गणेश चतुर्थी पर गणेशोत्सव के 10 दिवसीय भव्य समारोह के साथ ही देशभर में इस साल के त्यौहारी सीजन की शुरुआत हो गई है, जिससे व्यापारिक समुदाय को इस साल बड़े व्यवसाय की आशा है। पिछले दो साल कोरोना की भेंट चढ़ने के बाद इस बार त्यौहार बिना किसी रोक टोक के बड़े स्तर पर मनाए जा रहे हैं।
कन्फेडरेशन ऑफ ऑल इंडिया ट्रेडर्स (CAIT) ने इस साल फिर से चीनी सामानों के बहिष्कार का अपना अभियान जारी रखा है। इस वजह से इस साल देश में चीन से गणेश मूर्तियों का आयात शून्य हो गया है।
इससे पहले वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने भी चीन से गणेश प्रतिमाओं के आयात पर सवाल उठाए थे। तमिलनाडु के भाजपा कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा था, “देश में गणेश मूर्तियों जैसे तैयार उत्पादों को भी चीनी फर्मों से आयात क्यों करना पड़ा?”
उन्होंने आत्मनिर्भर भारत के लक्ष्यों की विडंबना पर बोलते हुए अगरबत्ती जैसे उत्पादों के आयात की प्रवृत्ति को भी इंगित किया था जो स्थानीय स्तर पर सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्योगों (MSME) द्वारा बनाए जाते हैं।
CAIT के राष्ट्रीय अध्यक्ष बी.सी. भरतिया और महासचिव प्रवीण खंडेलवाल ने कहा कि एक अनुमान के मुताबिक देश में हर साल 20 करोड़ से ज्यादा गणेश प्रतिमाएं खरीदी जाती हैं, जिससे 300 करोड़ रुपये से ज्यादा का अनुमानित कारोबार होता है।
उन्होंने कहा कि पिछले दो वर्षों से देश भर में भगवान गणेश की पर्यावरण के अनुकूल मूर्तियों को स्थापित करने का चलन बहुत तेजी से बढ़ रहा है। उन्होंने आगे कहा कि देश में पर्यावरण के अनुकूल मूर्तियाँ बनाई जा रही हैं जिन्हें जल में विसर्जित करने के बजाय पेड़ों और पौधों में मिला दिया जाता है, जिससे पर्यावरण को भी नुकसान नहीं होता है।
पहले प्लास्टर ऑफ पेरिस, पत्थर, संगमरमर और अन्य वस्तुओं से बनी गणेश मूर्तियों को सस्ते दामों के कारण चीन से आयात किया जाता था, लेकिन पिछले दो वर्षों में सीएआईटी द्वारा चीनी सामानों के बहिष्कार के अभियान के कारण चीनी गणेश मूर्तियों का आयात तेजी से गिर गया।
देश में प्लास्टर ऑफ़ पैरिस की जगह मिट्टी या गोबर से बनी मूर्तियाँ बनाने के लिए सैकड़ों लघु, व मध्यम उद्योग सामने आए हैं। मिट्टी और गोबर के द्वारा बनी मूर्तियाँ पर्यावरण को किसी भी प्रकार का नुकसान नहीं पहुंचाती हैं और जल में विसर्जन पर भी घुलकर सतह पर समा जाती हैं। जबकि प्लास्टर ऑफ़ पैरिस की मूर्तियाँ अघुलनशील होने के कारण जल प्रदूषण का कारण बनती थीं।
चीनी मूर्तियाँ इस साल देश में शून्य हो गई हैं और देश भर के शहरों में अपने घरों में काम करने वाले स्थानीय शिल्पकार, कारीगर और कुम्हार अपने परिवार की महिलाओं को शामिल करके मिट्टी और गाय के गोबर से मूर्तियाँ बना रहे हैं, जो आसानी से विसर्जित हो जाती हैं।
मूर्ति निर्माण के ज्यादातर उद्योग ग्रामीण या कस्बाई इलाकों में महिला समूहों, अस्थायी कामगारों को रोजगार के अवसर दे रहे हैं। इन मूर्तियों की वजह से देशभर में लाखों लोगों को प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष कारोबार मिलता है। गणेश चतुर्थी के बाद आने वाली नवरात्रि में देवी प्रतिमाओं, और उसके बाद दीपावली पर लक्ष्मी प्रतिमाओं व दीपकों का निर्माण कार्य भी कई महीनों पहले ही शुरू हो चुका है।
इससे पहले, CAIT ने भारतीय उद्योगों को प्रोत्साहित करने के लिए सभी क्षेत्रों में चीनी सामानों के बहिष्कार का आह्वान किया था।