हाल ही में आई ‘एक्सिडेंटल डेथ्स एंड सुसाइड्स इन इंडिया रिपोर्ट 2021’ में सामने आया है कि भारत में वर्ष 2021 के दौरान हृदयाघात के कारण 28,449 मौतें हुई हैं। यह रिपोर्ट अगस्त माह के अंत में नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) के द्वारा जारी की गई थी।
ह्रदयाघात के कारण हुई मौतों की यह संख्या 2020 के मुकाबले 1% कम है, वर्ष 2020 में 28,680 मौतें हृदयाघात के कारण हुई थी। इसके अतिरिक्त 2019 में भी यह संख्या 28,000 के आसपास ही थी।
वर्ष 2019 में 28,005 मौतें हृदयाघात के कारण हुईं थी, यदि उससे तुलना करें तो इस वर्ष 2% की वृद्धि हुई है। पिछले तीन वर्षो से भारत में यह आंकडा 28,000 के आसपास ही रहा है।
यह रिपोर्ट दुखद होने के साथ -साथ ही काफी चौंकाने वाले आंकड़े भी सामने लाती है।
क्या कहती है रिपोर्ट?
रिपोर्ट के अनुसार भारत में 2021 में कुल 28,449 लोगों की मृत्यु हृदयाघात के कारण हुईं, यह मौतें कुल आकस्मिक मौतों का 7.15 % हैं। वर्ष 2021 में 3,97,530 आकस्मिक मौतें विभिन्न कारणों से हुईं।
महाराष्ट्र सबसे ज्यादा हृदयाघात से मौतें दर्ज करने वाला राज्य बना, 10,489 मौतों के साथ महाराष्ट्र ने पूरे देश करीब 37% मौतें दर्ज करी। केरल इसके बाद सबसे ज्यादा हृदयाघात से मौतें दर्ज करने वाला राज्य बना जहाँ 3,872 लोगो की मृत्यु हृदयाघात के कारण हुई।
साथ ही चौंकाने वाली बात यह है कि केवल छह राज्यों महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, गुजरात, केरल, कर्नाटक और तमिलनाडु से ही पूरे देश के मामलों में से 75% मामले दर्ज किये गए। इन राज्यों में से ज्यादातर राज्य भारत के पश्चिमी भाग में अवस्थित हैं।
आंकड़े बताते हैं कि इन हृदयाघात से हुई मौतों के सबसे ज्यादा पीड़ित पुरुष हैं, इन कुल मौतों में से 86% मरने वाले पुरुष हैं, जिनकी संख्या 24,510 है। हृदयाघात से मरने वाली महिलाओं की संख्या 3,936 है। यह आंकडा बताता है कि पुरुष ज्यादा चिंताओं और दबाव के कारण इन हृदयाघातों का शिकार हुए।
एक और बात जो ध्यान देने लायक और एक तरह से सुखद भी है कि पिछड़े राज्य जैसे की बिहार, झारखंड और ओड़िशा ने अत्यंत ही कम संख्या में हृदयाघात के कारण मौतें दर्ज की हैं, जबकि इन राज्यों में स्वास्थ्य सेवाओं के बुरे हाल हैं और विशेषकर हृदय संबंधी रोगों के लिए तो बहुत ही कम स्वास्थ्य सुविधाएं उपलब्ध हैं।
इसके अतिरक्त उत्तर-पूर्वी राज्यों ने सम्मिलित रूप से केवल 223 मौतें हृदयाघात के कारण दर्ज कीं, जिनमें से त्रिपुरा ने सर्वाधिक 98 और उसके पश्चात मिजोरम ने 47 मौतें दर्ज करीं।
राजधानी दिल्ली में 302 मामले हृदयाघात से मौतों के सामने आए, हृदयाघात के कारण किसी केन्द्रशासित प्रदेश में होने वाली ये सबसे ज्यादा मौतें हैं। चंडीगढ़ केन्द्रशासित प्रदेशों में दूसरे स्थान पर था जहाँ 40 मौतें हृदयाघात के कारण हुईं।
मरने वालों में युवा और अधेड़ सर्वाधिक
हृदयाघात से मरने वालो में 30 वर्ष से 60 वर्ष के बीच के आयु वाले लोगों की तादाद सबसे ज्यादा हैं, इन में 30-45 वर्ष की आयु वाले युवाओं की संख्या 8,544 और 45-60 के वर्ष वाले अधेड़ों की संख्या 11,190 रही।
इस तरह से युवाओं और अधेड़ों की हृदयाघात से मरने वाले वाले लोगों की कुल संख्या में 70 % की हिस्सेदारी थी, यह जनसंख्या भारत की मुख्य काम करने वाली जनसंख्या है, इस कामकाजी जनसंख्या के एक हिस्से का आकस्मिक निधन चिंता की बात है।
कोरोना वैक्सीन का हृदयाघातों की संख्या में कोई असर नहीं
इन आंकड़ो से उस बहस को भी विराम मिलेगा जिसमे कहा जाता रहा है कि वैक्सीन के कारण भारत में हृदयाघात से से होने वाली मौतों की संख्या बढ़ी है, भारत में बड़े स्तर पर 2021 में वैक्सीन लगाईं गईं लेकिन उनके कारण इन आंकड़ों में कोई बढ़ोत्तरी नहीं सामने आई।
भारत में हृदयाघात के कारण होने वाली इन मौतों के आंकड़ों से भारत में हृदय संबंधी रोगों के विषय में जानकारी और उनसे जुडी हुई स्वास्थ्य सेवाओं के बुरे हाल में होने का पता चलता है।
यदि हृदयाघात पड़ने के कुछ ही समय के अंदर इलाज मुहैया कराने की सुविधा भारत में सार्वभौमिक तरीके से उपलब्ध हो जाए तो शायद हम काफी बहुमूल्य जानें बचा सकते हैं।