चालू वित्त वर्ष की पहली छमाही (अप्रैल-सितंबर) में देश का राजकोषीय घाटा कुल 7.02 लाख करोड़ रुपये रहा, जो पूरे साल के लक्ष्य का 39.3% है। घाटा पिछले वर्ष की समान अवधि से बढ़ गया है। साथ ही कर संग्रह में जोरदार वृद्धि जारी रही, जिससे घाटे को नियंत्रित करने में मदद मिली है।
राजकोषीय घाटा सरकारी व्यय और राजस्व के बीच अंतर को दर्शाता है। अधिक घाटे का अर्थ है कि सरकार को अपने व्यय को पूरा करने के लिए अधिक उधार लेने की आवश्यकता है। सरकार ने वित्त वर्ष 2023-24 के लिए राजकोषीय घाटे का लक्ष्य 17.87 लाख करोड़ रुपये या जीडीपी का 5.9% निर्धारित किया था, जो वित्त वर्ष 2023 के 6.4% से कम है। घाटे पर नज़र रखने से सरकार की वित्तीय स्थिति और व्यय का आकलन करने में मदद मिलती है।
कंट्रोलर जनरल ऑफ अकाउंट्स द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार, अप्रैल-सितंबर 2022 के लिए राजकोषीय घाटा 6.43 लाख करोड़ रुपये था। चालू वित्त वर्ष की पहली छमाही में राजकोषीय घाटा कुल 7.02 लाख करोड़ रुपए रहा, जो पिछले साल की समान अवधि के 6.43 लाख करोड़ रुपये से अधिक है। हालाँकि, इस दौरान सरकार का कर संग्रह मजबूत बना रहा और बजट अनुमान की तुलना में तेज़ गति से बढ़ रहा है। सितंबर में राजकोषीय घाटा 59,035 करोड़ रुपये था, जो पिछले साल से 25% कम है।
कर राजस्व में जोरदार वृद्धि हुई है, जिससे राजकोषीय स्थिति में मदद मिली है। अप्रैल-सितंबर में नेट कर संग्रह कुल 11.60 लाख करोड़ रुपये तक पहुंच गया, जो पिछले वर्ष की समान अवधि की तुलना में 15% अधिक है और वार्षिक लक्ष्य का 49.8% है।
वहीं, कुल रिसिप्ट्स 14.17 लाख करोड़ रुपये रहीं, जो पिछले साल के 12.03 लाख करोड़ रुपये से अधिक है। हालाँकि, अधिक खर्च के कारण कुल खर्च भी 18.23 लाख करोड़ रुपये से बढ़कर 21.19 लाख करोड़ रुपये हो गया है। राजस्व घाटा, राजस्व और व्यय के बीच का अंतर होता है। चालू वित्त वर्ष की पहली छमाही में यह अंतर 2.31 लाख करोड़ रुपये था, जो पिछले वर्ष की समान अवधि में 3.11 लाख करोड़ रुपये से कम है।
मजबूत कर राजस्व वृद्धि और व्यय में नरमी ने व्यापक घाटे की संख्या के बावजूद पहली छमाही में राजकोषीय घाटे के विस्तार को सीमित करने में मदद की है। रुझानों से संकेत मिलता है कि सरकार 2023-24 के लिए अपने 5.9% राजकोषीय घाटे के लक्ष्य को पूरा करने की राह पर है।
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