे भारत अपनी स्वतंत्रता के 100 वर्ष पूरे होने पर विकसित देशों की श्रेणी में आ सकता है और कितने बदलाव हमें अपनी व्यवस्था में करने होंगे।
क्या कहता है लेख?
लेख के अनुसार, विश्व बैंक कहता है कि कोई भी राष्ट्र जहाँ प्रति व्यक्ति आय 13,२05 डॉलर/व्यक्ति (2022-23 में) हो, उन्हें उच्च आय वाला राष्ट्र कहा जाता है। इसके अतिरिक्त, अन्तरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) अर्थव्यवस्थाओं को एडवांस अर्थव्यवस्था और इमर्जिंग यानी बढ़ती हुई अर्थव्यवस्थाओं में बांटता है। भारत को एडवांस अर्थव्यवस्था बनने के लिए 18,247 डॉलर/व्यक्ति की आय का लक्ष्य हासिल करना होगा।
लेख विश्व बैंक की परिभाषा बताते हुए कहता है कि उच्च आय वाले राष्ट्रों में आना चाहते हैं तो हमें प्रति वर्ष 7.6% की जीडीपी वृद्धि दर हासिल करनी होगी जिससे हमारी प्रति व्यक्ति आय तब 21,664 डॉलर/व्यक्ति हो सके। वहीं अगर IMF के आँकड़ों के अनुसार हमें अपने आप को विकसित करना है तो यह विकास दर 9.1% होनी चाहिए। इससे हमारी प्रति व्यक्ति आय 30,351 डॉलर/व्यक्ति हो सकेगी।
क्या यह लक्ष्य पाया जा सकता है?
एक जैसी तेज अर्थव्यवस्था विकास वृद्धि दर लगातार 25 वर्षों तक प्राप्त करना कठिन कार्य है लेकिन पूर्व में कई देशों ने ऐसा किया है और निचली आय से उच्च आय की श्रेणी में पहुँचने में सफल रहे हैं। दक्षिण कोरिया वर्ष १९66 से १९90 के बीच 17.9 की रफ़्तार से बढ़ा था और उसकी प्रति व्यक्ति आय 1965 में 105 डॉलर/व्यक्ति से बढ़ कर 1990 में 6,610 डॉलर/व्यक्ति हो गई थी।
हालाँकि, भारत के सम्बन्ध में अभी तक हासिल की गई सबसे तेज वृद्धि दर वर्ष 1993-94 से 2017-18 के बीच 8.1% की वृद्धि दर है। अन्य राष्ट्रों द्वारा हासिल किए लक्ष्यों से यह कहा जा सकता है कि भारत भी यह गति हासिल कर सकता है लेकिन उसके लिए हमने अपनी आर्थिक संरचना में बड़े बदलाव करने होंगे।
जिन देशों ने अपने यहाँ प्रति व्यक्ति बढ़ाने में सफलता हासिल की है, उनके विकास के दो प्रमुख कारक रहे हैं- औद्योगिकीकरण और निर्यातों को बढ़ाना। इसके लिए इन देशों ने तेजी से अपने आप को खेती आधारित अर्थव्यवस्था से विनिर्माण और फिर सेवा क्षेत्र वाली अर्थव्यवस्थाओं में बदला है, जबकि भारत ने निर्माण को छोड़ कर सीधे सेवा क्षेत्र को बढ़ाने पर पूरा जोर लगा दिया है।
इसके अतिरिक्त भारत को कृषि क्षेत्र के अर्थव्यवस्था में योगदान को 5% पर लाने और विनिर्माण क्षेत्र को वर्तमान में २५% से 35% पर ले जाने की आवश्यकता होगी। भारत को यह लक्ष्य पाने के लिए अपनी बड़ी जनसंख्या का कौशल बढ़ाने, शिक्षा और स्वास्थ्य क्षेत्र पर खर्च बढ़ाने तथा कामकाजी लोगों की उत्पादकता बढ़ाने पर काम करना होगा।
गौरतलब है कि भारत ने वित्त वर्ष 2022-23 में 7.1% की जीडीपी वृद्धि दर वैश्विक समस्याओं के बाद भी हासिल की है जो कि लेख में बताए गए आँकड़े से कुछ ही कम है। जैसे ही विश्व बैंकिंग संकट, यूक्रेन-रूस युद्ध तथा कोरोना महामारी के प्रभाव के दौर से निकलेगा वैसे ही भारत की वृद्धि दर और बढ़ने की संभावना है। भारत ने गरीबी और मूलभूत सुविधाओं को उपलब्ध कराने के मामले में बीते कुछ वर्षों में उल्लेखनीय प्रगति हासिल की है, नीति आयोग की एक रिपोर्ट ने बताया है कि देश में पिछले पांच वर्ष में 13.5 करोड़ लोग गरीबी से बाहर आए हैं जो कि जनसंख्या का लगभग 10% है। ऐसे में अब भारत को अपनी क्षमताओं को बढ़ाने पर ध्यान देना होगा।
भारत को पूँजी जुटाने के लिए बचतों को बढ़ाना होगा और शोध पर खर्च को जीडीपी के अनुपात में भी बढ़ाना होगा। भारत में वर्ष 2018 तक R&D पर खर्च जीडीपी का 0.7% था जो कि अन्य देशों में २% से अधिक है। ऐसे में हम इस पर खर्च बढ़ाकर अपने यहाँ क्षमताएं बढ़ा सकते हैं। इन सब के अतिरिक्त भारत को अपने MSME सेक्टर समेत ऊर्जा क्षेत्र में भी बदलाव करने की आवश्यकता पड़ेगी जिससे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कहे अनुसार, आजादी के 100 वर्ष पूरे होने पर विकसित भारत बन सकें।
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