दिल्ली में हो रहे G-20 सम्मेलन के पहले दिन भारत, यूरोपीय संघ, अमेरिका, सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात तथा अन्य देशों के नेताओं ने भारत से चलकर मध्य पूर्व होते हुए यूरोप से जोड़ने वाले एक महत्वाकांक्षी नए इकोनॉमिक कॉरिडोर विकसित करने की योजना की घोषणा की है। इसे ‘भारत-मध्य पूर्व-यूरोप’ कॉरिडोर के नाम से जाना जाएगा। इसका मुख्य लक्ष्य व्यापार को बढ़ावा देना, ऊर्जा संसाधनों का परिवहन करना और तीन प्रमुख क्षेत्रों के बीच डिजिटल कनेक्टिविटी में सुधार करना है।
प्राचीन काल में, भारत के व्यापारी मध्य पूर्व से होकर गुजरने वाले भूमि और समुद्री मार्गों के माध्यम से यूरोप में मसालों का परिवहन करते थे। जिन्हें सामूहिक रूप से ‘स्पाइस रूट’ के रूप में जाना जाता था। समय के साथ, इस व्यापार नेटवर्क में गिरावट दर्ज हुई। विशेषज्ञों के अनुसार प्रस्तावित नया आर्थिक कॉरिडोर द्वारा आधुनिक बुनियादी ढांचे की सहायता से ऐतिहासिक स्पाइस रूट के पहलुओं को पुनर्जीवित करने की संभावना है।
इस आर्थिक कॉरिडोर की घोषणा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अमेरिका, सऊदी अरब, यूरोपीय संघ और अन्य के साथ की। इसमें साझेदार देशों और क्षेत्रों के बंदरगाहों और शहरों को जोड़ने वाली विकसित रेल, सड़क और शिपिंग बुनियादी संरचना शामिल होगी। भारत, अमेरिका, यूरोपीय संघ, सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात और अन्य के अधिकारियों के बीच महीनों की चर्चा और बातचीत के बाद इस योजन को अंतिम रूप दिया गया है।
इस पहल का उद्देश्य मध्य पूर्व क्षेत्र को रेलवे, पाइपलाइन और बंदरगाहों के माध्यम से जोड़ना है। यह चीन की बेल्ट एंड रोड पहल का विकल्प प्रदान करेगा और व्यापार तथा और एनर्जी, ख़ासकर तेल और गैस के वहन को बढ़ावा देगा। दशकों से एशिया, मध्य पूर्व और यूरोप के बीच व्यापार पारंपरिक रूप से स्ट्रेट ऑफ मलक्का और सुएज कैनल के माध्यम से समुद्री मार्गों पर निर्भर रहा है।
हालाँकि, बढ़ते तनाव और अनिश्चितताओं ने वैकल्पिक व्यापार मार्गों की आवश्यकता पर प्रकाश डाला है। वहीं, चीन की बेल्ट एंड रोड पहल इस क्षेत्र में पहले से विद्यमान बुनियादी ढाँचे और कनेक्टिविटी परियोजनाओं पर हावी हो गई है। इस कनेक्टिविटी के द्वारा भारत और खाड़ी देशों के बीच रेल, सड़क, बंदरगाह और ऊर्जा पाइपलाइन कनेक्टिविटी विकसित करके एक विकल्प प्रदान करने का प्रयास किया जा रहा है, जिसे आगे यूरोप तक बढ़ाया जा सकता है।
इसके अतिरिक्त, गैस पाइपलाइनों तथा तेल के साथ बिजली तथा हाइड्रोजन के लिए ग्रिड जैसे ऊर्जा बुनियादी ढांचे की परिकल्पना की गई है। इससे ऊर्जा स्रोतों और व्यापार मार्गों में विविधता लाने में मदद मिलेगी। इसका उद्देश्य भारत और यूरोप के बीच व्यापार समय में 40% तक की कटौती करना और तेज़ कनेक्टिविटी का विकल्प प्रदान करना है। आर्थिक कॉरिडोर के तहत केबल के जरिए क्षेत्रों के बीच डिजिटल कनेक्टिविटी पर काम करने की योजना है।
पाइपलाइन तथा रेल माल ढुलाई छोटे मध्य पूर्वी मार्ग के जरिए कार्गो परिवहन की सुविधा प्रदान करेगी। इससे साझेदार देशों और क्षेत्रों में जबरदस्त आर्थिक सहयोग, विकास तथा वृद्धि को बढ़ावा मिलने की उम्मीद है।
इस पहल से व्यापार के लिए शिपिंग समय और लागत में कटौती की उम्मीद है। इससे व्यापार और वाणिज्य के साथ-साथ विभिन्न देशों के नागरिकों के बीच संबंधों को भी बढ़ावा मिलेगा। ऐसी परिवहन और कनेक्टिविटी बुनियादी ढांचे का विकास का हिस्सा बनने वाले देशों में बड़े पैमाने पर निवेश और आर्थिक विकास को बढ़ावा देगी तथा इससे व्यवसायों के लिए नए बाज़ार और अवसर भी खुलेंगे।
रणनीतिक रूप से देखा जाए तो इस पहल का उद्देश्य कनेक्टिविटी परियोजनाओं में चीन के प्रभुत्व का विकल्प प्रदान करना है। हालांकि इसका बीआरआई के साथ सीधे प्रतिस्पर्धा करने का इरादा नहीं है, यह भागीदार देशों को अधिक विकल्प प्रदान करता है और किसी एक देश या मार्ग पर निर्भरता कम करता है।
ऐतिहासिक स्पाइस रूट के पहलुओं को पुनर्जीवित करके, प्रस्तावित आर्थिक कॉरिडोर में तीन प्रमुख विश्व क्षेत्रों के बीच व्यापार और कनेक्टिविटी को बदलने की क्षमता है। यदि इसे सफलतापूर्वक लागू किया गया, तो यह उस प्राचीन नेटवर्क के आधुनिक समकक्ष के रूप में उभर सकता है जो सदियों से भारत, मध्य पूर्व और यूरोप को जोड़ता था। यह गलियारा वर्तमान विश्व व्यवस्था में महत्वपूर्ण भू-राजनीतिक निहितार्थ भी रखता है।