वैश्विक अर्थव्यवस्था में हलचल लाने वाले यूक्रेन-रूस युद्ध का प्रभाव भारत की अर्थव्यवस्था पर धीरे-धीरे दिखना कम हो रहा है। युद्ध के कारण लगातार बढ़ रही ऊर्जा और अन्य वस्तुओं की कीमतों पर भी लगाम लगती दिखाई दे रही है। साथ ही, देश का निर्यात भी बढ़ा है। इसका असर अब देश के विदेशी मुद्रा भंडार पर भी दिख रहा है।
पिछले लगभग 2 माह के अंदर देश के विदेशी मुद्रा भंडार में 40 बिलियन डॉलर की बढ़ोतरी दर्ज की गई है। यूक्रेन और रूस के बीच युद्ध प्रारम्भ होने के बाद से बढ़ी हुई ऊर्जा कीमतों के कारण और फेड रिज़र्व द्वारा ब्याज बढ़ाए जाने के कारण देश के विदेशी मुद्रा भंडार में कमी आ रही थी।
अब स्थिति सामान्य होने की दिशा में बढ़ रही हैं। प्रतिभूतियों में विदेशी निवेश एक बार फिर वापस आता दिखाई दे रहा है। इसके कारण विदेशी मुद्रा एक बार फिर से भारत का रुख कर रही है और भारत का विदेशी मुद्रा भंडार बढ़कर 564 बिलियन डॉलर पहुँच गया है।
क्या है विदेशी मुद्रा भंडार की स्थिति?
भारत का विदेशी मुद्रा भंडार विश्व के सबसे बड़े भंडारों में से एक है। इसका आँकड़ा हर सप्ताह देश के केन्द्रीय बैंक रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया द्वारा जारी किया जाता है। पिछले सप्ताह यह 561.1 बिलियन डॉलर के स्तर पर था। इस एक सप्ताह के भीतर इसमें 2.9 बिलियन डॉलर की वृद्धि हुई है। रिजर्व बैंक द्वारा जारी नए आँकड़े के अनुसार, यह 564 बिलियन डॉलर है।
देश का भंडार अक्टूबर माह से लगातार बढ़ा है। 21 अक्टूबर को यह 524.5 बिलियन डॉलर के स्तर पर था। 21 अक्टूबर से 9 दिसम्बर के मध्य इसमें 40 बिलियन डॉलर की बढ़ोतरी हुई है। इसमें सर्वाधिक बढ़ोतरी 4 नवम्बर से 11 नवम्बर के बीच हुई। इस एक सप्ताह के दौरान भंडार में लगभग 15 बिलियन डॉलर की बढ़ोतरी हुई थी।
देश के विदेशी मुद्रा भंडार का लगातार मजबूत होना यह दर्शा रहा है कि बड़ी मात्रा में विदेशी निवेश देश में आ रहा है और साथ ही हमारे निर्यात भी बड़े पैमाने पर बढ़ रहे हैं। गौरतलब है कि 2021 के सितम्बर माह में विदेशी मुद्रा भंडार ने रिकॉर्ड स्तर छुआ था, तब यह 642 बिलियन डॉलर पहुँच गया था।
रिजर्व बैंक ने देश के मुद्रा भंडार को स्थिर रखने के लिए और बाजार के व्यापार डॉलर की कमी ना हो इसके लिए अपने भंडार से डॉलर का खर्चा किया था। इसके जरिए RBI बाजार में मुद्राओं की अस्थिरता को नियंत्रित करती है।
क्यों बढ़ रहा विदेशी मुद्रा भंडार?
भारत के विदेशी मुद्रा भंडार के बढ़ने के पीछे कई कारण हैं। वर्तमान में रिजर्व बैंक, डॉलर के मूल्य स्थिर होने के कारण बड़े पैमाने पर बाजार से डॉलर भंडार में जोड़ रहा है। वहीं दूसरी तरफ कई देशों के केन्द्रीय बैंकों द्वारा ब्याज दरों के बढ़ाए जाने से बाहर गए निवेशक भी वापस आने लगे हैं।
विदेशी निवेशों पर नजर रखने वाली एजेंसी NSDL के अनुसार, वर्ष 2022 में विदेशी निवेशकों ने भारत के बाजार से वर्ष 2022 में 2.30 लाख करोड़ से भी अधिक के निवेश निकाले हैं। अब वह निवेश वापस आ रहे हैं। पिछले माह नवम्बर में विदेशी निवेशकों ने लगभग 34,000 करोड़ रूपए भारतीय बाजार में निवेश किए थे। यह सिलसिला लगातार जारी है।
दिसम्बर माह की 16 तारीख तक लगभग 8700 करोड़ रूपए के विदेशी निवेश भारतीय बाजारों में आ चुके हैं। हालाँकि, विदेशी निवेशकों द्वारा निकाले गए पैसे की आपूर्ति भारतीय निवेशकों ने कर दी थी। लेकिन विदेशी निवेश के आवागमन से देश के मुद्रा भंडार पर पड़ने वाले फर्क के चलते, बाहर से आने वाला निवेश इसमें सकारात्मक वृद्धि करता है।
क्या हैं इसके मायने?
विदेशी मुद्रा भंडार, जैसा कि इसके नाम से स्पष्ट है, भारत को विदेशों से होने वाले व्यापार के भुगतान में काम आता है। विदेशी मुद्रा भंडार जितना अधिक होगा, देश के लिए विदेशों के साथ व्यापार बढ़ाना सुविधाजनक रहेगा। इसके साथ ही किसी भी देश का विदेशी मुद्रा भंडार उस देश की अर्थव्यवस्था की मजबूती को भी दर्शाता है।
भारत, दुनिया में कच्चे तेल का तीसरा सबसे बड़ा उपभोक्ता और आयातक है। कच्चे तेल के आयात का भुगतान डॉलर में होता है। ऐसे में भारत के पास विदेशी मुद्रा का होना आवश्यक है।
भारत के पड़ोसी देश, पाकिस्तान, श्रीलंका और बांग्लादेश जैसे राष्ट्र अपने विदेशी मुद्रा भंडार के कम होने के कारण लगातार अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष का दरवाजा खटखटा रहे हैं। इससे उनकी संप्रभुता और आर्थिक स्वायत्ता पर भी फर्क पड़ता है।
हम एक निवल आयातक (नेट इम्पोर्टर) राष्ट्र हैं। इसका अर्थ है कि भारत के आयात उसके निर्यात से अधिक है और चूँकि आयातों का भुगतान विदेशी मुद्रा के माध्यम से ही होता है। ऐसे में मुद्रा भंडार का अच्छे स्तर पर रहना और आवश्यक हो जाता है।